छोटी कहानियां

टाकिंग टम्स
वो दोनों टाकिंग टम्स में नहीं थे। फेसबुक, जीटाक, स्काईप, बीबीएम सारे दरवाजे बंद थे। उसे लगा आज सचमुच खिड़कियों से हवा नहीं आ रही। रफ्ता रफ्ता उसके दिमाग में न जाने क्या बारुद की तरह जमा होने लगा। लगा कि कुछ ही देर में दिमाग आरडीएक्स हो जायेगा। वो रास्ते तलाशने लगा। सोचा कि कोई तो होगा जिससे उसके बारे में बात कर सकूं। रात के चार बज रहे थे और सब लोग आफलाईन । उसे लगा सारे रास्ते बंद हो गये हैं।
क्रेडिट कार्ड
उसने सोचा कि वह आज कह देगा। फिर उसे लगा पिछले चार महीने से वह यही तो सोचता रहा है। पर उसका इरादा इस बार पहले से कुछ ज्यादा मजबूत था। थोड़े डर और थोड़े संकोच के साथ वह कम्यूनिटी सेन्टर के बरिस्ता में दाखिल हो गया। वो वहां सोफे पर पहले से बैठी थी। टेबल पर कैपेचीनो के दो खाली कप और एक प्लेट में आधी बची खुची डार्क टेम्टेशन पड़ी हई थी। इससे पहले कि वो उस टेबल की तरफ बढ़ता एक लड़का आया और क्रेडिट कार्ड को अपने पर्स में डालकर सोफे पर उसके साथ बैठ गया। उसे लगा उसे लौट जाना चाहिये। उसके पास क्रेडिट कार्ड भी नहीं था..
फोकस शिफ्ट

उसने इस बार सोचा कि अबसे वो उसके बारे में कभी नहीं सोचेगा। ऐसे इस बार पहले भी कई बार आ चुके थे। उसे लगा कि उसके लिये वो इतना फोकस्ड है कि उसके बारे में न सोचने का खयाल हमेशा आउट आफ फोकस हो जाता है। हजार फिल्में देखने के बाद भी उसे अब तक नहीं पता था कि फोकस शिफ्ट करना भी कोई चीज होती है………….

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उमेश पंत

उमेश पंत यात्राकार के संस्थापक-सम्पादक हैं। यात्रा वृत्तांत 'इनरलाइन पास' और 'दूर दुर्गम दुरुस्त' के लेखक हैं। रेडियो के लिए कई कहानियां लिख चुके हैं। पत्रकार भी रहे हैं। और घुमक्कड़ी उनकी रगों में बसती है।

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