long night of literature at embassy of czech republic

चेक दूतावास में निर्मल वर्मा और लॉंग नाइट ऑफ़ लिटरेचर

दिल्ली डायरी

21 सितंबर 2023

दिल्ली के एक उमस भरे दिन आस्था को ऑक्सफ़ोर्ड बुकस्टोर से एक ईमेल आया। यह ईमेल चेक गणराज्य के दूतावास में एक कार्यक्रम के बाबत था – लॉंग नाइट ऑफ लिटरेचर (Long night of literature) कार्यक्रम के इस नाम ने आकर्षित किया, इस बात ने और ज़्यादा कि यहाँ भारतीय और यूरोपीय साहित्यकारों का एक पैनल अपनी-अपनी किताबों पर चर्चा करने वाला था। हिन्दी के आयोजनों में कभी-कभी जाना हो जाता है पर यूरोपीय साहित्य पर चर्चा सुनने का यह पहला मौका था। ज़ाहिर है दूतावास में जाने का भी यह एक अच्छा अवसर था तो तय हुआ कि जाया जाएगा।

तय दिन हम दूतावास के गेट से प्रविष्ट हुए। हमारा नाम एक सफेद पन्ने पर दर्ज़ था। भीतर एक औसत कद के हॉल नुमा कमरे में अँग्रेज़ीदाँ लोगों का एक जमावड़ा जुटना शुरू हो चुका था। पिछली पंक्ति के पीछे छायाकारों की भी अच्छी खासी उपस्थिति थी।

एक चेक महिला मुस्कुराते हुए उस कुर्सी की ओर आई जहां अब तक हम अपने लिए जगह बना चुके थे और मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि वो इस कार्यक्रम की आयोजक हैं। कुछ देर लेखकों का इंतज़ार रहा। और शुरुआती परिचय की औपचारिकता के बाद कार्यक्रम के संचालन की बागडोर पेंग्विन रेंडम हाउस में बतौर असोसिएट पब्लिशर कार्यरत एलिजाबेथ को सौंप दी गई।

 

साहित्य की सार्वभौमिकता

एलिजाबेथ की रुचि साहित्य की सार्वभौमिकता (Universality of literature) के बाबत थी जिसे उन्होंने जर्मनी से आई लेखिका जूलिया वॉन (Julia von Lucadou) से किये अपने सवाल में ज़ाहिर किया। जूलिया ने अपनी किताब दि हाईराइज़ डाइवर (मूलतः जर्मन में लिखी किताब) की चर्चा करते हुए बताया कि उनकी किताब डिस्टोपियन जौनर की है। एक साइंस फ़िक्शन में ज्यादातर वैश्विक परिदृश्य की कहानी होती है और भले ही वह सीमित भूगोल के इर्द-गिर्द बुनी हुई हो लेकिन उससे दुनियाभर के लोग खुद को जोड़ पाते हैं इस लिहाज से उनके साहित्य में सार्वभौमिकता अपने आप शामिल हो जाती है। कई राजनैतिक पहलू भी किताब में हैं जिनकी झलक विश्व राजनीति में भी देखी जा सकती है। इस तरह से किताब में एक यूनीवर्सल अपील अपने आप या जाती है।

वहीं स्पेन से आई एलीसा लेवी ने बताया कि उनकी किताब की कहानी स्पेन के ही एक छोटे से गाँव के इर्द गिर्द बुनी हुई है।  लेकिन किताब के दूसरी भाषाओं में हुए अनुवाद से उन्होंने देखा कि उनकी कहानी से केवल उनकी भाषा के लोग ही नहीं बल्कि दूसरी भाषाओं के लोगों जुड़ाव महसूस किया। अपने पुरखों से सुनी हुई इन कहानियों से अलग-अलग परिवेश के लोगों ने जिस तरह से जुड़ाव महसूस किया इससे कहानियों में मौजूद भावनाओं की सार्वभौमिकता का पता चलता है।

 

बोरियत की राजनीति

Saikat Majumdar

 

उपन्यासकार और आलोचक सैकत मजूमदार (Saikat Majumdar) ने चर्चा को एक अलग मोड़ दिया। सैकत ने सिल्वर फिश, फ़ायरबर्ड और दि मिडल फ़िन्गर जैसे उपन्यास लिखे हैं। उन्होंने बोरियत और रचनात्मकता के बीच के अंतःसंबंधों पर बात करते हुए कहा कि बोरियत भी एक राजनैतिक विषयवस्तु है।

