view of Eiffel Tower from seine river cruise

पेरिस के बारे में जानना चाहते हैं तो पढ़ें इस यूरोप यात्रा की कहानी

(Last Updated On: April 3, 2023)

पेरिस के बारे में सुना तो बहुत था लेकिन अब वह मौक़ा आ चुका था जब मुझे वहाँ जाना था। ज़िंदगी में कुछ चीज़ें अचानक होती हैं. मेरी यूरोप ट्रिप भी एक दिन ऐसे ही अचानक तय हो गई.

वैसे मेरी यूरोप यात्रा के लेखक राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तांत और एक बूँद सहसा उछली यात्रा वृतांत के लेखक अज्ञेय को पढ़कर यूरोप यात्रा को लेकर उत्सुकता पहले से थी.  लेकिन जब अपनी यूरोप यात्रा की योजना तय हुई तो इस जिज्ञासा को शांत करने का उत्साह कई गुना बढ़ गया.


दिल्ली से रोम फ़्लाइट

दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट में check in और immigration की औपचारिकता के बाद हम ‘अल इटालिया’ (Alitalia) की फ़्लाइट में थे. दिल्ली से रोम की फ़्लाइट क़रीब दस घंटे की थी.

रोम से कनेक्टिंग फ़्लाइट लेकर हम पेरिस आ गए. रोम के एयरपोर्ट में शॉपिंग एरिया और टर्मिनल गेट इतने मिले-जुले से हैं कि सही टर्मिनल तक पहुंचने में बहुत मशक़्क़त करनी पड़ी.

हमारी कनेक्टिंग फ़्लाइट बस पंद्रह मिनटों में थी. लग रहा था फ़्लाइट पक्का मिस हो जाएगी. किसी तरह भागते-दौड़ते टिकिट पर लिखे बोर्डिंग गेट पर पहुंचे तो पता लगा बोर्डिंग गेट चेंच कर दिया गया है.

ख़ैर आखिर बदले हुए गेट पर किसी तरह हम वक़्त रहते पहुंच ही गए. यह एक छोटा विमान था जो हमें लेकर बस थोड़ी ही देर में पेरिस की तरफ उड़ गया.

पेरिस में जब हमने लैंड किया तो मौसम बहुत ख़ूबसूरत था. एकदम नीले आसमान पर बादल बिखरे हुए थे. यहां जाने क्यों मुझे आसमान ज़्यादा खुला-खुला सा लग रहा था.

एयरपोर्ट के पास रोईजी नाम के इलाके में हमारा होटल था. फ़्री शटल से हम अपने होटल आ गए. यहां हमें चेक इन करने के लिए थोड़ा इंतज़ार करना पड़ा क्योंकि हमारी बुकिंग का टाइम शुरू होने में अभी थोड़ा वक़्त था. आज जेट लेग उतारने का दिन था. यानी कि रेस्ट का. पेरिस के बारे में अब मेरा उत्साह कई गुना बढ़ चुका था और अगली सुबह बहुत मज़ेदार होने वाली थी।

एफिल टावर (Eiffel Tower)

Eiffel Tower height
Eiffel Tower height is about 324 meter

सबसे पहले आप यह ज़रूर जानना चाहेंगे कि एफिल टावर कब बना ? आप शायद यह भी जानना चाहेंगे कि एफिल टावर क्यूं बनाया गया ?

तो बता दूं कि आइरन लेडी नाम से मशहूर इस टावर को फ़्रेंच रेवल्यूशन (french revolution) के 100 साल साल पूरे होने की ख़ुशी में बनाया गया था और यह 1889 में बनकर तैयार हुआ. एफिल टावर की ऊंचाई 324 मीटर है यानी क़रीब 84 मंज़िल की इमारत के बराबर.

अगर आपको जिज्ञासा हो कि एफिल टावर किसने बनाया तो ये भी बता दूं कि ये मशहूर टावर गुस्ताव एफिल नाम के सिविल इंजीनियर के दिमाग की उपज माना जाता है.

इसे आप मेरी नासमझी ही कहें पर यहां आकर मुझे पहली बार पता चला कि एफिल टावर में आप लिफ़्ट से ऊपर भी जा सकते हैं. एक बड़ी सी लिफ़्ट हमें टावर के सेकंड लेवल पर ले आई.

Eiffel Tower second floor view
एफिल टावर (Eiffel Tower) के दूसरे लेवल से नज़र आता पेरिस का विस्तार (फ़ोटो : उमेश पंत)

इस लेवल की ऊंचाई थी यही कोई 110 मीटर और यहां ऊपर पहुँचकर क्या शानदार नज़ारा था. शीन नदी और उसके किनारे बसा पूरा पेरिस शहर यहां से दिख रहा था.

