चेक दूतावास में निर्मल वर्मा और लॉंग नाइट ऑफ़ लिटरेचर उमेश पंत September 23, 2023 दिल्ली डायरी 21 सितंबर 2023 दिल्ली के एक उमस भरे दिन आस्था को ऑक्सफ़ोर्ड बुकस्टोर से एक ईमेल आया। यह ईमेल चेक गणराज्य के दूतावास… Continue Reading
बाद बारिश के उमेश पंत June 21, 2015 फूल चादर की तरह लाल मिट्टी वाली उस कच्ची सड़क पर बिछे थे। रेंगती हुई चींटियां खुश थी कि बारिश के बाद ही सही उन्हें… Continue Reading
सुबह की सैर जैसे सपना हो गई हो उमेश पंत June 20, 2015 बाद बारिश के सुबह की सैर जैसे रात का सपना हो गई थी.. ज़मीन अभी भी नम थी.. जैसे कभी कभी उसकी आंखें हो जाया… Continue Reading
राहे सुकून है संजय वन उमेश पंत April 23, 2015 उस जंगल की परिधि से लगी छोटी-बड़ी इमारतें ऐसी लग रही थी जैसे किसी शांत सी झील को कंटीले तार-बाढ़ से घेर दिया गया हो.… Continue Reading
‘यात्री मोड’के नफे नुकसान उमेश पंत January 20, 2015 Mumbai Diary : 21 (January 2015) दिल्ली में किये काम के (छोटे-मोटे विलंबित) चैक मुंबई के पते पर मंगाते हुए लग रहा है कि इन… Continue Reading
कहानी : घुटने का दर्द yatrakaar September 5, 2014 1. अगस्त क्रान्ति राजधानी मुंबई सेन्ट्रल के प्लेटफाॅर्म एक से चल पड़ी थी। मम्मी खिड़की के बाहर भागती हुई दुनिया को देख रही थी और… Continue Reading
वक्त की उंगलियों में नाचती है ज़िंदगी की कठपुतली yatrakaar August 27, 2014 रात का तकरीबन नौ बज रहा था। संगीत नाटक अकादमी से बाहर निकला ही था कि मेनरोड पर एक रिक्शेवाले को अपने रिक्शे पर कपड़ा… Continue Reading
मैगी बनाने में १० मिनट पर सेक्स ‘टू मिनट नूडल्स’की तरह क्यूं ? yatrakaar August 24, 2014 Lucknow Diary सेक्स सोसाईटी एन्ड शी…. लखनऊ में इस नाम से कोई थियेटर शो है, पहले तो ये जानकर ही जरा आश्चर्य हुआ। साथी गौरव… Continue Reading
‘मैट्रो’की नयी भाषा सीखती एक मैट्रोसिटी yatrakaar June 23, 2014 Mumbai Diary : 20 (23 Jun 2014) तकरीबन साड़े तीन महीने बाद मुम्बई लौटा हूं। दिल्ली की लू के बनिस्पत मुम्बई की ठन्डी हवाएं राहत… Continue Reading
हे IRCTC ! ट्रेन का टिकिट मांगा है, लोकसभा का नहीं उमेश पंत June 17, 2014 ये असम्भव सा काम आज बस होने ही वाला था। जिस काम के लिये पिछले हफते भर से तरह तरह के जुगाड़ काम ना आये… Continue Reading
चुनावी दिल्ली में एक बीमार सा दिन उमेश पंत April 8, 2014 सीने में इन दिनों कभी कभी तेज़ दर्द होता है.. लगता है की पेट के अन्दर कोई जा बैठा है जो कभी कभी फेफड़ों को जोर से… Continue Reading
इस ज़िंदगी का कोई निर्देशक नहीं होता उमेश पंत April 8, 2014 Mumbai Diary : 19 ( April 2014) बांद्रा स्टेशन की तरफ आती हुई सड़क। हाथ में कतई लाल रंग के दिल के आकार के 25-30… Continue Reading
जेएनयू की होली – 5 अनुभव उमेश पंत March 18, 2014 तो इस बार की होली जेएनयू में खेली। बाबा गंगनाथ मार्ग से जेएनयू के गेट की तरफ बड़ते ही माहौल एकदम बदल सा जाता है।… Continue Reading
एकांत से घिरे शोर सा शहर yatrakaar January 25, 2014 Mumbai Diary : 18 (January 2014) यहां मुंबई में कई बार आप उस पत्ते की तरह महसूस करने लगते हैं, जो नदी के प्रवाह के… Continue Reading
‘एक सौ दर्द जले जब दिल में, एक नज़्म का जन्म हुआ’ yatrakaar December 8, 2013 Mumbai Diary : 17 (December 2013) गुलज़ार साहब को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार मिलने की बधाई देते हुए मोहल्ला लाइव पर छपने वाली अपनी ‘मुंबई… Continue Reading