वह राजनीति जो राजनेताओं से जुड़ी नहीं है बल्कि आम जनजीवन से जुड़ी है। मसलन किचन की राजनीति, चाय की दुकान की राजनीति। बोरियत आपको वह मौका देती है जब आप बेहद सामान्य चीजों में कुछ नया खोज निकालते हैं इस लिहाज़ से बोरियत का होना रचनात्मकता के लिए भी बहुत अहम है।

सैकत ने कला माध्यमों पर बात करते हुए लेखिका अरुंधति रॉय के हवाले से कहा कि कला में एक तरह की गैरजिम्मेदाराना प्रवृत्ति होती है और कलाकार को गैरजिम्मेदार होने की आज़ादी होनी भी चाहिए, लेकिन इस प्रवृत्ति का दुरुपयोग न करना भी एक कलाकार की जिम्मेदारी है।

 

निर्मल वर्मा को ‘पढ़ने के संस्मरण’ और विनीत गिल

Here and hereafter

इसके बाद बारी थी विनीत गिल की। जिनके चर्चा में शामिल होने के बाद एक सुखद संयोग यह घटा कि हॉल में अंग्रेजी की चर्चा के बीच निर्मल वर्मा का नाम चला आया और बहाने से हिन्दी साहित्य पर एक अच्छी खासी चर्चा चल पड़ी। निर्मल वर्मा के काम पर लिखी उनकी किताब ‘हेयर एंड हेयरआफ्टर‘ (Here and hereafter)  बीते दिनों चर्चा में रही। एक समीक्षक ने उनकी इस किताब को निर्मल वर्मा को ‘पढ़ने के संस्मरण’ के तौर पर उल्लेखित किया।

विनीत की आगे की बातचीत में न केवल हिन्दी पाठकों के चहेते लेखक निर्मल वर्मा के लेखन के सिरे खुले बल्कि हिन्दी साहित्यकारों पर भी विशेष चर्चा हुई। निर्मल वर्मा पर लिखी इस किताब पर चर्चा करते हुए विनीत ने कहा कि निर्मल वर्मा ने एक भिन्न यूरोप के दरवाज़े साहित्यिक दुनिया के लिए खोले। वो निर्मल वर्मा ही थे जिन्होंने पहली बार चेक गणराज्य के लेखन का किसी दूसरी भाषा में अनुवाद किया। अंग्रेज़ी  से भी पहले उन्होंने चेक भाषा की पुस्तकों का अनुवाद हिन्दी में किया।

विनीत ने बताया कि प्रेमचंद ने यूरोपीय लेखकों पर कई निबंध लिखे हैं। भारतेंदु हरिश्चंद्र से लेकर हरिवंश राय बच्चन तक कई हिंदी लेखकों ने विदेशी साहित्य का अध्ययन किया और उसका प्रभाव उनके साहित्य में देखने को मिलता है।

उन्होंने कहा कि आमतौर पर यह असामान्य सी बात लग सकती है कि एक हिंदी के लेखक को यूरोपीय भाषा के साहित्य का इतना अच्छा ज्ञान है। लेकिन जब आप हिंदी लेखकों को पढ़ने लगते हैं तो पता लगता है प्रेमचंद से लेकर कृष्ण बलदेव वैद तक ने विदेशी साहित्य का कितना गहरा अध्ययन किया। विनीत ने बताया कि प्रेमचंद ने यूरोपीय लेखकों पर कई निबंध लिखे हैं। भारतेंदु हरिश्चंद्र से लेकर हरिवंश राय बच्चन तक कई हिंदी लेखकों ने विदेशी साहित्य का अध्ययन किया और उसका प्रभाव उनके साहित्य में देखने को मिलता है।

विनीत इस बात को लेकर अफसोसज़दा मालूम हुए कि दिल्ली में पढ़ने के दौरान अपने साहित्यिक सफर में बहुत बाद में हिंदी लेखन से उनका परिचय हुआ। उन्होंने हिन्दी के प्रति सम्मान ज़ाहिर करते हुए कहा “ज़ाहिर है हिन्दी के साहित्यकारों के योगदान को जानना मेरे लिए हिंदी साहित्य को अलग तरह से परिभाषित करता है। उनके काम में मुझे विश्व साहित्य के प्रति एक वास्तविक जुड़ाव देखने को मिला”।

