Lepakshi temple andhra

लेपाक्षी मंदिर आंध्र प्रदेश की अनूठी विरासत

लेपाक्षी मंदिर (Lepakshi temple) दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश में मौजूद मंदिर है। अगर आपको भारत की स्थापत्य कला की शानदार बानगी देखनी है तो आंध्र प्रदेश का लेपाक्षी आपके लिए बेहतरीन ठिकाना हो सकता है।

दक्षिण भारत के मुख्य शहर बंगलुरू से करीब एक सौ बीस किलोमीटर की दूरी पर बसा लेपाक्षी विजयनगर साम्राज्य की के दौर की अद्भुत प्रस्तर कला से आपको रूबरू होने का मौक़ा देता है। 

 

लेपाक्षी नाम कैसे पड़ा ( History of Lepakshi temple) 

आंध्र प्रदेश के अनंतपुर ज़िले के हिंदूपुर से तेरह किलोमीटर दूर मौजूद इस जगह के बारे में मान्यता है कि

 रावण जब सीता को हर कर ले जा रहा था तो यहां जटायु ने उससे युद्ध किया और वह बुरी तरह घायल हो गया। 

बाद में राम जब यहां आए तो उन्होंने मूर्छित जटायु को बोला ‘ले पक्षी’ यानी उठो पक्षी। कहते हैं मरणासन्न जटायु को मोक्ष की प्राप्ति हुई और इस जगह का नाम लेपाक्षी पड़ गया।

ऐतिहासिक साक्षों के मुताबिक़ सोलहवीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के खजांची वीरूपन्ना और उनके भाई वीरन्ना ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। कहा जाता है कि इस पूरे मंदिर प्रांगण को कछुए के आकर की बनी चट्टान को काटकर बनाया गया जिसे कुर्म शिला कहा जाता था।


 

लेपाक्षी मंदिर का आर्किटेक्चर ( Architecture of Lepakshi temple)

  • वीरभद्र मंदिर 

इस मंदिर समूह के परिसर में बने वीरभद्र मंदिर का निर्माण दक्षिण भारत की विजयनगर शैली में हुआ है। मंदिर में वास्तुपुरुष और पद्मिनी की दीवार पर गढ़ी हुई प्रतिमाएँ ख़ास ध्यान आकर्षित करती है। 

मंदिर के छत पर शतपत्र कमल का आकार भी देखा जा साकता है। यहाँ कई भित्तिचित्र भी हैं जिनमें अर्धनारीश्वर के चित्र देखने लायक हैं। मंदिर के भीतर की गई रोशनी की सजावट भी आपको अपनी ओर आकर्षित करती है।

 

  • नाट्य मंडप

मुख्य मंदिर के सामने नाट्यमंडप है। यहाँ क़रीब सत्तर स्तंभ बने हुए हैं जिनमें दक्षिण भारतीय प्रस्तर कला की अद्भुत झांकी देखी जा सकती है।

नाट्य मंडप के स्तंभों पर आपको नाचती हुई रंभा और दर्शक दीर्घा में शिव, पार्वती, पंचमुखी ब्रह्मा, नंदीश्वर और नटराज को दर्शाते चित्र पत्थर पर उकेरे हुए मिल जाएँगे। यहाँ एक अनूठा स्तंभ भी है जिसका शिल्प दर्शकों को हैरान कर देता है।

क़रीब आठ फ़ीट ऊँचा यह स्तंभ ज़मीन से क़रीब आधा इंच ऊपर उठा हुआ है। कहते हैं कि यह पूरा मंदिर इसी स्तंभ पर टिका है।

ब्रिटिश दौर में हेमिल्टन नाम के एक अंग्रेज़ अधिकारी ने इस स्तंभ की गुत्थी को सुलझाना चाहा और जब स्तंभ के नीचे एक छड़ी डालकर निरीक्षण किया गया तो आश्चर्यजनक रूप से यहाँ मौजूद सभी स्तंभ अपनी जगह से कुछ हिलने लगे।

कहीं पूरी इमारत ढह न जाए इसी डर से इस अनुसंधान को अधूरा छोड़ दिया गया। आकाश स्तंभ या हैंगिंग पिलर का इस तरह हवा में होना आज भी रहस्य बना हुआ है।

  • कल्याण मंडप

मंदिर प्रांगण के दाईं ओर बना कल्याण मंडप भी एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर है। हालांकि इसका निर्माण अधूरा ही रह गया। मान्यता है कि भगवान शिव और पार्वती की शादी के मंडप के तौर पर इस मंडप को बनाया जा रहा था।

इसके प्रवेश में बने खंभों पर दस ऋषियों की मूर्तियां गढ़ी हुई है जो मेहमानों के स्वागत में खड़े हैं। अंदर एक गोले के आकार में खंभे बनाए गए हैं जिनमें यहाँ आए अतिथियों को दर्शाया गया है। कहा जाता है कि विजयनगर के राजा अच्युतराय को यहाँ हो रहे निर्माण का काम देख रहे खजांची की शिकायत की गई।

अपनी ईमानदारी पर सवाल उठते देख ख़ज़ांची ने अपनी दोनों आंखें निकालकर दीवार पर मार दी। यहाँ दीवार पर कुछ निशान भी बने हैं। माना जाता है कि यह इन्हीं आँखों से निकले रक्त के निशान हैं। 

 

  • लता मंडप

लता मंडप में छत्तीस स्तंभ बने हुए हैं। यहाँ स्तंभों पर जो लता के डिजाइन बने हुए हैं वो स्थानीय साड़ियों में भी देखने को मिल जाते हैं। पास ही, ज़मीन पर एक बड़ी थाल की संरचना बनी हुई है। कहा जाता है कि मंदिर निर्माण के दौरान इसमें शिल्पकार खाना खाते थे।

इसके अलावा, यहाँ  सीता हैजी भी है जिसमें सीता के पदचिह्न बने हुए हैं। कहा जाता है कि इन चरणचिह्नों में लगातार पानी रहता है जिसके स्रोत का आज तक पता नहीं चला। प्रांगण में तीर्थ यात्रियों के लिए बना एक संकरा लंबा हाल भी है।

 

  • एक शैल खंड पर बना नंदी  (Leakshi Nandi )

मंदिर के पास ही नंदी की एक विशाल प्रतिमा है जिसके बारे में ख़ास यह है कि वह एक ही शैल खंड को काटकर बनाई गई है। यह इस तरह की पूरे देश में नंदी की सबसे बड़ी प्रतिमा है। 

पंद्रह फीट ऊँची और चौबीस फीट चौड़ी यह प्रतिमा दूर से ही आकर्षित करती है। यह नंदी वीरभद्र मंदिर में बने सात फ़नों वाले नागलिंग को देखता हुआ प्रतीत होता है। 

 

लेपाक्षी मंदिर कैसे पहुंचें (How to reach Lepakshi temple)

लेपाक्षी मंदिर के लिए आप आंध्र प्रदेश के हिंदुपर तक ट्रेन से जा सकते हैं। हिंदुपुर तक आप बस से भी जा सकते हैं। नजदीकी हवाई अड्डा बंगलुरू में है जहां से करीब तीन घंटे में आप लेपाक्षी तक आ सकते हैं। 

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उमेश पंत

उमेश पंत यात्राकार के संस्थापक-सम्पादक हैं। यात्रा वृत्तांत 'इनरलाइन पास' और 'दूर दुर्गम दुरुस्त' के लेखक हैं। रेडियो के लिए कई कहानियां लिख चुके हैं। पत्रकार भी रहे हैं। और घुमक्कड़ी उनकी रगों में बसती है।

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