मुंबई में स्वाद की एक सड़क : मोहम्मद अली रोड

(Last Updated On: April 3, 2023)

Mumbai Diary 5 (September 2011)

कई जगहें ऐसी होती हैं जहां ना भी गये होते तो कुछ नहीं होता पर जहां जाने के बाद ऐसा लगता है कि यहां ना आये होते तो कुछ मिस हो जाता।

तो ये कहानी एक खोज से शुरु होती है।

कुछ दिनों पहले इसी मोहल्ले के जमीदार साहब अविनाश जी ने मिलने बुलाया…बातों ही बातों में फिल्मों की चीरफाड़ करने वाले अजय ब्रहमात्मज जी ने कहां कि आज हम एक खास जगह जा रहे हैं….चलोगे…? कहां पूछने पर जवाब नहीं दिया गया… अविनाश जी ने अधिकार पूर्वक मेरी ओर से कह दिया कि बिल्कुल चलेंगे…. सस्पेंस …कि कहां जाना है, अब भी बर्करार था.. समय और मौका हो तो दस्तूर को दूर भी तो रखा जा सकता है…. हामी भर दी गई। फिर जोगेश्वरी से ट्रेन चली तो मुम्बई सेन्टल पे जाके रुकी….. थोड़े से इन्तजार के बाद 6 लोगों का कारवां रमजान के मौके पे जुटी उस अन्तहीन भीड़ का हिस्सा हो गया… लक्स्य केवल एक था… कुछ अच्छा खाना है। मुम्बई सेन्टल रेलवे स्टेशन के कुछ दूर गुजरती गा्रंट रोड में भिन्डीबाजार के पास कहीं एक तरफ बनी मिनारा मस्जिद के ओर- छोर फैली उस असंख्य भीड़ में गाडि़यों की मशीनी और इन्सानों की अजनबी आवाजों के बीच हमारे कदम चल रहे थे…. कुछ ढूंढते हुए….

पेट में भूख थी और मुम्बई में वो जगह, मुहम्मद अली रोड. उसपे मौका रमजान का. आलम ये कि भीड़ हवा को शोर में बदल दे. और अच्छा खासा आदमी उंचा सुनना शुरु कर दे… लेकिन हाय वो खुशबुएं… उन कई खुशबुओं से भरी उस एक गली में जाते ही तबीयत हरी हो गई। हम ही नहीं थे वहां जो उस खुशबू के पीछे चले आये थे… रमजान के मौके पे पूरी मुम्बई से लोग अपने व्यस्त रुटीन के बीच कम से कम एक दिन मुहम्मद अली रोड की उस मशहूर और स्वादिश्ट गली में चले आते हैं, ताकि स्वाद को अपने होने का असल मतलब और पेट को जन्नत नसीब हो सके….. सुबह से देर रात तक खाने का एक उत्सव चलता है यहां। वैज, नौनवेज हर तरह का खाना। वेजीटेरियन्स के लिये उस्मान सुलेमान मिठाईवाला के मालपुए, फिरनी, अफलातून, साही हलवा, मलाई खाजा जैसी बेहतरीन स्वाद से भरी डिशेज और नौनवेजीटेरियन्स के लिये यहां के खास रेशमी टिक्के, सीक कबाब, शारमा, चिकन रोल सरीखी लज्जतदार डिशेज, इनायतों से कम नहीं लगती…. हम भी पहुंचे तो सबसे .पहले सुलेमान नाम की उस दुकान में ठंडी दही के साथ गरमागरम मालपुआ और फिर……रेशमी टिक्का, सीक कबाब ,कीमे और आलू का वो बेनामी मिस्रण, चिकन रोल वगैरह वगैरह का लुत्फ उठाये बिना न रह पाये। स्वाद ऐसा कि अब तक बना हुआ है मुंह में…… फिर मीठे में फालूदा और अंत में बनारसी पान। लगा कि जैसे अच्छा स्वाद आनन्द का पर्यायवाची रहा हो कभी।

खा पी लिया तो वापसी सिलसिला हो गई। कुल मिलाकर कुछ नया और अच्छा खाया, कुछ नये दोस्त बने. अजय ब्रहमात्मज जी ने पान की वैराईटी पे एक छोटा सा व्याख्यान चलते चलते दिया जिससे मैं ये जान सका कि बनारसी, कलकत्ता और मजीठी पान में दरअसल अन्तर क्या होता है। कैसे पान की पत्तियों का रंग उसका जायका तय कर देता है.

ट्रेन से वापस लौटते हुए सोचा कि एक ही सफर अलग अलग समय में अलग अलग लोगों के साथ कितना अलग हो जाता है. हमीं में से एक थे जो खाने के शौकीन तो यकीनन थे पर काम में मशरुफियत के चलते पिछले आठ सालों में एक भी बार मोहम्मद अली रोड नहीं जा सके। और हमीं में से एक जो दिल्ली से कुछ दिनों के लिये आये और ज़ुबान भर स्वाद का पिटारा अपनी यादों की गठरी में बांध के ले गये। हमीं में से एक जिन्होंने जम्मू की फलाईट की सबसे सस्ती टिकिट बस खरीद ली। बिना तय किये कि क्यों जाना है, कहां ठहरना है। कि भैयया पहुंचेंगे तो तय कर लेंगे। जीते जी जन्नत नसीब हो रही है …क्यों इतना सोचना।