विनीत ने कहा कि चीनी साहित्य का अध्ययन करते हुए जर्मन विद्वान गोएटा ने पहली बार ‘विश्व साहित्य’ पदबंध का इस्तेमाल किया और तब से यह पद चर्चा में आया। विश्व साहित्य की बात करते हुए हिन्दी के साहित्य के महत्व पर बात होना इस चर्चा का एक अहम पड़ाव रहा।

 

एपिक ऑफ़ दि डोमेस्टिक

Susana Moreira Marques

 

चर्चा को आगे बढ़ाते हुए पुर्तगाली लेखिका सुसाना (Susana Moreira Marques)  इस बात से खफा लगी कि जब भी यूरोपीय साहित्य की बात होती है तो अक्सर उत्तरी यूरोप की चर्चा की जाती है। जबकि पुर्तगाल सरीखे देशों में भी खूब साहित्य रचा जा रहा है। उन्होंने बताया कि पुर्तगाल में कथेतर साहित्य (नॉन फिक्शन) लिखने की परंपरा ना के बराबर है इसलिए उन्हें इसके लिए माहौल बनाना सबसे चुनौतीपूर्ण लगा। उन्होंने अपने साहित्य को घरेलू चीजों से महाकाव्य (Epic of the domestic) रचने की संज्ञा दी और कहा कि अपनी विशिष्टताओं के ज़रिए खास पहचान बनाने की चुनौती साहित्य में हमेशा से रही है। अलग-अलग स्वरों के मिश्रण से अपने साहित्यिक लेखन का एक अलग स्वर बना लेना यही साहित्यकार का काम है।

आगे अनुवाद पर चर्चा चली और ज़्यादातर साहित्यकार इस बात से मुतअस्सिर दिखे कि अनुवाद कई बार लेखन के मूल स्वर को पकड़ ही नहीं पाता। मसलन हिन्दी में तारीफ़ करते हुए कहे गए ‘क्या बात है’ का अनुवाद हुआ – ‘What’s the matter’. यह स्थानीय भाषा के इसी नाजुक से फ़र्क को न समझ पाने का नतीजा होता है, जिससे कई बार मूल रचना के अर्थ ही बदल जाते हैं।

 

हर बारिश में

चर्चा के बाद सवाल जवाब का सिलसिला भी चला और फिर सभा रसरंजन के लिए विसर्जित हो गई। पार्श्व में संगीत की धुन थी, अभी-अभी होकर रुकी बारिश ने एक हल्की सी ठंडक माहौल में तारी कर दी थी। किनारे एक पूल में फ़व्वारा अपनी धुन में नाच रहा था। अच्छी सख्या में मौजूद लोग वाइन के ग्लास के साथ नेटवर्किंग में मशगूल थे। चेक बीयर और स्कॉच के सुरूर को भी अब माहौल में महसूस किया जा सकता था।

इसी सुरूर के बीच कुछ देर विनीत गिल से निर्मल वर्मा के काम पर चर्चा का मौका मैनें भी लपक लिया। निर्मल ने यूरोपीय संस्कृति को लेकर अपनी किताब ‘हर बारिश में’ में कहा है कि भारत में जिस संस्कृति को हम रिकॉर्ड्स में सुनते हैं, फ़िल्मों में देखते हैं या फिर किताबों में पढ़ते हैं यूरोप जाकर वह लोगों की दिनचर्या में दिखने लगती है। संस्कृति के हॉटहाउस वातावरण से निकलकर निर्मल यूरोप में उस संस्कृति को जीते हुए लोग खोज निकालते हैं। इसी पर विनीत से कुछ देर चर्चा हुई। विनीत की चर्चा में बोरहेज़ का ज़िक्र भी आया। कारवां में विनोद कुमार शुक्ल पर लेख लिख चुकी एक पत्रकार (मोहिनी गुप्ता)  इस चर्चा को सुनती रही। और फिर एक रस्मी परिचय हुआ। यहीं विनोद कुमार शुक्ल पर अंग्रेज़ी में लेख लिख चुके एक और पत्रकार आसुतोष से भी मिलना हुआ। चलते-चलते सैकत से भी एक छोटी सी मुलाकात हो गई। उनकी सहजता ने आकर्षित किया।

 