आंखिर किनकी शय पर चलती है रेल ? उमेश पंत June 21, 2013 Mumbai Diary 16 ( Jun 2013 ) मुम्बई में हूं और खफा हूं। खफा हूं कि देश की आर्थिक राजधानी में बैठा देश के नैतिक… Continue Reading
अनजान शहर में पहचान की तलाश yatrakaar December 18, 2012 मुम्बई के अंधेरी स्टेशन के भीतर उस ओवरब्रिज पर भागती भीड़ का न कोई सर पैर है, न कोई ओर छोर। अजनबी अनजान चेहरों में… Continue Reading
आख़री सांसें लेती ज़िंदगी की कहानी उमेश पंत October 24, 2012 Mumbai Diary : 15 ( 24 October 20112) Mumbai Film Festival 2012 पिछले पांच दिनों से मुम्बई के पांच अलग अलग थियेटरों का पीछा किया… Continue Reading
फ़िल्में देखने के लिए भी कम चप्पल नहीं घिसने पड़ते उमेश पंत October 19, 2012 Mumbai Diary 14 (19 October 2012) (Mumbai Film Festival 2012) एक और दिन मुम्बई फिल्म फेस्टिवल के नाम रहा। शुरुआत खराब थी। इतवार की सुबह… Continue Reading
हर बुरे वक्त का एक अच्छा पहलू भी होता है उमेश पंत October 18, 2012 Mumbai Diary : 13 ( 18 October 2012) (मुम्बई फिल्म फेस्टिवल 2012) सुबह सुबह नीद खुली तो देर हो चुकी थी। साढ़े नौ बज चुके… Continue Reading
गणपति के बाद फिल्मों का उत्सव उमेश पंत October 17, 2012 Mumbai Diary : 12 (October 2012) गणपति बप्पा ने अलविदा कह दिया है। गणेश के इस बड़े उत्सव को देखकर लगता है कि मुम्बई में… Continue Reading
वक्त की पटरी और यादों के बेनाम स्टेशन yatrakaar July 23, 2012 Mumbai Diary 11 (July 2012) अभी अभी कांजुरमार्ग स्टेशन के पास पूरब से पश्चिम की ओर जाने वाले पुल पे कुछ वक्त बिताया। वक्त के… Continue Reading
नाराजगी कितनी अर्थहीन और क्षणभंगुर भावना़ है yatrakaar May 12, 2012 Mumbai Diary 10 (May 2012) डोंगरी टु दुबई का बुक लांच था। बेंड्रा की कार्टर रोड में समुद्री किनारे के पास औलिव नाम का वो… Continue Reading
मैक्सिमम सिटी के मिड नाईट अन्ना उमेश पंत April 30, 2012 Mumbai Diary 9 ( April 2012) मुम्बई पे छतें सरों से कोई खास सरोकार नहीं रखती। अपने अनुभव देखकर तो यही लगता है। व्यक्तिगत अनुभवों… Continue Reading
उस रात मुंबई में उमेश पंत March 27, 2012 मुंबई डायरी : 8 (मार्च 2012) अजीब से रतजगे हैं इन दिनों। आज फिर रात भर का जागा हूं। पिछले कुछ दिनों से सुबह 7-8… Continue Reading
इतवारी शामों में सुकून के किनारे उमेश पंत February 28, 2012 Mumbai Diary 7 ( February 2012) मुम्बई और मेरे रिश्ते की उम्र आज एक साल एक महीना और कुछ 7 दिन हो चुकी है… ये… Continue Reading
‘घोस्ट राइटर’लिखते हैं मुंबई की किस्मत उमेश पंत October 26, 2011 Mumbai Diary :6 ( October 2011) देर शाम अंधेरी वैस्ट के रिहायशी इलाके मलाड की एक मीटिंग से लौटते हुए ओशीवारा के लोटस पैट्रोल पंप… Continue Reading
मुंबई में स्वाद की एक सड़क : मोहम्मद अली रोड उमेश पंत September 20, 2011 Mumbai Diary 5 (September 2011) कई जगहें ऐसी होती हैं जहां ना भी गये होते तो कुछ नहीं होता पर जहां जाने के बाद ऐसा… Continue Reading
आप लाख चाहें, रिश्ते कभी सेकंडहैन्ड नहीं हो सकते उमेश पंत August 1, 2011 Mumbai Diary : 4 ( August 2011) आज ही घर शिफ्ट किया है। यारी रोड से यारी और वर्सोवा की लहरें प्यारी हो गई थी।… Continue Reading