सब खयालों का खेल लगता है कभी कभी। सही, गलत, ये नहीं खाना, ऐसा नहीं करना, टाईम ही नहीं मिलता, .वगैरह वगैरह. अपनी सहूलियत के लिये कितना बांध लेते हैं हम खुद को। एक कम्फर्ट जोन में रहने की आदत सी बना लेते हैं शायद। हममें से बहुत कम इस कम्फर्ट जोन के बाहर की दुनियां को जी पाते हैं। जहां जिन्दगी अपनी पूरी उन्मुक्तता के साथ बिखरी पड़ी हो शायद। न कोई डर, न बंधन…. मनमाफिक जी पाना इतना आसान भी तो नहीं है। पर शायद उतना मुश्किल भी न हो जितना हम समझते रहे हों। कितना अच्छा होता कि दूसरों को नुकसान पहुंचाये बिना, किसी का बुरा सोचे बिना हम सब वो जि़न्दगी जी पाते जो हम असल में जीना चाहते हैं। लेकिन जिन्दगी से जुड़े हज़ारों सवालों के बीच हम अक्सर इस एक सवाल को लेकर कन्फयूज हो जाते हैं कि हम जीने के लिये काम कर रहे हैं, या काम करने के लिये जी रहे हैं…..

खैर इधर रमजान और उधर दही हांडी की धूम। सड़क दर सड़क, गली दर गली न जाने कितने लोग डीजे के शोर में मतवाले हुए अपने -अपने कन्हैययाओं को याद कर रहे हैं इन दिनों। फिल्मी गीतों की धुन में नाचता मुम्बई मस्त हुआ जा रहा है। टिंकू जिया, और बाबूजी ज़रा धीरे चलो पर नाचते लड़के इन्सानी मीनारें बनाकर दही की हांडी फोड़ने की कोशिश में लगे हैं। लेकिन खास बात ये कि उंचाई पर बंधी रस्सी के बीच लटक रही उन हांडियों के इधर उधर कहीं बीजेपी तो कहीं कांग्रेस का झंडा लहरा रहा है। कलयुग में कन्हैयया नेताओं और पार्टियों के भी दुलारे हुए जा रहे हैं। टूटी फूटी सड़कों पे लम्बे लम्बे जाम लगाकर जनता आज अपने कान्हा को याद कर रहीं है, कल से कुछ दिनों तक गढढेदार सड़कों की वजहकर लग रहे जाम को शायद कोसे, फिर गणपति बप्पा बस आने वाले हैं। आधे दुख तो वो भी भुला ही देंगे.

इन दिनों दिल्ली की तरह मुम्बई में भी लोगों को अन्ना की आदत हो रही है। लोगों के छोटे छोटे समूह कभी लोखंडवाला तो कभी गेटवे आफ इन्डिया के आस पास मैं अन्ना हू, मैं अन्ना हूं कहते नज़र आ जाते हैं। इस अन्नाईजेशन के दौर के समानान्तर काश कि एक रियलाईजेशन का दौर भी चलता। तो हम में से 90 प्रतिशत से ज्यादा लोगों को समझ आ जाता कि मैं भ्रष्टाचार हूं। अन्ना नाम का वो आदमी क्यों कह रहा है, क्या कह रहा है इससे ज्यादा अहम उसका कहना लगने लगा है.

इस सब के बीच लिखा-पढ़ी का दौर जारी है। देर रात कीबोर्ड पे टिपटिपाती उंगलियों में जब शिथिलता आने लगती है तो अन्ना याद आते हैं। मुम्बई के कोने-कोनें में कई अन्ना हैं जो रात के बारह बजे से सुबह के पांच बजे तक सड़कों पर अपनी अपनी साईकिल लिये काफी, चाय, इडली, वड़ा और धूम्र दंडिकांएं लिये मिल जाते हैं। रात को लिखापढ़ी करने वाले हम जैसे लोगों के लिये ये अन्ना लोग किसी वरदान से कम नहीं हैं। रात को अपनी अपनी शिफटों से लौटते लड़के, लोगों को उनकी मंजिलों तक पहुंचाने के बीच छोटा सा ब्रेक लेते औटो वाले, या फिर रात की खामोश तनहाई से उकताए हुए कुछ अकेले पड़ गये से लोग…. अन्ना के दरबार में हर किसी का स्वागत है। ये वो अन्ना हैं जो टीवी पर कभी नहीं दिखेंगे, लेकिन रात के अंधेरों के बीच हमें और आपको तब तक चाय कौफी पिलाते रहेंगे जब तक चाय और कौफी हमारी तलब का, और हम आप लोग सम्भावनाओं के इस अनौखे शहर आमची मुम्बई में पलने वाले रतजगों का हिस्सा बने रहेंगे.

Loading

उमेश पंत

उमेश पंत यात्राकार के संस्थापक-सम्पादक हैं। यात्रा वृत्तांत 'इनरलाइन पास' और 'दूर दुर्गम दुरुस्त' के लेखक हैं। रेडियो के लिए कई कहानियां लिख चुके हैं। पत्रकार भी रहे हैं। और घुमक्कड़ी उनकी रगों में बसती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *