अरे यार फोन चोरी हो गया। घर आकर बताया तो भाई लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट तैर आई। पहली बार जब घर आकर बताया था तो ऐसा नहीं हुआ था। तब सबको लगा था कि हां कुछ चोरी हो गया। ऐसा होना नहीं चाहिये था। कैसे कोई फोन चोरी कर सकता है। जेब से निकाल कैसे लिया फोन। ब्ला ब्ला…तब घर वालों ने बड़ी जिज्ञासा दिखाई थी फोन चोरी होने की घटना के बारे में। घर में पहला फोन जो चोरी हुआ था। मुझे भी सदमा सा लगा था। जैसा पहले पहले प्यार के न मिलने या समय के साये में खो जाने पर लगता है। क्योंकि फोन केवल फोन कहां होता है अब। उसमें कई यादें होती हैं। उसकी कौल लिस्ट में, उसके मैसेज बौक्स में। उसके मीडिया सेन्टर में। कितने तो कांटैक्ट जो आप रेंडम तरीके से फीड कर लेते हैं। एक नाइस टू मीट यू के बाद। कैन आई हैव युअर नम्बर का आग्रह करके आपको अंकों का एक जखीरा सा मिलता है। माने ये कि आप चाहें तो उससे जुड़ सकते हैं। जिससे मिलने में आपको अच्छा लगा था और आपने अभी अभी कहा भी था। कभी किसी ट्रेन में, बस में, चलते हुए रास्ते में, बस का इन्तजार करते किसी स्टाप में, किसी सेमिनार में, शादी या किसी फंक्शन में। ऐसे कई नम्बर जुटा तो लेते हैं आप पर कहीं और नोट नहीं करते। आपकी सिम आपका दिमाग हो जाती है। कम से कम मेरा तो थी ही।
मुझे अपने पापा, मम्मी, भाई किसी का भी नम्बर याद नहीं है। जब घर में एक लैंडलाईन फोन होता था कैसे तो सारे नम्बर याद रह जाते थे। ये राहित का, ये सोनी का, ये प्रिंसिपल सर का ये फंलां का…..लेकिन अब अपना नम्बर याद करने में भी कन्फयूजन होने लगा है कि ये नम्बर फोन चोरी होने से पहले वाला है या बाद वाला। खैर मैं बात कर रहा था होम औडियन्स रिएक्शन की। जब फोन चोरी होने की घटना घर में सुनाई तो भैया का रिएक्शन था- चलो भई तेरा और भाई का स्कोर दो दो हो गया। और हम लोग अभी 2 1 से पीछे हैं। किसी को घटना सुनने में भी कोई खास इन्टेªस्ट नहीं था कि आंखिर कैसे हुआ ये सब। कुछ वैसे ही जैसे आजकल ब्लास्ट होने के बाद होता है। अच्छा हो गया। ये तो होना ही था टाईप्स।
लेकिन मुझे याद नहीं है कि मेरे फोन चोरी हो जाने के बाद मेरा रिएक्शन टाईम दो सेकंड का भी रहा हो। मैने किसी को फोन किया, फोन वापस जेब में रखा और हाथ बाहर निकालने तक फोन चोरी। और चोरी हो जाने के बाद एक नागरिक होने के नाते मेरे अधिकार यहीं तक सीमित हैं कि मैं थोड़ा सा शोर मचा लूं। और यहां आकर ब्लाग पर कुछ लिख लूं। इसी आशा के साथ कि शायद ही इससे कुछ हो। लेकिन बात क्या यहीं खत्म हो जानी चाहिये कि दो सेकंड की ही सही लापरवाही मेरी थी। वो तो चोर थे। उन्हें पूरा हक है कि वो चोरी करें। और उन्होंने अपने अधिकार का प्रयोग कर जो किया वो सही किया। आंखिर वो भी लोकतंत्र में पूरी भागीदारी रखते हैं। पुलिस उनकी इस कला का पूरा सम्मान कर उनके साथ खड़ी रहेगी। आंखिर कैसी तो सफाई से अपने काम को पूरी निष्ठा से अंजाम देते हैं ये चोर कि दो सेकंड के रिएक्शन टाईम के बावजूद हमें पता नहीं चल पाता कि चोरी किसने की। बसों में फोन चोरी की ये वारदातें इतनी आम हो गई हैं जितने आजकल आम के सीजन में आम नहीं होते।
हर दिन दिल्ली की बसों में कई फोन चोरी होते हैं और हम कुछ नहीं कर पाते सिवाय उदास होने के। लेकिन ऐसा नहीं है कि ये मोबाईल चोरी करने वाले लोग इतने विलुप्त प्रकार के प्राणी हैं जिन्हें पकड़ा ही नहीं जा सकता। इनका बाकायदा अपना रैकेट है। एक बस में कम से कम पा्रच छह लोग एक साथ चढ़ते हैं। सामान्य से यात्रियों की तरह। इनमें से कुछ लोग चोरी करते हैं और कुछ ध्यान बटाने का काम। अक्सर चोरी करते ही ये लोग उतरकर भाग जाते हैं। और पता चलने तक बस स्टाप से आगे बढ़ चुकी होती है। जब तक आप अपना नम्बर किसी और के फोन से डायल करते हैं आपका फोन स्विच आफ किया जा चुका होता है। लेकिन कई बार लोगों को पता चल भी जाता है। ऐसी स्थिति में या तो ये लोग फोन बस में ही गिरा देते हैं या फिर चाकू या किसी धारदार हथियार से आप पर हमला तक कर देते हैं। अब सवाल ये है कि इन लोगों की हिम्मत इतनी बढ़ कैसे जाती है। जवाब साफ है। आप पुलिस के पास जाते हैं कि आपका फोन चोरी हो गया तो पुलिस आपसे यही कहती है कि गलती और लापरवाही दोनो आपकी है। अगली बार से ध्यान रखें। उल्टा आपको दो चार नसीहतें देकर पुलिस अपना पल्ला झाड़ लेगी। क्या पुलिस को कोई ऐसा सिस्टम नहीं बनाना चाहिये जिससे फोन चोरी करने वाले इस रैकेट का परदार्फाश किया जा सके। पुलिस की ओर से क्या ऐसी कारवाईयां नहीं होनी चाहिये कि इन चोरों की नाक में दम किया जा सके।
ऐसा क्या हो सकता है। मेरे खयाल से कुछ समाधान हैं इसके लिये। पुलिस चाहे तो जैसे डीटीसी टिकट चेक करने के लिए टिकट चेकर्स को नियुक्त करती है ऐसे ही कुछ पुलिस वाले सादी वर्दी में बसों में औचक निरीक्षण करें। बस के पूरे एक चक्क्र में वो ऐसे इलाकों पर खास ध्यान रखें जहां अक्सर चोरी की वारदातें होती हैं। ऐसे समय में बसों में छापे मारे जांए जब बसों में बहुत भीड़ रहती है। सुबह साढ़े आठ से ग्यारह बजे और शाम को चार बजे से आठ या नौ बजे इन बसों के लिए रस आवर्स होते हैं। इस समय सबसे ज्यादा भीड़ बसों में रहती है। नौएडा मोड़, आईटीओ, ओखला मोड़, राजघाट, लक्ष्मीनगर सहित अन्य सारे इलाकों में कड़ाई से छापे मारे जांयें जहां चोरी की वारदातें ज्यादा होती हैं।
लोग अपने फोन के आईएमईआई या इन्टरनेश्नल मोबाईल इक्विप्मेंट आईडेंटिटी नम्बर को अपने पास रखें। ये नम्बर आपकी बैटरी के पीछे लिखा होता है और इसे आप फोन पर स्टार हेस 06 हेस टाईप करके भी पता कर सकते हैं। ये नम्बर आजकल मोबाई नेटवर्क को ट्रेस करने के लिये प्रयोग किया जाता है। इस नम्बर को नोट कर अपने पास रखें। और फोन चोरी हो जाने पर पुलिस को सूचना दें। पुलिस चाहेगी तो आपकी मदद करेगी। नहीं चाहेगी तो भगवान मालिक।
खैर दूसरा फोन चोरी होने के बाद ये खतरा उठाते हुए कि आप लोग मुझे लापरवाह कहेंगे मैं अपनी बात ब्लौग के माध्यम से कह रहा हूं। इस आशा से कि एक ऐसा सिस्टम पुलिस या प्रशासन तैयार करे जिसमें फोन चोरी पहले तो न हो और यदि हो जाये तो ऐसे चोरों को पकड़ा जा सके। क्योंकि अभी जो हालात हैं उनमें फोन चोरी होना उसी तरह हो गया है। जैसे मैं कहूं आज पता है क्या हुआ मैने अपने लिए पालिका से जैकेट खरीदी, कालेज में मैने एक स्टूडियो प्रोग्राम बनाया, कैंटीन में बिरियानी खाई, ठंड होने लगी है, दिन में धूप सेंकने में बड़ा मजा आने लगा है, मैने दिन की पंाच चाय पी और हां आज भी मेरा फोन चोरी हो गया। हा हा हा।
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Mired Mirage
(November 24, 2009 - 6:26 pm)जिस देश में बलात्कार होने पर स्त्री के वस्त्रों को दोष दिया जा सकता हैं वहाँ पर आशा करते हैं कि आपसे यह न कहा जाए कि मोबाइल संभाल कर क्यों नहीं रखा या साथ में रखा ही क्यों, अपने से चेन करके क्यों नहीं रखा आदि। खैर मुझे दुख है कि आपका मोबाइल गया। चोरी अपवाद होनी चाहिए न कि आम।
घुघूती बासूती
Udan Tashtari
(November 24, 2009 - 9:35 pm)लिस चाहेगी तो आपकी मदद करेगी। नहीं चाहेगी तो भगवान मालिक। 🙂
Anonymous
(December 8, 2009 - 8:02 pm)But now you have got a new phone…Congrats..
PAINTINGEXHIBITION
(December 10, 2009 - 1:16 pm)kabil-e-tareef andaj-e-bayan………. wah ustad wah