माजुली द्वीप (Majuli river island) या माजोली का मतलब होता है दो नदियों के बीच की जगह. मैं पूर्वोत्तर के राज्य असम के जोरहाट में था. यहां एक रोचक यात्रा मेरा इंतज़ार कर रही थी. पूर्वोत्तर भारत में स्थित दुनिया के सबसे बड़े नदी द्वीप माजुली की यात्रा.
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जोरहाट के निमाती घाट से मजुली द्वीप के लिए फ़ेरी (How to reach Majuli river Island)
असम में जोरहाट के निमाटी घाट पर गाड़ी से उतरकर मुझे फ़ैरी तक जाना था. एक फ़ैरी लोगों से लद रही थी. उस पर लकड़ी की तख़्तियां लगाई जा रही थी. फिर एक के बाद एक बाइक सवार उस पर अपनी बाइक चढ़ा रहे थे. दो कारें पहले ही डेक पर लाद दी गई थी.
लोग एक दुनिया से दूसरी दुनिया में जाने की तैयारी कर रहे थे. ये नज़ारा देख के नदी पार वो द्वीप मुझे अब और रहस्यमय लगने लगा था. एक ज़ोरदार घड़घड़ाहट और झटके के साथ फ़ैरी विशाल ब्रह्मपुत्र की लहरों के हवाले हो गई. ब्रह्मपुत्र (Brahmaputra river)को अकेली मेल रिवर माना जाता है.
बीच-बीच में बालू के कुछ टीले आते जिन्हें लहरों का प्रवाह लगातार काट रहा था. कुछ मछुवारे अपनी नावें लिए बड़े-बड़े जालों के साथ मछलियों के फंसने का धैर्यपूर्ण इंतज़ार कर रहे थे. पंछियों का एक झुंड पानी की ऊपरी परत पर तैरता हुआ सा गुज़र रहा था.
क़रीब डेढ़ घंटे के इस सुकून भरे सफ़र के बाद फ़ैरी ब्रह्मपुत्र के किनारे लगा दी गई. रेतीले घाट पर गाड़ियों की भीड़ थी. फ़ैरी से उतरे पैसेंजर माजुली की अलग-अलग जगहों के लिए लगे शेयरिंग टेम्पो, मारुती वैन वगैरह में चढ़ रहे थे.
मुझे माजुली द्वीप में कमलाबाड़ी नाम की जगह पर जाना था. घाट से कुछ ही देर में पैसेंजरों से बेतरह लदी एक गाड़ी दुनिया के सबसे बड़े नदी द्वीप की तरफ़ मुझे ले जा रही थी. धीरे-धीरे रेत का असीम साम्राज्य ख़त्म हो रहा था और रेत से लदी झाड़ियां दिखाई देने लगी थीं.
समझ आ रहा था कि अब हम बसावटों की तरफ़ बढ़ रहे हैं. क़रीब आधे घंटे बाद गाड़ी वाले ने बताया कि कमलाबाड़ी (Kamalabari Majuli river island) आ गया है.
माजूली द्वीप का आदिवासी जीवन (Tribal life in Majuli river island)
कमलाबाड़ी के एक होस्टल में रात बिताकर अगली सुबह मैं अपने गाइड भाबेन के साथ माजुली के सत्रों की यात्रा पर निकल गया. रास्ते भर में यहां की अलग-अलग जनजातियों के लोग अपनी दिनचर्या को शुरू करने की तैयारी में दिखाई दे रहे थे. सड़क के दोनों छोटी-छोटी झोपड़ियाँ थी जिनके आस-पास कहीं बच्चे खेलते हुए नज़र आते, तो कहीं पुरुष पानी भरते दिखाई दे जाते.
महिलाएं जो अभी-अभी नहाकर आई थी अपने बालों को तौलिए से पोंछ रही थी. महिलाओं ने शरीर के निचले हिस्से में लुंगी पहनी हुई थी और ऊपरी हिस्से में सीने के इर्द-गिर्द एक खास कपड़ा लपेटा हुआ था. इस पारम्परिक पोशाक को मेखला कहा जाता है.
हरे-भरे खेतों में जैसे हरियाली का उत्सव हो रहा हो. नदी पर बसा द्वीप होने के कारण यहां पानी की कोई कमी नहीं इसलिए खेतों आस-पास जहां तक नज़र जाती सबकुछ हरा-भरा नज़र आता. यहां के मूल निवासियों की झोपड़ियों के इर्द-गिर्द सुंदर क्यारियाँ बनी हुई थी जिनके चारों ओर बांस की लकड़ी से बाढ़ बनाए गए थे. क्यारियों में सब्ज़ियाँ और फ़ूल बोए गए थे.
