ये शहर इस मौत का जिम्मेदार है

(Last Updated On: April 3, 2023)

ये वाकया दिल्ली की संवेदनहीनता को बयान करता ह। ये बताता है कि दिल्ली के दिलवाले लोगों के बीच इस सड़कछाप वर्ग की देखरेख करने वाला कोई भी नहीं है। आज सुबह नौ बजे के करीब किसी काम से गुरुद्वारा बंग्ला साहिब के पास जाना हुआ तो वहां फुटपाथ पर लगभग बारह साल यह का बच्चा इस हालत में दिखाई दिया। बच्चे को इस हालत में देखने के बाद का लगभग एक घंटा भारी विडंबनाबोध में गुजरा। बच्चे की इस हालत के बारे में पास ही खड़े एक ट्रेफिक कर्मचारी से पूछने पर मालूम हुआ कि यह बच्चा कई दिनों से यहां बीमार हालत में पड़ा था लेकिन किसी ने इसकी सुध नहीं ली।

उस एक घंटे में जब में वहां मौजूद था तो लोगों की संवेदनहीनता और अकर्मण्यता की हद देखने का मिली। लोग आतेए बच्चे की इस हालत को देखते और गुजर जाते। मेरे तीन बार पुलिस चैकी के चक्कर लगाने और दो बार 011 पर बात करने के बाद दिल्ली पुलिस की पीसीआर वैन बच्चे के पास पहुंची। लेकिन मैं जानता था कि देर हो चुकी थी। बच्चे की जान जा चुकी थी।

काश कि पिछले दो तीन दिनों में इस सड़क से गुजरने वाले हजारों लोगों ने इतनी जहमत उठाई होती कि कम से कम पुलिस को ही इसकी खबर दे दी होती तो शायद यह जान बचाई जा सकती थी। सड़क पर कुत्तों से बदतर जिन्दगी जी रहे ऐसे मासूमों के नाम पर पैसा कमा रहे गैरसरकारी संगठन न जाने ऐसे मौको पर कहां गायब हो जाते हैं।

ऐसे मौकों पर न जाने हमारी पुलिस कहां की भाड़ झोक रही होती है और न जाने हमारी खुद के भीतर की दया कहां मर जाती है। समझ से परे है। जल्दबाजी के इस शाहर में हमारे अंदर का इन्सान शायद इतना मर चुका है की हमें इस तरह के मासूमों को सड़क पर मरते देखकर भी दया नहीं आती। हमारी आंखें इस मंजर को देख सहम नहीं जाती। ऐसे में न जाने किस मुंह से हम खुद को इन्सान कह पाते हैं। कम से कम मेरी समझ से तो यह बात परे है।

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उमेश पंत

उमेश पंत यात्राकार के संस्थापक-सम्पादक हैं। यात्रा वृत्तांत 'इनरलाइन पास' और 'दूर दुर्गम दुरुस्त' के लेखक हैं। रेडियो के लिए कई कहानियां लिख चुके हैं। पत्रकार भी रहे हैं। और घुमक्कड़ी उनकी रगों में बसती है।

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  • शायद यही इन्सानियत होती है। आपने जितना किया वह सराहनीय है।घुघूती बासूती

  • ये बहुत ही दुखद है, ईश्वर इस बच्चे की आत्मा को शान्ति दे “” पास ही खडे ट्रैफ़िक कर्मचारी को पता थ कि वो कई दिनों से वहा बिमारी की हालत मे पडा था””अत्यंत दुखःद पहलू उसने भी कोई कोशीश नही की ,वह तो एक “जिम्मेदार व्यक्ति” होगा ।

  • अधिकांश संगठन नाम और पैसा कमाने को हैं।

  • बहुत ही दुखद घटना है पर अब यहां कोई जावबदेह नहीं होगा । सरकार कहेगी की हम तरक्की कर रहे हैं पर इन जैसे लोगों का क्या ?

  • log, kaanoon aur sangthan bas apna bhala karte hain……..aapne ye kiya wo vaakayi manushyta hai ….

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