एक दोस्त का प्रोफेश्नल हो जाना

कई बार अपने आसपास लोगों को निहायत प्रोफेश्नल होता देख डर लगता है। समझ नहीं आता कि क्या ज्यादा जरुरी है। इन्सानी भावनाओं को जिन्दा रखते हुए जीना या प्रोफेश्नल होना। जल्दबाजी, बेचेनी फलतह तुनकमिजाजी, गुस्सा। समझ नहीं आता कि क्यों कोई काम शुकून से नहीं किया जा सकता। पर सबके काम करने करवाने के अपने अपने तरीके हैं यहां। क्या सही क्या गलत। लेकिन कई बार इस प्रोफेश्नलिजम की हद यहां अपने लोगों में देखने को मिल जाती है। और वो एक पल में बदल जाते हैं। ये सब अकस्मात होता है। अचानक। जैसे इससे पहले इसके होने की कोई सम्भावना ही न होगी। कहीं नहीं। और जब ये होगा तो आपको अकस्मात एक चोट लगेगी। और इस चोट के अहसास की बारीकियों को न समझ पाने की जिद लिये वो आपको चोट पहुंचाने को तैयार रहेंगे। वो इतने प्रोफेश्नल हैं। वो ये अहसास करा करा के थक जाना चाहेंगे कि उन्हें आपकी चोट से कोई मतलब कभी था ही नहीं।

वो नहीं थकेगे और कहते रहेंगे। वो कहेंगे कि कल अगर तुम मेरे बगल से गुजरोगे और मिल लेना चाहोगे तो मैं तुमसे हाई कह दूंगा। और अगर तुम कुछ नहीं बोलोगे तो मैं निकल जाउंगा बिना कुछ कहे। मुझे इससे कोई फर्क पड़ेगा ही नहीं। ऐसा कहते जताते वो इतने प्रोफेश्नल दिखना चाहेंगे कि आपको ये लगने को मजबूर होना होगा कि उनकी तुलना में आप कुछ नहीं हैं। आप किसी चीज का कोई उत्तरदायित्व लेने की योग्यता नहीं रखते। वो पहले जानबूझ के सारी बागडोर अपने हाथ में लेकर रखेंगे। इस हद तक कि आप एक तरह से आत्मनिर्भरता की डोर उनके हाथ में सोंप कुछ कुछ परजीवी होने का अनुभव करने लगें। काम आप भी उनकी तुलना में उन्नीस बीस के अनुपात से करेंगे हो सकता है बीस आप ही कर रहे हों पर इस काम का बंटवारा वो जानबूझ के ऐसे करेंगे कि आपकी उनपर निर्भरता बर्करार रहे। अगर उन्हें जरा भी लगेगा कि आपमें कम योग्यता है तो वो आपको सीधे ही बर्खास्त कर देंगे। आपकी हर बात को अपने तर्कों की दुहाई देकर खारिज कर देंगे।

लेकिन अगर उन्हें लगता होगा कि आप वाकई में योग्य हैं तो सम्भव है वो हर अगला कदम उठाने से पहले आपसे राय लें, उस राय को पूरा मानते हुए उसमें इस तरीके से बदलाव करें कि वो उनकी लगने लगे। शुरुआती तौर पे सम्भवतह वो ऐसा जताएं कि आप उनके लिये किसी भी चीज से ज्यादा अहमियत रखते हैं, आपके बिना उनका काम कर पाना सम्भव नहीं हैं। और ये जताते हुए वो इतने भावुक लगने लगें कि एक पल को आपको लगे कि आपसे चहेता उनका कोई हैं ही नहीं। और आपके बिना किसी और के साथ वो काम कर ही नहीं सकते। लेकिन जैसे जैसे काम अपने अन्तिम चरण पे पहुंचेगा वो आपको महसूस कराना शुरु कर देंगे कि ये सब कुछ वन मैन आर्मी है। जो हैं वहीं हैं। उनके बिना काम हो पाना असम्भव है। और ये दिखाने के लिये वो बीच ही में सब कुछ छोड़ के चले जाने का नाटक करेंगे। बीच की सारी कड़ियों से आपकोे अनभिज्ञ रखेंगे। और हो सकेगा तो कुछ कड़ियां गायब ही कर देंगे।

ऐसा करते हुए वो जताएंगे कि आप रिस्पोंसिबल नहीं हैं। आपके साथ काम करना एक पैथेटिक अनुभव है। ये कहते हुए वो भूल जायेंगे कि कैसे उन्हीं के आग्रहपास में आकर आप उनके साथ काम करने को तैयार हुए थे। आप अगर थोड़ा भी दिल से सोचते हैं तो आपको इस बात का बहुत दुख होगा। पर चूंकि इस तरह मजधार में छोड़ देने की आदत आपको कभी थी ही नहीं तो आप कम से कम काम पूरा होने तक अपनी तन्मयता बर्करार रखेंगे। सम्भव है आपको लाख न चाहते हुए उनके सामने झुकना ही पड़ेगा। उनकी बात माननी ही पड़ेगी। और इस तरह उनका दम्भ और बढ़ जायेगा। वो समझने लगेंगे कि उनकी सोच कि वो वन मैन आर्मी हैं बिल्कुल सही है। उन्हें शायद जीत का मद होगा। और आपको इस बात का दुख कि आपने एक ऐसा दोस्त खो दिया जिसे आप अब तक बहुत करीबी मानते रहे थे।

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उमेश पंत

उमेश पंत यात्राकार के संस्थापक-सम्पादक हैं। यात्रा वृत्तांत 'इनरलाइन पास' और 'दूर दुर्गम दुरुस्त' के लेखक हैं। रेडियो के लिए कई कहानियां लिख चुके हैं। पत्रकार भी रहे हैं। और घुमक्कड़ी उनकी रगों में बसती है।

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