ट्रैवल बुक रिव्यू : कुछ इधर ज़िंदगी कुछ उधर ज़िंदगी, गीता श्री
समीक्षक : कुमार सुशांत
कुछ महीने पहले गीताश्री की एक पुस्तक आयी है जिसका नाम है “कुछ इधर ज़िंदगी कुछ उधर ज़िंदगी।” यह पुस्तक उतनी चर्चित नहीं हुई जितनी अमूमन गीताश्री की पुस्तकें होती हैं। दरअसल यह पुस्तक यात्रा संस्मरण है। जैसा की सभी को ज्ञात है कि यात्रा संस्मरण की पुस्तक के पाठक कम और अलग किस्म के होते हैं।
इस पुस्तक की शीर्षक को पढ़ते ही प्रश्न उठता है कि इधर-उधर आखिर किधर जिंदगी ? उत्तर है – कुछ इधर जिंदगी कुछ उधर जिंदगी ! मनुष्य की जिंदगी कुछ इधर-उधर में ही कट जाती है। एक तरफ जीवन की आपाधापी होती है तो दूसरी तरफ पूरी दुनिया घूमने की इच्छा। अधिकांश मनुष्य अपनी इच्छाओं को मार देता है और दुनियादारी में लगा रहता है।
लेकिन गीताश्री की गिनती उन असाधारण मनुष्यों में है जो जीवन की आपाधापी में भी यात्राएं ढूंढ लेती हैं। उन्हीं के शब्दों में कहूँ तो –
“मैंने यात्रा का कोई अवसर कभी नहीं गंवाया। आगे बढ़ कर मौके हासिल किए और तमाम अवरोधों को पार कर यात्राएं की। कई तरह के जोखिम उठाए। घर-दफ्तर की नाराजगियां झेलीं। छोटी बच्चे को छोड़कर जाने का गिल्ट सहा।”
अब इसी से अंदाजा लगा लीजिये कि जो स्त्री अपनी छोटी बच्ची को छोड़कर यात्राएं कर सकती है, उसके लिए यात्रा का महत्व क्या रहा होगा !
देश विदेश की यात्राओं के वृत्तांत
इस किताब में गीताश्री के द्वारा की गई देश-विदेश की यात्राओं का वर्णन है। उन्होंने पूरे किताब को दो खण्डों में रखा है। पहले खण्ड का नाम देस खंड है तो दूसरे खण्ड का नाम परदेस खंड है। देस खंड के अंतर्गत दक्षिण भारत, खज्जियार, राजस्थान, केरल, झाड़खंड, कुशीनगर, मणिपुर, पटनी टॉप (जम्मू क्षेत्र) और गोवा की यात्रा का वर्णन है।
परदेस खंड के अंतर्गत फुकेत, बाली द्वीप, श्रीलंका, सीरिया, दक्षिण कोरिया, प्राग, भूटान, स्पेन, ईरान, ब्रसेल्स (बेल्जियम) और तिब्बत की यात्रा का वर्णन है।
यात्रा संस्मरण पढ़ने का फायदा यह होता है कि घर बैठे बिना किसी खर्च के आप उस जगह पर पहुंच जाते हैं जहाँ का वर्णन आप पढ़ रहे होते हैं। यात्रा संस्मरण पाठक को कल्पना लोक में ले जाती है। पाठक घर बैठे देश-विदेश, जंगल-झाड़, रेगिस्तान, पहाड़ , समुन्द्र की यात्रा कर लेता है।
यात्रा संस्मरण की भाषा सशक्त होनी चाहिए अन्यथा पाठक को रोमांचित नहीं होते हैं। गीताश्री इस मामले में धनी हैं। उन्हें मालूम है कि पाठक को कैसे हवाई घोड़े पर सवार कर यात्रा करवानी है और यात्रा संस्मरण पढवानी है। उन्हीं के शब्दों में कहूँ तो वे “बौखलाया हुआ गद्य” की मालकिन हैं। उनकी भाषा में ऐसा जादू है कि जब पाठक उनकी यात्राओं का वर्णन जब पढ़ना शुरू करता है तो उसकी गिरफ्त में फंसता चला जाता है और बिना समाप्त किये उसे छोड़ नहीं पाता है।
18 साल रिपोर्टिंग करने का अनुभव यात्रा वृत्तांत में झलकता है
यात्रा संस्मरण को पाठक लेखक की दृष्टि से पढ़ता है अर्थात पाठक की आँख लेखक होता है। हर लेखक का अपना दृष्टिकोण होता है। गीताश्री का भी अपना दृष्टिकोण है। हर लेखक का अलग दृष्टिकोण होने के कारण एक ही स्थान का वर्णन हर लेखक अलग-अलग ढंग से करता है। गीताश्री यात्रा संस्मरण लिखते-लिखते रिपोतार्ज लिखने लगती हैं। रह-रह कर उनका अट्ठारह साल रिपोर्टिंग करने का अनुभव बाहर आ जाता है। उदाहरण स्वरूप सीरिया-2 यात्रा के वर्णन को देखा जा सकता है।
एक जगह वे लिखती हैं –
” इजराइल अधिकृत गोलन में यूं तो 244 गांव आते हैं, लेकिन 5 गांव ऐसे हैं, जिसमें सीरियाई नागरिक रहते हैं। इन पाँच गाँवों में रहने वाले 30 हजार द्रूज मुस्लिमों के लिए जिंदगी मुश्किलों का पहाड़ बन चुकी है। तार के बाड़ों से घिरे ये गांव वाले लगातार मौत, यातनाओं और शोषण का शिकार हो रहे हैं। इन गांव में रहने वाले बच्चों और युवाओं के लिए न तो शिक्षा और न ही स्वास्थ्य की बेहतर सुविधाएं हैं।”
गीताश्री का यह रिपोर्टर रूप संस्मरण की भाषा में प्रवाहमयता को बढ़ाता है। यात्रा संस्मरण की भाषा और रिपोर्टर की भाषा का योग उनकी भाषा को नए स्तर एवं नए आयाम पर लेकर जाती है। पाठक को यह भाषा बांध लेती है और पूरी पुस्तक पढ़ने को बाध्य कर देती है।
‘विनोद कुमार शुक्ल’ के उपन्यास ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के रघुवर प्रसाद जब अपनी पत्नी ‘सोनसी’ को देखते हैं तो हर बार देखने में कुछ ना कुछ छूट जाता है क्योंकि सोनसी के रूप में बासीपन नहीं है। स्वयं विनोद कुमार शुक्ल के शब्दों में कहें तो ‘सोनसी नित नई सुबह थी।’
ताज़गी भरे यात्रा के क़िस्से
गीताश्री द्वारा लिखी गई यात्रा संस्मरण में भी बासीपन नहीं बल्कि टटकापन है। उसे जितनी बार पढ़ो उतनी बार लगता है कि उसमें नित नई सुबह की ताजगी है।
गीताश्री यह किताब पाठकों को सौंपने से पहले यह ऐलान करती हैं कि –
” अगली किताब में ग्रामीण टूरिज्म का विशेष खंड होगा और यूरोप चीन और अमेरिका की यात्राएं होंगी।”
गीताश्री की उपर्युक्त पंक्तियों से यह पता चलता है कि ‘कुछ इधर जिंदगी कुछ उधर जिंदगी’ नामक इस किताब को लिखने में गीताश्री को बहुत आनंद आया है। इसी कारण वे इसी किताब की भूमिका में अगले किताब की घोषणा कर देती हैं।