गुजरात के कच्छ (Rann of Kutch Gujarat) पर कम किताबें लिखी गई हैं। अभिषेक श्रीवास्तव की ‘कच्छ कथा ‘ उन चुनिंदा किताबों में शुमार है जो इस इलाके की अनकही कहानियों को सामने लाती है। पेश है इस एथ्नोग्राफिक यात्रा आख्यान पर मंजीत ठाकुर की लिखी समीक्षा।
किताबः कच्छ कथा
लेखकः अभिषेक श्रीवास्तव
प्रकाशनः राजकमल प्रकाशन
मूल्यः 299 पेपरबैक
बहुत सारे लोग कच्छ घूमने नहीं जा सकते. लेकिन अगर शब्दों के सफर पर कच्छ को देखना हो, तो अभिषेक श्रीवास्तव का एथ्नोग्राफिक यात्रा आख्यान ‘कच्छ कथा’ इसके लिए बिल्कुल मुफीद किताब है.
कच्छ (Rann of Kutch Gujarat) की धरती ने पिछली दो सदियों में कम से कम दो भीषण और भयावह भूकंपों का सामना किया है. और यह किताब उन भूकंपों के कच्छ की तहजीब पर पड़े प्रभावों को परत दर परत उधेड़ती है.
एक तरह से कहें तो आपने अगर कच्छ कथा पढ़ी तो लेखक आपको एक ऐसी धरती के सफर पर लिए चलते हैं, जहां आप कभी गए नहीं और अगर गए हों तो केवल आवरण देखकर आए गए हों.
अभिषेक घुमंतू स्वभाव के पत्रकार हैं और पिछले एक दशक से ज्यादा वक्त के दौर में उन्होंने कई बार कच्छ की यात्रा की है और इस तजुर्बे के साथ वह कच्छ की सीवन उधेड़कर रख देते हैं.
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मुख्यधारा से अलग, कच्छ की नई दुनिया का सफ़र (Rann of Kutch Gujarat Book)
इस किताब में बारीक ब्योरे हैं, लोगों के बारे में विवरण है और ऐसी अनसुनी कहानियां हैं, जो मुख्यधारा में आती ही नहीं.
कच्छ का भूगोल सामने से कुछ नजर आता है लेकिन किताब जब ब्योरे देते हुए आगे बढ़ती है तो आप उसमें खोकर एक नई दुनिया के सफर पर निकल पड़ते हैं. मानो अभिषेक आगे चल रहे हों और आप पीछे-पीछे.
पर अभिषेक ने सिर्फ कच्छ को देखा नहीं है. उनकी दृष्टि एकसाथ ही पैनोरेमिक और टेलीलेंसीय दोनों है. कच्छ कथा में कच्छ लॉन्ग शॉट में भी है और एक्स्ट्रीम क्लोज-अप में भी.
असल में, कई मंदिरों, दरगाहों, नमक के खेतों, मिथकों और मान्यताओं के जरिए लेखक ने इस किताब में न सिर्फ कच्छे के भूगोल को उकेरा है बल्कि उन्होंने उसका ऐतिहासिक और समाजशास्त्रीय विश्लेषण भी किया है.
कच्छी अस्मिता या तहजीब या विरासत की चिंता
संभवतया उनकी यह वैचारिक टेक है कि विकास को लेकर एक आम बहस में वह कच्छी अस्मिता या तहजीब या विरासत की चिंता को बारंबार सामने लाते हैं.
कच्छ कथा धोलावीरा के पुरातात्विक उत्खनन की पड़ताल करते हैं तो साथ ही लखपत के बारे में दिलचस्प ब्योरे देते हैं. नाथपंथी गुरु धोरमनाथ के बारे में अनजाने किस्से बटोरते हैं और फिर नमक के मजदूरों तक की बात करते हैं.
हिंदी किताबों के बारे में बात करते समय हमेशा भाषा के बारे में टिप्पणी की जाती है. ऐसे में, कच्छ कथा की भाषा प्रवाहमय है. ऐसा लगता नहीं कि लेखक लिख रहा है, ऐसा लगता है कि वह आपसे आमने-सामने बात कर रहा है. यह किताब की बहुत बड़ी शक्ति है.