ऐसा लग रहा था जैसे ब्रह्मपुत्र नदी को पार कराने वाली फैरी मुझे किसी दूसरी दुनिया में ले आयी हो. भारत के ग्रामीण जीवन की एक अद्भुत झाँकी दिखाई दे रही थी मुझे. तालाबों में एक ओर तैरते हुए बतखों का झुंड था और दूसरी और तीस-पैंतीस आदिवासी महिलाओं का समूह था जो बांस की खपच्चियों से बनाए गए पारम्परिक जाल की मदद से मछलियाँ पकड़ रही थी. वो पानी में घुटनों तक डूबी हुई थी और उनकी परछाइयाँ पानी में तैर रही थी.
क़रीब-क़रीब हर झोपड़ी के बाहर कताई-बुनाई करने के लिए जातर रखा हुआ था. जिनमें धागे लगे हुए थे. कुछ जातर ऐसे थे जो बुनकरों का इंतज़ार कर रहे थे. एक बूढ़ी महिला बांस के बने स्टूल पर बैठी हाथ की इस महीन कारीगरी में संलग्न थी. स्पष्ट था का माजुली (Majuli river island) अपने हस्तशिल्प के लिए भी जाना जाता है.
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माजुली द्वीप में आज भी कायम है अनूठी सत्र परम्परा (Majuli river island Satra culture)
माजुली में अलग-अलग सत्र बने हैं. जिन्हें असम के आराध्य भगवान शंकरदेव ने स्थापित किया था. पूरे असम में सत्रों की परम्परा को स्थापित करने वाले शंकर देव महाराज का लोग बहुत सम्मान करते हैं. इन अलग-अलग सत्रों की अपनी अलग-अलग पूजा पद्धति है.
ये सत्र वैष्णव सम्प्रदाय को मानते हैं इसलिए विष्णु के अलग-अलग रूपों को अलग-अलग सत्रों में पूजा जाता है. दक्षिणपाट, सामागुरी, गरमूढ़ और कमलाबाड़ी यहां के कुछ प्रमुख सत्र हैं.
हम इस वक़्त गरमूढ़ सत्र में थे. सत्र के बाहर कुछ दुकानें सजी हुई थी जहां श्रीमंत शंकर देव और माजुली से जुड़ी कुछ किताबें भी मिल रही थी. गेट से अंदर जाने पर कुछ आगे एक बड़ा सा हॉल था जहाँ कुछ मूर्तियाँ सी बनी हुई थी जो गरुड़ के चेहरे की तरह लग रही थी.
हॉल में तीन शख़्स थे जिन्होंने सफ़ेद कपड़े पहने हुए थे. इनके हाथों में ढोल थे जिन्हें वो बड़ी तल्लीनता से बजा रहे थे. इनमें से एक कुछ मंत्रों का उच्चारण कर रह थे. ये सत्र के योगी थे जिनकी सुरमयी आवाज़ पूरे हॉल में गूँज रही थी. हॉल के छोर में एक मंदिर बना हुआ था.
बाहर एक मैदान के किनारे सुपारी के ऊँचे-ऊँचे पेड़ थे. सत्र के हॉल से बाहर आते ढोल और मंत्रों की आवाज़ के अलावा यहां कोई शोर नहीं था. ये शांति जैसे अपनी ओर खींच रही थी.
श्रीमंत शंकर देव (Shrimant Shankardev) की विरासत और यहां की सत्र परम्परा के बारे में लेखक संजय काकोती ने बताया कि पूरे असम में 700 सत्र हैं. इनमें से माजुली में 65 सत्र हैं. जिनमें से अब 35 सत्र शेष हैं.
इन सत्रों की खास बात यह है कि हर सत्र का एक मुख्य पुजारी होता है जिसे सत्राधिकारी कहा जाता है. हर सत्र में विष्णु भगवान के अलग-अलग अवतारों की पूजा होती है और सबकी पूजा पद्धति अलग-अलग है.
माजुली द्वीप के सामागुरी सत्र और मुखौटे बनाने की अनौखी परम्परा (Majuli island mask making village)
गरमूढ़ सत्र के बाद मैं सामागुरी सत्र की तरफ़ चला आया. यहां एक टीन शेड के बाहर एक शख़्स बैठे बांस की खपच्चियों से कुछ बना रहे थे. कमरे के अंदर रंग बिरंगे पचासों मास्क दीवारों पर लटके हुए थे. भीम, राम, नरसिंह, रावण, नरकासुर न जाने कितने मिथकीय किरदारों के रंग-बिरंगे मास्क यहां नज़र आ रहे थे. ये मास्क जिस शख़्स की देखरेख में बने थे उनका नाम प्रदीप गोस्वामी था.
