अपूर्वा अग्रवाल आईआईएमसी से पढ़ी हैं. टाइम्स ऑफ़ इंडिया और बिज़नेस स्टैंडर्ड में पत्रकार रह चुकी हैं. फ़िलहाल जर्मनी में ‘डोयचे वेले’ के साथ काम कर रही हैं. जर्मनी के शहर कोलोन से शुरू हुई पुर्तगाल की यात्रा (Portugal visit) के क़िस्से अपूर्वा ने यात्राकार को भेजे हैं. आप भी घर बैठे उनके साथ पुर्तगाल घूमने का लुत्फ़ उठाइए.
दिन गुरुवार, तारीख 20 सितंबर, 10 बजे की फ्लाइट है. डोरियो टैक्सी वालों को लगातार फोन कर रहा है लेकिन सारी टैक्सी वालों ने हड़ताल कर रखी है. कारण है उबर, उबर का सड़कों पर आना लोकल टैक्सी ड्राइवरों को अच्छा नहीं लग रहा है.
डोरियो ने बताया कि हड़ताल पहले एक ही दिन की थी लेकिन बात नहीं बनी, तो टैक्सी ड्राइवर अब तक काम पर नहीं आए. फिर क्या, हड़ताल आज भी चलेगी. जैसे–तैसे मैं और डोरियो ट्राम स्टेशन पहुंचे, लेकिन स्टेशन पर जबरदस्त भीड़ थी.
क्या ही करते, फ्लाइट तो पकड़नी ही थी, ट्राम में जैसे–तैसे खुद को एडजस्ट करती रही. ऐसा लगने लगा कि दिल्ली आ गई हूं लेकिन जैसे ही बगल से भाषा सुनाई आई भ्रम टूटा और याद आया कि मैं पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन में हूं.
डोरियो मेरा एयरबीएनबी होस्ट था. लेकिन इतना वाचाल कि आपको लगने लगेगा कि अगर यह पुर्तगाल की जगह भारत में होता तो कोई नेता बन ही जाता.
यहां के शहर लिस्बन और पोर्टों में लोगों के तौर–तरीके देखकर लगता है कि भारत के साथ कारोबार का असर इन पर खूब हुआ है. रंगों से सजे ये शहर और यहां के लोग काफी कुछ अपने से लगते हैं.
मेरी यह पुर्तगाल यात्रा जर्मनी के शहर कोलोन से शुरू हुई थी. कोलोन से सटा शहर बॉन पिछले दो सालों से मेरा घर भी है. इन दो सालों में 40-50 बार पुर्तगाल जाने के लिए टिकट खोजे, लेकिन कुछ न कुछ लगा रहा और जाना नहीं हुआ. पुर्तगाल, जर्मनी के मुकाबले खाने–पीने से लेकर होटलों के मामलों में सस्ता है, पर फ्लाइट से यहां पहुंचने तक का टिकट अगर समय पर न करो तो बजट बिगाड़ सकता है.
समय के मामले में भी पुर्तगाल की घड़ियां, जर्मनी के मुकाबले 1 घंटा पीछे चलती हैं, ऐसे में कई बार कन्फ्यूजन हो जाता है. कोलोन से हमें पोर्टों पहुंचना था, और वहां दो दिन गुजार कर लिस्बन. खैर, कोलोन एयरपोर्ट पर ही हम तीन घंटे देर से उड़े फिर जैसे तैसे पहुंच गए पोर्टों.
जर्मनी की ठंडक से पुर्तगाल की गर्मी दो–तीन घंटे तो अच्छी लगती है, लेकिन फिर पसीना निकाल देती है. दरअसल हम पहुंचे रात 8 बजे थे तो अब पहले दिन खाना भी ढूंढना था. जर्मनी में वेज खाने के अच्छे विकल्प मुश्किल से मिलते हैं ऐसे में तो पोर्टों में मैंने उम्मीद ही छोड़ दी थी. रात 9 बजे हम खाना खोजते हुए होटल पहुंचे दोस्तों ने कॉट फिश, ऑक्टोपस और चिकन खाया तो मैं पूछती रही कि वेज क्या होगा.
होटल वाले ने कहा आखिरी ऑर्डर ले रहा हूं वेज में बस नूडल्स मिलेंगे. मैंने कहा दे दो यार जो हो खा ही लेंगे. लेकिन लहसुन और जैतून के तेल में लगे तड़के के साथ नूडल्स मेरे सामने आए वे वाकई में अद्भुत थे. यहां के खाने में जैतून का तेल बहुत इस्तेमाल होता है.
पोर्टों की सुबह एक सुकून भरी थी, समंदर किनारे सूरज उगते देखना, जिंदगी के रास्तों के लिए खुद को तैयार करने जैसा है. उगते सूरज को देखकर लगता है कि सारी ऊर्जा खुद में समेट कर हम भी अपनी जिंदगी को ऐसे ही चमका लें. सूरज उगा तो फिर लगा कि अब नाश्ता भी करना है. तैयार होकर जब बाहर निकले तो एक ऐसी दुकान दिखी जहां लोग अपनी दुकानों की चाबियां लेकर नाश्ता कर रहे थे.
मैंने दुकानदार से पूछा तो एक ने बताया कि लोग यहां नाश्ता कर अपनी दुकानें खोलेंगे. एक पल लगा कि क्या ये घर से नाश्ता नहीं करते पर दुकानदार ने अपनी पुर्तगाली और टूटी फूटी अंग्रेजी के दम पर हमें समझाया कि ये लोग काफी जल्दी आ जाते हैं यही नाश्ता कर अखबार पढ़ते हैं और फिर दुकान पर जाते हैं.
ये भारत के नुक्कड़ों पर मिलने वाली चाय और मट्ठी की छोटी दुकानों जैसी ही थी. एक बार फिर दिमाग में आया कि वास्को डि गामा और उसके साथी ये सब भारत में मिस करते होंगे तो उन्होंने भारत में ऐसे नुक्कड़ों पर दुकानें खोली होंगी.
खैर, ये जानकारी कितनी सही है मुझे नहीं पता क्योंकि उसकी भाषा को मैं भी जर्मन और अंग्रेजी मिला कर समझने की कोशिश कर रही थी. हमने यहां का लोकल नाश्ता खाया, अंडा मांगने की जद्दोजहद भी की लेकिन अंडा तो नहीं मिला पर ये जरूर सीख गए कि पुर्तगाल में अंडे को ओवो कहते हैं. नाश्ते का बिल आया 16 यूरो. 4 लोगों का भरपेट नाश्ता बस 16 यूरो. नाश्ता करके ही समझ ही आ गया कि पुराना पुर्तगाल सस्ता है.
यूरोप में साइकिल खूब चलती है लेकिन पोर्टों की ऊंचाई–निचाई देखकर यहां साइकिल चलाना मुश्किल लगता है. सड़कों के किनारे बने फुटपाथ पर लगा पत्थर भी काफी ऊबड़–खाबड़ सा था. कही घर का रंग–रौगन एकदम चमकीला दिखता है तो कही धूल–धकड़ से सनी पुरानी दीवारें.
यहां का स्टार फुटबॉलर रोनाल्डो हर कही नजर आ जाता है. कही जर्सी में, कभी सोविनयर में, कभी स्कूली बच्चों के बैग में. बच्चे भी अंग्रेजी कम ही समझते हैं, लेकिन जैसे ही रोनाल्डो बोलो सबकी बांछे ही खिल जाती है.
सुबह सबसे पहले हम पहुंचे चर्च, यूं तो यूरोप के अमूमन हर छोटे–बड़े शहर में आपको चर्च दिख जाते हैं लेकिन यहां का चर्च टाइल्स से सजा था. टाइल पर भी जो नीले रंग से पेटिंग थी उसे भी पुर्तगाल की खासियत मानी जाती है. पुर्तगाल नाम वाले सॉविनियर को यहां हमारे बांग्ला भाई खूब बेचते हैं.