कच्छ की समावेशी संस्कृति में हिंदू और मुसलमान
दूसरी बात, किताब बात की बात में भारतीय संस्कृति की असली ताकत यानी इसकी समावेश संस्कृति की सीख देती चलती है. मसलन, किताब की शुरुआत में ही कच्छ के अंजार में हिंदू राजा पता नहीं किस सनक में अपनी प्रजा में सबको मुस्लिम धर्मान्तरित करने पर तुला था.
लेकिन उसके खिलाफ फतेह मुहम्मद और मेघजी सेठ उठ खड़े हुए. राजा को कैद कर लिया गया और फिर कच्छ में बारभाया यानी बारह भाइयों के राज की स्थापना हुई. यह अपने किस्म का अलग ही लोकतंत्र था. इन बारह लोगों में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग थे.
कच्छ कथा में लेखक वहां के इस्मायली पंथ का ब्योरा भी देते हैं, जिसमें सतपंथी और निजारी हिंदू भी हैं और मुसलमान भी.
अभिषेक लिखते हैं, “यह व्यावहारिक और आध्यात्मिक जीवन की विवशताओं और श्रद्धा से उपजा परिवर्तन था. जहां इस्माइली बनने के बाद व्यावहारिक जीवन में कुछ खास नहीं अपनाना होता था.
बस हिजाब और साड़ी का फर्क है, बाकी सतपंथियों की दरगाहें आज भी एक ही हैं. यह एक ऐसा धार्मिक समन्वयवाद है जहां आपको ओम भी मिलेगा, स्वास्तिक भी मिलेगा, हिंदू नाम और पहचान भी मिलेगी लेकिन प्रार्थनाओं में फारसी और अरबी की दुआएं भी मिलेंगी.”
कच्छ के पीरों के अनूठे क़िस्से
कच्छ कथा (Kutch katha) में कई ऐसे पीरों का जिक्र है जिनकी कहानी में एक लाचार बूढ़ी औरत होती है, और जिसके मवेशियों को डकैत उठा ले जाते हैं और उसकी मालकिन फरियाद लेकर पीर के पास पहुंचती है. पीर घोड़े पर बैठकर जाते हैं और औरत की गायों को बचाने के चक्कर में शहीर हो जाते है.
अभिषेक ऐसे बहुत सारे पीरों की जिक्र करते हैं लेकिन कम से कम दो पीरों की किस्से ऐसे हैं जिनका उल्लेख वह विस्तार से करते हैं. इनमें से एक हैं हाजी पीर और दूसरे हैं रामदेव पीर. रामदेव पीर की कहानी में पीड़ित स्त्री मुस्लिम है जबकि हाजी पीर के किस्से में महिला हिंदू है, जिसके गाय चुरा लिए गए हैं.
हाजी पीर ने हिंदू स्त्री के मवेशी बचाते हुए शहादत दी और रामदेव पीर ने मुस्लिम स्त्री की गायें बचाते हुए जान दी और इसलिए स्थानीय समुदाय में पीरों का दर्जा पाए और पूजित हुए.
कच्छ की एकदम अलहदा विरासत ( Culture of Rann of Kutch Gujarat)
एक अन्य उल्लेखनीय मिसाल, एक महादेव मंदिर की दो बहनों का पुजारिन होना है. खासबात यह कि इस मंदिर के संरक्षण का जिम्मा मुस्लिमों के हाथ में है. वह गांव तुर्कों का ध्रब है. लखपत का गुरुद्वारा हिंदू परिवार चलाता था, और वहां के दरगाहों और मंदिरों के संरक्षण का काम वहां के हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग मिलकर करते हैं.
कुल मिलाकर कच्छ कथा अपने खास वैचारिक झुकाव के बावजूद एक अवश्य पढ़ी जाने वाली किताब है जो न सिर्फ कच्छ (Rann of Kutch Gujarat) की समस्या से, बल्कि कच्छ की एकदम अलहदा विरासत से भी आपको रू ब रू कराती है. पन्ने दर पन्ने यह किताब आपको कच्छ के सफर पर लिए चलती है.
हालांकि, आधी किताब के बाद अभिषेक एकरस भी होते हैं. खासकर तब, जब वह राजनैतिक समीकरणों और बाध्यताओं का जिक्र करते हैं लेकिन ऐसी किताबें आज के दौर में बेहद जरूरी हैं जो देश के बाकी हिस्से के लोगों को अपनी समृद्ध विरासत के बारे में बता सके.