दिल्ली की भीड़ भरी बसों में रोज कई वाकये होते हैं। मसलन मोबाईल या पर्स चोरी हो जाना। पर इन वाकयों को अंजाम देने वाले लोग ये काम चोरी छिपे करते हैं। उन्हें किसी का डर होता है। यह किसी शायद प्रशासन होता है, माने पुलिसिया डंडा और मार। पर जो वाकया आज हुआ उसे उदेखकर लगता है इस किसी का डर अब किसी को नहीं रह गया है। खासकर उनको जिन्होंने शायद हर किसी को अपनी मुट्ठी में कर लिया है। किसी को ताकत के बल पर तो किसी को पैसे के।
शाम के लगभग साढ़े सात बजे जामिया एस्कार्ट से मैं 534 नं की बस में चढ़ा। और महज दो स्टाप बाद तैमूर नगर के पास एक हट्टा कट्टा सा आदमी हाथ देकर बस रोक रोकता है। वह आदमी गाली करता हुआ बस में चढ़ता है और कन्डक्टर से 500 रु की मांग करने लगता है। कन्डक्टर नानुकुर करता है तो वह हाथापाई पे उतर जाता है। 15 -20 करारे झापड़ झेल लेने के बाद कन्डक्टर चुक जाता है। वह पैसे निकालने के लिए जेब में हाथ डालता हैतो गलती से हजार रुपये का एक नोट उसके हाथ में आता है और वह आदमी उसी को लेकर बस से उतरता पड़ता हैऔर आगे वाले दरवाजे से फिर वो उसी बस में चढ़ जाता है। वहां वह दूसरे कन्डक्टर से 300 रुपये फिर उगाहता है। और बेखौफ उतर जाता है अपने अगले शिकार की तलाश में।
रोड पर जाम लगा है सो शिकार हाथ आने में कोई परेशानी है भी नहीं। बस में बैठा हर शख्स घटना को चुपचाप देखता रहा। उस बाहुबली के जाने के बाद कन्टक्टर पुलिस को फोन करता है तो वहां से जवाब नहीं बल्कि एक सवाल आता है कि ये तैमूर नगर कहां पर है? मतलब साफ था कि या तो दिल्ली पुलिस इतनी नालायक है कि उसे शहर के बारे में जानकाररी ही नहीं है। लेकिन यकीन मानिये इतनी नालायक दिल्ली पुलिस है नहीं। और अगर यह यकीन सही है तो फिर दिल्ली पुलिस बिकी हुई है। गाड़ी के कन्डक्टर ने बताया कि ये लाग पुलिस को मोटी रकम देकर खुलेआम बसों से पैसा उगाह लेते हैं। वरना तैमूर नगर थाने से पुलिस को घटनास्थल तक पहुंचने में बमुश्किल 5 मिनट लगते और अगर वो चाहती तो बाहुबली जिसके साथ महज एक आदमी और था, आराम से पकड़ा जा सकता था। लेकिन ऐसा चाहना पुलिस वालों के उपरी निवाले का एक हिस्सा छीन लेना होता। और कोई अपने ही निवाले को अपने ही हाथों से नहीं छीन सकता ये कौन नहीं जानता।
बस के कन्डक्टर ने बताया कि उसने इस आदमी को पहली बार इस बस में चढ़ते देखा है और उसके साथ ऐसी घटना दो तीन बार पहले भी हो चुकी है और हर बार अलग अलग जगह पर। मोने यह कि इन लोगों का एक बड़ा नेक्सेस शहर में काम कर रहा है जिससे पुलिस भी मिली हुई है। जिसे पकड़े जाने का कोई खौफ नहीं है। और बस में चढ़े हुए आम आदमी की जेब से जब तक उसका पर्स या मोबाईल गायब नहीं हो जाता उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि बाकी लोगों के साथ क्या हो रहा है। न उसमें इस बात की हिम्मत है कि वो ऐसे बाहुबलियों का मुकाबला कर सके न भरोसा कि वो हिम्मत करेगा भी तो उसका साथ देने वाला कोई एक भी माई का लाल सामने आएगा।
मुझे नहीं पता कि इस घटना का यहां उल्लेख कर देने से क्या होगा। मुझे कोई हक भी नहीं बनता कि मै किसी से कोई गुजारिश करुं क्योंकि इस बार इस घटना को मैने भी बस उसी निष्कृय आम आदमी की नजर से देखा है। लेकिन जिस दिन मैं इतनी हिम्मत जुटा लूंगा कि मैं अकेला ही सही, मार खकर ही सही, ऐसी घटना का घटनास्थल पर विरोध कर सकूं उस दिन मैं गुजारिश करुंगा कि हो सके तो ऐसी घटना का विरोध करें या पुलिस पर दबाव बनायें।लेकिन आज यह गुजारिश करना भी मेरे अधिकारक्षेत्र में नहीं है। एक आम आदमी के अधिकार क्षेत्र में जिसने इस घटना को चुपचाप, सर झुकाकर देख भर लिया है एक अपराधबोध को अपने सर पर लादे हुए।