पोर्टों में साविनयिर बेचने वाली हर दूसरी दुकान पर कोई न कोई बांग्लादेशी टकरा जाता है. बादशाह नाम के बांग्ला भाई ने बताया कि बांग्लादेशियों के लिए पुर्तगाल दूसरा सबसे पसंद किया जाना ठिकाना है. उन्होंने बताया कि न सिर्फ पोर्टों में बल्कि लिस्बन समेत देश के अन्य शहरों में भी बांग्लादेशी बड़ी तादाद में होंगे.
वो अंदाजा लगाते हुए बताने लगे कि करीब 25 हजार बांग्लादेशी पुर्तगाल में हैं क्योंकि यहां रहने का परमिट आसानी से मिल जाता है. इसमें भी ज्यादातर बांग्लादेशी सॉविनियर शाप जैसी टूरिस्टिक जगहों पर करते हैं.
- पोर्टों में एक दिन में 27 किमी पैदल चलते हुए हमने शहर में चर्च आफ साओ फ्रांसिसको(Church of São Francisco) देखा. इस चर्च के लिए कहते हैं कि यह गोएथिक शैली में बनी शहर की आखिरी इमारत है. जिसे 1425 तक बना लिया गया था. लोगों ने बताया कि शीशों में जो पेंटिंग है उस पर बाइबिल के ओल्ड टेस्टामेंट और न्यू टेस्टामेंट चित्रों में उकेरे गए हैं.
- इस के बाद पहुंचे एक और चर्च, इसका नाम है क्लेरिगोस (Clérigos Church). एक वक्त था जब यह शहर की सबसे ऊंची इमारत हुआ करती थी. इसे आज भी शहर के कई हिस्सों से देखा जा सकता है. तकरीबन 200 सीढ़ियां पार कर जब आप सबसे ऊपर पहुंचते हैं तो यहां से पूरे शहर का खूबसूरत नजारा देख सकते हैं.
- शहर का तीसरा सबसे हसीन ठिकाना हमें लगा लुइस ब्रिज. इस पुल को एक जर्मन इंजीनियर ने बनाया था. अगर आप ब्रिज पर हैं और ट्रेन सड़क पर बनी रेलवे लाइन से गुजर रही है तो यकीन मानिए दिल में कुलबुलाहट शुरू हो जाती है. हवा का जोर इतना कि सिर पर लगी टोपी के साथ आपको लगने लगेगा की आप बस उड़ने वाले हैं. पोर्टों के इस ब्रिज पर चलना और वहां से नीचे देखना डराने वाला अनुभव है.
यहां नीचे बने पुल से लड़के ड्यूरो नदी में कूदने के खूब शोर–शराबा कर पैसे जुटाते हैं. ये सब देखकर आपको जबलपुर का भेड़ाघाट तो बनारस के घाट भी याद आ सकते हैं. कूदने वाले लड़के के साथी पास खड़ी जनता से पैसे बटोरता है, और पुल पर चढ़ा लड़का तेज–तेज आवाज में कुछ डॉयलाग मार कर नदी में छलांग मार कर लोगों को दिखाता है.
ड्यूरो नदी के किनारे, पोर्टों वाइन को ग्लास में डालकर लोग ढलती शाम का आनंद लेते हैं. टूरिस्टों को यहां चलने वाली फेरी और नदी में होने वाले फाइव ब्रिज टूर भी आकर्षित करते हैं. हमने भी एक फाइव ब्रिज टूर लिया था.
आप शिप में बैठकर ड्यूरो पर बंधे पांच पुलों के नीचे से गुजरते हुए आगे बढ़ते हैं, क्रूज जैसे आगे–आगे बढ़ता है आपको अटलांटिक अपने नजरों के करीब लगने लगता है. वाइन के शौकिनों को ये जरूर जान लेना चाहिए कि पोर्टों की मशहूर वाइन बस पोर्टों में ही सस्ती है, लिस्बन में इसी वाइन के आपको दोगुने पैसे देने पड़ सकते हैं.