रसरंजित माहौल में कुछ दूर मुझे बुकर विजेता गीतांजलि श्री भी नज़र आई। मैं संकोच के साथ पास ही खड़ा लेखिका जूलिया से हो रही उनकी बात सुनता रहा। मेरी उपस्थिति ने शायद उन्हें कुछ असहज किया (या शायद मुझे ही यह लगा हो) । वो मेरी ओर देखकर मुस्कुरा दी। मैंने एक लेखक के तौर पर अपना परिचय दिया तो उन्होंने जूलिया से बात खत्म कर लेने का इसरार किया। गीतांजलि जी से इससे पहले कभी मिलना नहीं हुआ फिर भी उनका यहाँ होना जैसे किसी बहुत करीबी का मिल जाना लगा। ‘हमारा शहर उस बरस’ अपने लड़कपन में कभी पढ़ा था और उनकी किताब का यह शीर्षक जाने क्यों ज़हन में हमेशा बना रहा। बुकर की खबर आने के बाद के दिनों में एक बार कश्मीर जा रही इनफ़्लाइट मैगज़ीन में गीतांजलि जी का अंग्रेज़ी में लिया गया साक्षात्कार दिखा तो बतौर हिन्दी लेखक यह अपनी भी उपलब्धि लगी। मैनें चहकते हुए उस साक्षात्कार की तस्वीर ले ली थी।  उनसे यह बेहद संक्षिप्त मुलाकात आगे कभी मिलने के वादे पर खत्म हुई। फिर जूलिया से मैं और आस्था काफी देर तक बतियाते रहे।

 

इंतिहाई उमस

Long night of literature 2023 in Delhi

 

मैंने हिन्दी लेखकों के लिए सांस्थानिक सहयोग के अभाव की बात बताई तो उन्होंने कहा ऐसा नहीं है कि यूरोप में लेखकों को बहुत सपोर्ट मिल जाता है। लेकिन रेजीडेंसी वगैरह के इंतज़ाम ज़रूर हैं। पर लेखकों का संघर्ष वहाँ भी एक जैसा ही है। बारिश के बाद माहौल की तपन ने अब उमस का रूप अख्तियार कर लिया था। लिहाजा यहाँ ज़्यादा देर खड़े रहना मुश्किल हुआ जा रहा था। आस्था ने जूलिया को खूब सारा नींबू पानी और लस्सी वगैरह पीते रहने की हिदायत दी। जूलिया ने बताया कि आगे वो कोलकाता जाएंगी। और फिर चेन्नई तक वो इस बुक टूर का हिस्सा रहेंगी।

इंतिहाई उमस के बीच यह मज़मा शराबों में डूबता रहा और कुछ देर में साहित्य पृष्ठभूमि में चला गया। पास ही में मौजूद फव्वारा अब भी अपनी लय पर इतरा रहा था।

मैं सोच रहा था कि ऐसे बुक टूर हिन्दी के लेखकों के लिए आज भी दूर की कौड़ी लगते हैं। फिर भी भारत में साहित्यिक ‘हॉटहाउस वातावरण’ के बीच इस तरह की किताबी संस्कृति का विकसित होना भी यूं कम बड़ी बात नहीं है, भले ही फ़िलवक्त यह अंग्रेज़ी की दुनिया तक सीमित हो।

लेखकों और पाठकों के बीच परस्पर बातचीत का यह माहौल एक लेखक के तौर पर मुझे सकारात्मक लगा। हिन्दी में भी निर्मल वर्मा, मंगलेश डबराल सरीखे लेखकों को भी इस तरह के क्रॉस कल्चर डायलॉग के मौके मिले ही हैं। अलग-अलग संस्कृतियों के लेखकों से मिलने के मौके गैर अंग्रेज़ी भाषाओं को भी हासिल हों तो इस तरह के बहुसांस्कृतिक आयोजन और मानीखेज साबित होंगे।

यही सोचते हुए कुछ अच्छी मुलाकातों की याद लिए हम आयोजन से लौट आए।

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उमेश पंत

उमेश पंत यात्राकार के संस्थापक-सम्पादक हैं। यात्रा वृत्तांत 'इनरलाइन पास' और 'दूर दुर्गम दुरुस्त' के लेखक हैं। रेडियो के लिए कई कहानियां लिख चुके हैं। पत्रकार भी रहे हैं। और घुमक्कड़ी उनकी रगों में बसती है।

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