पेरिस की खास यूरोपियन गोथिक शैली में बनी सबसे शानदार इमारतें यहां से नज़र आ रही थी. एफिल टावर के बारे में एक और खास बात ये है कि धूप और हवा के चलते यह टावर अपनी जगह से दाएं-बाएं होता रहता है. सूरज की गर्मी की वजह से ये अपनी जगह से सात इंच तक हिल जाता है. मेटल का जो बना है.

view of seine river from Eiffel Tower
एफिल टावर से नज़र आती शीन नदी (seine river) और ‘प्लेस डू ट्रोकाडीरो’ (Place du Trocadero) का फ़व्वारा’

एफिल टावर से जिस ओर नज़र ले जाओ उस ओर कोई ख़ूबसूरत इमारत हमसे नज़र मिलाने लगती. टावर के चारों तरफ़ पैसेज बने हुए थे जहां से हज़ारों लोग पेरिस की खूबसूरती को निहारते निहाल हो रहे थे.  

Places to visit in Paris
फ़ोटो : उमेश पंत

टावर में ही यादगारी की चीज़ो के साथ-साथ खाने-पीने के लिए कैफ़े भी बने हुए थे. सोविनियर्स से लेकर केक तक, यहां सब कुछ मिल रहा था. हमने आम भारतीयों की तरह फ़्रेंच फ़्राइज़ ऑर्डर किए साथ में कुछ मेक्रोन भी मंगा लिए गए और अपने पेट को तसल्ली दे दी गयी.

मन तो नहीं था पर अब हमें एफिल टावर से आगे बढ़ना था.



पेरिस में घूमने की दूसरी जगहें

यहां से निकलकर कुछ ही देर में हम बस में थे जो पूरे पेरिस शहर का चक्कर लगा रही थी. बस की बड़ी-बड़ी खिड़कियों के बाहर पेरिस की ऐतिहासिक इमारतें नज़र आ रही थी.

एक टूर गाइड हमारे साथ थी जो इन इमारतों के बारे में बता भी रही थी.  इनवेलिड्स, एस्पीनादो एवलीत, बर्बन पैलेस होते हुए हम कॉनकॉर्ड स्कवायर या प्लेस डे ला कॉनकॉर्ड (place de la concorde) की ओर बढ़ गए.


प्लेस डे ला कॉनकॉर्ड (Place de la concorde)

Luxor Obelisks
मिश्र से उपहार मिला लक्ज़र ओबलिस्क (Luxor Obelisks) या स्तम्भ (फ़ोटो : उमेश पंत)

इसी स्क्वायर से फ़्रांस की क्रांति की शुरुआत हुई थी. इस चौराहे पर फ़्रांस की क्रांति के दौर में गिलोटिन (Guillotine) पर दुश्मनों के सर कलम किए जाते थे. यहां एक स्तंभ भी नजर आ रहा था जो 3300 साल से भी ज़्यादा पुराना है.

place de la concorde fountain image
place de la concorde fountain

मूलतः मिश्र में लक्ज़र के मंदिर के बाहर लगे इस स्तम्भ को मोहम्मद अली पाशा ने फ़्रांस को एक मैकेनिक क्लॉक के बदले तोहफ़े में दिया था. हमारी ही तरह इसकी भी यात्रा कितनी रोचक रही होगी.

यह चौक यहां के फ़व्वारों के लिए भी मशहूर है.


एवेन्यू डे शों एलीसी (Champs elysees)

Champs-Élysées
view of Champs-Élysées

प्लेस डे ला कॉनकॉर्ड से शुरू होकर क़रीब 1.9 किलोमीटर के अहाते में बने इस इलाके को फ़्रांस की क्रांति के नायकों की यादगारी की जगह भी माना जाता है. यहां हर साल फ़्रांस की मशहूर आर्मी परेड भी होती है.


आर्क दी ट्रायंफ (Arc de triomphe)

arc de triomphe view
‘आर्क दि ट्रायंफ़’ (arc de triomphe) जिससे दिल्ली के इंडिया गेट की प्रेरणा ली गई थी (फ़ोटो: उमेश पंत)

आर्क दि ट्रायंफ़ फ़्रांस की मशहूर खूनी क्रांति में शहीद हुए नायकों का एक स्मारक है. इसमें उन सभी युद्धों के नाम लिखे गए हैं जिनमें फ़्रांस को जीत मिली. पहले विश्वयुद्ध के एक अनाम शहीद की याद में बना एक स्तम्भ भी इसके अंदर है.


पिती पैलेस (Pitti Palace)

Pitti Palace image
Pitti Palace Paris

यहां से आगे बढ़े तो हम ग्रों पैलेस और पिती पैलेस से गुज़र रहे थे. यह पेरिस की एक और मशहूर इमारत है.