खुश रहना हमारी नैतिक जिम्मेदारी ही है उमेश पंत July 19, 2011 Mumbai Diary : 3 (July 2011) कभी कभी लगता है कि मैं एक तिनका हूं और ये शहर बारीक सा एक घोंसला। मेरी ही तरह… Continue Reading
बरसात, छाता और वो लड़की उमेश पंत June 18, 2011 Mumbai Diary : 2 ( Jun 2011) मुम्बई के बारे में एक बात सुनी थी। मानसून आने के बाद यहां जब बारिश शुरु होती है… Continue Reading
कभी कभी लगता है लोग अजनबी क्यों होते हैं ? उमेश पंत June 9, 2011 मुंबई डायरी: १ (जून 2011) कुछ दिन पहले हिन्दी की जानी मानी वैबसाईट मोहल्ला लाइव के सम्पादक अविनाश जी ने फेसबुक पे पिंग किया। न… Continue Reading
छोटी कहानियां उमेश पंत May 14, 2011 टाकिंग टम्स वो दोनों टाकिंग टम्स में नहीं थे। फेसबुक, जीटाक, स्काईप, बीबीएम सारे दरवाजे बंद थे। उसे लगा आज सचमुच खिड़कियों से हवा नहीं… Continue Reading
इनक्रोचमेंट, डिमोल्यूशन एंड डिस्प्लेसमेंट उमेश पंत May 21, 2010 सुबह सुबह नौएडा मोड़ से गुजरते हुए सड़क के किनारे देखा तो वहां मां दुर्गा की वो मूर्ति नहीं थी, ना ही नटराज की। वहां… Continue Reading
एक दोस्त का प्रोफेश्नल हो जाना उमेश पंत April 22, 2010 कई बार अपने आसपास लोगों को निहायत प्रोफेश्नल होता देख डर लगता है। समझ नहीं आता कि क्या ज्यादा जरुरी है। इन्सानी भावनाओं को जिन्दा… Continue Reading
क्या आपका फोन चोरी नही हुआ उमेश पंत November 24, 2009 अरे यार फोन चोरी हो गया। घर आकर बताया तो भाई लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट तैर आई। पहली बार जब घर आकर बताया था… Continue Reading
और तीन की टिकट नहीं रही……. उमेश पंत November 5, 2009 दिल्ली की बसों में एक और बड़ा दर्दनाक वाकया हुआ। बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि इस हादसे में 3 रुपये की… Continue Reading
ईद मुबारक….. उमेश पंत September 21, 2009 हम ईदगाह पढ़ते बड़े हुए। और जब जब हामिद के चिमटे ने उसकी दादी की आंखें को खुशी से सराबोर कर दिया हमें लगा कि… Continue Reading
भीड़ भरी बस और वो उमेश पंत September 11, 2009 दिल्ली की भीड़ भरी बसों में रोज कई वाकये होते हैं। मसलन मोबाईल या पर्स चोरी हो जाना। पर इन वाकयों को अंजाम देने वाले… Continue Reading
एक कहानी सा कुछ उमेश पंत September 9, 2009 सड़क पर बसें रफ्तार से आ जा रही हैं। बस स्टॉप पर भीड़ तिलचट्टों के झुंड सी बिखरी है। एक बस आती है। रुकती है… Continue Reading
एक और भड़ास जैसा कुछ उमेश पंत March 20, 2009 हम एक ऐसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में जी रहे हैं जहां पे आपको बोलने सुनने और यहां तक कि सोचने के लिए भी एक दायरा तय… Continue Reading
ये शहर इस मौत का जिम्मेदार है उमेश पंत March 16, 2009 ये वाकया दिल्ली की संवेदनहीनता को बयान करता ह। ये बताता है कि दिल्ली के दिलवाले लोगों के बीच इस सड़कछाप वर्ग की देखरेख करने… Continue Reading
होली है तो पर यहां कहां उमेश पंत March 9, 2009 कल होली है तो पर होने जैसा कुछ नजर नहीं आया अब तक। हर त्यौहार की तरह इस होली में फिर घर की याद हो… Continue Reading
यमुना किनारे विचरने के बहाने उमेश पंत February 2, 2009 [dropcap]न[/dropcap]दियां हमेशा उस जगह को एक संस्कृति देती हैं जहां वो बह रही होती हैं। नदियों के साथ एक पूरा जीवन और उस जीवन के… Continue Reading
समय का कैक्टस और कमल का फूल उमेश पंत December 10, 2008 कई बार ना जाने क्यों लगता है कि इस शहर में एक बंजर सी उदासी भरी पडी है। और जब जब ये लगता है तो… Continue Reading