अब बात लिस्बन की, लिस्बन के एयरपोर्ट का नजारा भारत के ट्रेन स्टेशनों जैसा होता है. टैक्सी के लिए गजब इंतजार. मुझे बहुत गुस्सा भी आ रहा था और गर्मी में जान भी निकल रही थी लेकिन इसका कुछ फायदा तो था नहीं. सब अपनी बारी का इस्तेमाल कर रहे थे. खैर, यहां मेरी टेंशन खुद का पर्स सुरक्षित रखने की भी थी.
पुर्तगाल में लोग यही हिदायत देते हैं कि ज्यादा पैसे लेकर न निकले जेब कट सकती है. खैर लिस्बन एक बड़े शहर की तरह साफ–सुथरा, सुंदर दिखता है. यहां देखने को इतना कुछ है कि आप दो दिन में पूरा घूम नहीं सकते.
में सटा छोटा सा कस्बा है सिंटरा. यहां के महल को गोएथेक शैली को समझने का सबसे अच्छा नमूना माना जाता है. ऐसे बाग हैं जहां छुपी हुई गुफाएं हैं तो कुछ आधे–अधूरे कुएं हैं. बावड़ियों जैसे कुछ कुंओं में तो पानी ही नहीं आता लेकिन फिर भी इन्हें देखने जाते हैं. खैर, गए तो हम भी थे.
सिंटरा में मुझे जिस जगह ने सबसे ज्यादा हैरान किया वह था पीला, नीला, हरा, लाल, नारंगी रंगों से रंगा पेना पैलेस (Pena palace). यूरोप रंगों के इस्तेमाल के मामले में जरा फीका दिखता है लेकिन यहां का ये पैलेस रंगों से भरा है. यहां 19 सदी के रोमेंटिस्ज्म स्टाइल ऑफ आर्किटेक्चर का नमूना कहा जाता है. ये पैलेस है भी बहुत ऊंचाई पर आपको टुकटुक या बस से जाना पड़ता है.
यहां के टुकटुक वहीं बैट्री वाले रिक्शें हैं जो दिल्ली के कई इलाकों में दिखते हैं. मुझे इनसे पहाड़ का रास्ता नापना खतरे भरा लग रहा था लेकिन पूरी जनता वैसे ही जा रही थी, खैर हम भी गए. बस सुकून इतना था कि इसमें सीट बेल्ट थी.
सिंटरा के पास कुछ ऐसे समंदर भी हैं जहां शोरगुल या पार्टी नहीं बल्कि सर्द हवाओं में लिपटा सुकून मिलता है. मेरे लिए अटलांटिक सागर में पैरों को भिगोना एक अद्भुत अनुभव था. समंदर किनारे लोगों को मोहब्बत में गोते लगाते देखकर कभी अकेलापन महसूस होता है तो कभी याद आने लगता है वास्को डि गामा और उसके साथियों का जज्बा.
यहां आकर समझ आया कि कैसे ऐतिहासिक विरासतें और इनसे जुड़ी कहानियां उस जगह से आपको बांध देती हैं. इतिहास पीछे नहीं छूटता बल्कि समय के साथ आपको बांध लेता है. शायद इसलिए बीते हुए दिन हमें हसीन लगते हैं.
खाने–पीने की कुछ ऐसी जगहें भी हैं शहर में जहां आपको दुनिया भर का खाना मिलता है. लिस्बन में घरों की लाल खप्परों और शहर के नजारों को देखने के लिए भी यहां कई प्वाइंट हैं. लिस्बन जितना ऐतिहासिक है उतना मॉर्डन भी पर यहां सीढ़ियां बहुत हैं.
चार–पांच दिनों में ही इस देश नें मेरी यादों की पोटली में अपनी जगह बना ली है. मेरा एयरबीएनबी होस्ट ने बताया कि पहले यहां कम लोग आते थे टूरिस्ट ही नहीं थे लेकिन जब से पुर्तगाल ने डिजिटल मार्केटिंग शुरू की है लोग आने लगे हैं. कुल मिलाकर जब से लिस्बन की सुंदरता फेसबुक की टाइमलाइन पर दिखी तो और लोग भी टाइम निकालकर यहां लाइन बनाकर आने लगे.