उन्होंने बताया कि मुखौटों की यह परम्परा श्रीमंत शकरदेव की ही देन है. वैष्णव परम्परा में बदलाव की लहर लाने वाले शंकर देव ने श्रीकृष्ण से जुड़ी कहानियों को कहने के लिए रंगमंचीय विधा का इस्तेमाल किया जिसे उन्होंने ‘भाओना’ कहा.
इसके लिए उन्होंने मुखौटों का इस्तेमाल करना शुरू किया. और धीरे-धीरे यह एक कला के रूप में विकसित हो गया. यहां तीन तरह के मुखौटे बनाए जाते हैं. बड़ा मुखा (जो शरीर के आकार का होता है), लोतोकाई मुखा (जिसकी आंखें और जीभ वगैरह हिल सकती हैं) और मुख मुखा (मुँह के आकार का मुखौटा).
अपने बनाए मुखौटों के बारे में बताते हुए वो अलग-अलग मुखौटों को दिखा भी रहे थे. ये मुखौटे वो प्राकृतिक चीज़ों से ही बनाते हैं. इनमें बांस, मिट्टी, गोबर, जूट और लकड़ी शामिल हैं. वहां एक मुखौटा भूपेन हज़ारिका का भी था.
यहां के लोग मास्क बनाने की इस परम्परा को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने में भूपेन हज़ारिका का अहम योगदान मानते हैं. मुखौटों की इस अद्भुत विरासत को अपने कैमरे और ज़हन में क़ैद कर हम यहां से लौट आए.
लगातार छोटा हो रहा है माजुली नदी द्वीप (Impact of Erosion in Majuli island)
यह अनूठा नदी द्वीप दक्षिण में ब्रह्मपुत्र, उत्तर लुइत और पूर्व में ख़ैरकटिया नदियों से मिलकर बना है. लेकिन समय के साथ-साथ यह द्वीप ब्रह्मपुत्र में आने वाली बाढ़ और दूसरी वजहों से लगातार भूमि कटाव का शिकार हो रहा है.
जिससे इसकी ज़मीन छोटी होती जा रही है. इसी वजह से अब यहां केवल 35 सत्र बचे हैं. पहले इसका क्षेत्रफल 1255 वर्ग किलोमीटर था जो अब घटकर केवल 455 वर्ग किलोमीटर रह गया है. जानकारों का मानना है कि इसी तरह भूमिकटाव होता रहा है तो कुछ दशकों में हो सकता है यह द्वीप पूरी तरह से जलमग्न हो जाएगा.
माजुली द्वीप को असम की सांस्कृतिक राजधानी कहते हैं (Majuli : Cultural capital of Assam)
सत्रों की परम्परा के अलावा माजुली जनजातीय संस्कृति के लिए भी जाना जाता है. यहां 3 जनजातियां रहती हैं जिनमें मिसिंग, देउरी और सोनोवाल कछारी शामिल हैं. इन तीनों जनजातियों की संस्कृति और सत्रों की संस्कृति एकदम अलग-अलग है.
\इतनी संस्कृतियों के संगम की वजह से माजुली को असम की सांस्कृतिक राजधानी भी कहा जाता है. गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज माजुली देश का पहला ऐसा द्वीप है जिसे एक ज़िला घोषित किया गया है.
माजुली अपने उत्सवों के लिए भी पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करता है. फ़रवरी में यहां अलि आये लिंगंग नाम का एक त्यौहार यहां मनाया जाता है. पांच दिन तकि चलने वाले इस त्यौहार में स्थानीय राइस बियर जिसे अपोंग कहा जाता है और पुरंग अपिन नाम का खास पकवान परोसा जाता है.
इसके अलावा नवम्बर के महीने में यहां जोरशोर से रासलीला उत्सव मनाया जाता है. इसमें गीत, संगीत और नृत्य का शानदार नज़ारा देखने के लिए हज़ारों लोग यहाँ आते हैं. बर्ड वाचिंग के शौकीनों के लिए भी माजुली विशेष आकर्षण है.
माजुली द्वीप कब आएं (Best time to visit Majuli)
गर्मियों में माजुली में काफ़ी उमस रहती है. बरसात के मौसम में मौसम बढ़िया रहता है लेकिन जलभराव और बाढ़ की वजह से आने-जाने में दिक्कत होती है. सर्दियों का मौसम यानी अक्टूबर से फ़रवरी यहां आने के लिए सबसे बढ़िया समय है.
माजुली द्वीप कैसे पहुँचें (How to reach Majuli island)
माजुली का नज़दीकी हवाई अड्डा जोरहाट शहर से 7 किलोमीटर दूर है. जोरहाट रेलमार्ग से भी जुड़ा है. इसके अलावा गुवाहाटी जैसे असम के प्रमुख शहरों से जोरहाट तक बस से भी आया जा सकता है. जोरहाट से फ़ैरी लेकर एक घंटे में माजुली पहुंचा जा सकता है.