सॉंज़ एलीसी मार्केट

पेरिस का मार्केट एरिया अपनी ख़ूबसूरत इमारतों के लिए मशहूर है (फ़ोटो : उमेश पंत)

इस चक्कर में सोंज़ एलीसी की मशहूर मार्केट में भी हम घूमे. कुछ देर बस यहां रुकी ताकि बाज़ार में घूमा जा सके. यहां दुनिया के सबसे मशहूर ब्रैंड थे और यूरोपीय फ़ैशन की चलती-फिरती प्रदर्शनी भी.

पेरिस के बारे में एक ख़ास बात यह लगी कि यहाँ युवाओं में सफ़ेद जूतों का खास क्रेज़ दिख रहा था जिस पर मेरी निगाह बार-बार जा रही थी.


लूव्र म्यूज़ियम (louvre museum)

louvre museum paris architecture
louvre museum paris

चलते-चलते फ़्रांस का यह मशहूर संग्रहालय हमारे सामने था. इस संग्रहालय में मोनालिसा की पेंटिंग भी रखी गई है जिसे पुनर्जागरण के दौर के मशहूर चित्रकार लियोनार्दो दा विंची ने बनाया था.

यह पेंटिंग मोनालिसा की मुस्कान के लिए तो मशहूर है ही साथ ही मोनालिसा की इस तस्वीर का रहस्य क्या है देखने वालों को इसकी जिज्ञासा भी रहती है.


नोट्रे डेम (Notre Dame)

Image of notre dame paris
notre dame paris

दूर से नोट्रे डेम की इमारत दिखाई दे रही थी. इस चर्च में मध्यकालीन फ़्रांस की वास्तुकला को हम अपने सामने देख सकते थे.



शीन नदी (seine river) पर क्रूज़ राइड

seine river cruise
seine river cruise से सफ़र के दौरान एफ़िल टावर के सीने से गुज़रती ट्राम (फ़ोटो : उमेश पंत)

बस में तो हम पेरिस का एक चक्कर लगा चुके थे अब बारी थी शीन नदी पर क्रूज़ राइड की इस नदी से पेरिस का एक अलग ही चेहरा दिख रहा था. क्या सम्भाल के रखा है इन्होंने अपना आर्किटेक्चर.

इस राइड को करते हुए तो ऐसा लग रहा था जैसे हम किसी फ़िल्म का हिस्सा हो गए हों. जिस लम्हे में ज़िंदगी एक खूबसूरत फ़िल्म लगने लगे तो समझिए कि आप वाकई उसे जी रहे हैं.



रात के वक़्त पेरिस की सैर

हमने सुना था कि एफिल टावर रात को कुछ और ही ख़ूबसूरत लगता है. तो हम चले एक बार फिर उससे मिलने. वाकई ऐसा लग रहा था जैसे रोशनी में नहाके एकदम तैयार होकर आया हो एफिल टावर.

Eiffel tower at night
रोमांस के शहर में मिल गई एक रोमांटिक तस्वीर (फ़ोटो : उमेश पंत)

थोड़ी-थोड़ी देर में एफिल टावर पे हो रही लाइटिंग क्या कमाल थी. 100-200-1000 नहीं पूरे 20 हज़ार लाइट बल्ब हैं एफिल टावर में. 

Les Invalides
रोशनी में जगमगाती ‘दि इनवेलिड्स’ (Les Invalides) की इमारत (फ़ोटो : उमेश पंत)

एकदम जादुई नज़ारा था ये. रोशनी में जगमागाते इसी नज़ारे के साथ हमारी पेरिस की यह यात्रा पूरी हुई और अब बारी थी यूरोप के अगले शहर की.

arc the triomphe
‘आर्क दि ट्रायंफ़’ (arc the triomphe) इंडिया गेट में रात की सैर की याद दिला देता है (फ़ोटो : उमेश पंत)

उम्मीद है पेरिस के बारे में यह यात्रा वृत्तांत आपको पसंद आया होगा। यूरोप यात्रा पर सिलसिलेवार यात्रा वृत्तांत पढ़ने के लिए आप नीचे दिए गए लिंक पर जा सकते हैं।


देखिए पेरिस ट्रिप पर बनाया यह व्लॉग यात्राकार के यूट्यूब चैनल पर

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उमेश पंत

उमेश पंत यात्राकार के संस्थापक-सम्पादक हैं। यात्रा वृत्तांत 'इनरलाइन पास' और 'दूर दुर्गम दुरुस्त' के लेखक हैं। रेडियो के लिए कई कहानियां लिख चुके हैं। पत्रकार भी रहे हैं। और घुमक्कड़ी उनकी रगों में बसती है।

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