7 Comments
संदीप शर्मा
(September 12, 2009 - 12:28 am)bilkul sahi…
apradhi or police me jyada antar nahi hota…
Ankur's Arena
(September 12, 2009 - 1:08 am)यह एक ऐसा हादसा है उमेश, जिससे हम तुम रोज़ किसी न किसी रूप में आमना-सामना करते हैं और चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते. ऐसे में हमारी यह अपंगता ही इन घटनाओं के बढ़ने का कारण है कि हम विरोध नहीं करते. हम बस डरते हैं, कि कहीं उस जैसे बाहुबली के हाथ से दो चार न पड़ जाएँ. लेकिन भूल जातें हैं कि भैया उसका अगला शिकार हम भी हो सकते हैं! और तब हम ज़रूर चाहेंगे कि सब हमारा साथ दें, उसे सबक सिखाने में…
और दोस्त जहाँ तक पुलिस का सवाल है, तो कुछ मत कहो… चुप रहो. कहीं उस बाहुबली ने तुम्हारी शिकायत कर दी, तो तुम्हारा एनकाउंटर तक हो सकता है और तुम्हारे जुर्म के सबूत वहां पहले से कई फाइलों में अडवांस में पड़े होंगे… ये कॉम हमारी मदद के लिए कम, हमसे मदद लेने में ज्यादा सक्षम है. इसका ब्रितानी इतिहास कभी इसे आम आदमी तक पहुचने नहीं देगा… तुम मीडिया से जुड़े हो, तब तुम इनका कुछ नहीं सुधार सकते, आम आदमी कि फरियाद कौन सुनता है… और जब तक ये साला आम आदमी नपुंसक बना रहेगा, तब तक बस चुप रहो और सहते रहो…
और मन करे तो ऐसे लेख लिखते रहो, पीडा कम हो जाएगी.
Ankur's Arena
(September 12, 2009 - 1:08 am)यह एक ऐसा हादसा है उमेश, जिससे हम तुम रोज़ किसी न किसी रूप में आमना-सामना करते हैं और चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते. ऐसे में हमारी यह अपंगता ही इन घटनाओं के बढ़ने का कारण है कि हम विरोध नहीं करते. हम बस डरते हैं, कि कहीं उस जैसे बाहुबली के हाथ से दो चार न पड़ जाएँ. लेकिन भूल जातें हैं कि भैया उसका अगला शिकार हम भी हो सकते हैं! और तब हम ज़रूर चाहेंगे कि सब हमारा साथ दें, उसे सबक सिखाने में…
और दोस्त जहाँ तक पुलिस का सवाल है, तो कुछ मत कहो… चुप रहो. कहीं उस बाहुबली ने तुम्हारी शिकायत कर दी, तो तुम्हारा एनकाउंटर तक हो सकता है और तुम्हारे जुर्म के सबूत वहां पहले से कई फाइलों में अडवांस में पड़े होंगे… ये कॉम हमारी मदद के लिए कम, हमसे मदद लेने में ज्यादा सक्षम है. इसका ब्रितानी इतिहास कभी इसे आम आदमी तक पहुचने नहीं देगा… तुम मीडिया से जुड़े हो, तब तुम इनका कुछ नहीं सुधार सकते, आम आदमी कि फरियाद कौन सुनता है… और जब तक ये साला आम आदमी नपुंसक बना रहेगा, तब तक बस चुप रहो और सहते रहो…
और मन करे तो ऐसे लेख लिखते रहो, पीडा कम हो जाएगी.
Udan Tashtari
(September 12, 2009 - 5:39 am)अचरज होता है कि ऐसी घटनायें हो रही हैं.
आम आदमी तो मुसीबत को दूर से सलाम करता चलता है जब तक खुद पर न पड़े.
संजय तिवारी ’संजू’
(September 12, 2009 - 6:52 am)आपकी लेखन शैली का कायल हूँ. बधाई.
Vivek Rastogi
(September 12, 2009 - 8:06 am)भैये अगर आम आदमी को ही यह सब करना है तो इन पुलिस वालों की जरुरत ही क्या है पुलिस अपना मुख्य काम छोड़कर पैसे उगाहने में लगी है, यह तो सार्वभौम सत्य है कि अगर पुलिस ईमानदारी से कार्य करने लगी तो भारत किसी स्वर्ग से कम नहीं होगा, रहने के लिये इससे बेहतर कोई और जगह नहीं होगी।
Arvind Mishra
(September 12, 2009 - 8:34 am)गजब की अंधेरगर्दी ! हद है !