फूलों की घाटी (Valley of flower) को उत्तराखंड की शान कहा जाता है। उत्तराखंड के चमोली ज़िले में मौजूद यह एक राष्ट्रीय उद्यान है जो दुनिया भर के ट्रैकर्स के बीच बहुत मशहूर है.
यहाँ के बुग्याल में फूलों की सैकड़ों दुर्लभ प्रजातियाँ देखने को मिलती हैं। अगर आप प्रकृति प्रेमी हैं तो यह ट्रैक आपको ज़रूर करना चाहिए।
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फूलों की घाटी ट्रैक ऐसे करें (Valley of flower trek)
इस ब्लॉग में आप पढ़ेंगे कि वैली ऑफ़ फ़्लावर या फूलों की घाटी का यह ट्रैक कहाँ से शुरू होता है और इसे कितने दिन में किया जा सकता है?
फूलों की घाटी (Valley of Flowers) यात्रा का पहला हिस्सा यहां पढ़ें. भारत के अंतिम गाँव माणा और वासुधारा फ़ॉल ट्रेक की पूरी जानकारी
गोविंदघाट से घंघरिया का ट्रैक
Valley of flower trek Day 1 : Govindghat to Ghanghariya
- पहला दिन , गोविंदघाट–घंघरिया, 27 जून 2016
गोविंदघाट (Govindghat)
सुबह-सुबह हम गोविंदघाट के अपने होटल से निकल गए. गुरुद्वारे से हमने अपने लिए एक कपड़े का छोटा सा पिट्ठू बैग ख़रीदा और उसमें सिर्फ़ ज़रूरत का सामान लेकर हम निकल पड़े फूलों की घाटी के बहुप्रतीक्षित ट्रैक पर.
हमें बताया गया कि अलकनंदा नदी को एक पुल के सहारे पार कर हमें नदी के दूसरी तरफ़ जाना होगा जहां से हम चाहें तो तीन किलोमीटर आगे पुलना तक के लिए शेयर्ड सूमो में जा सकते हैं. एक खड़ंजा हमें नदी की तरफ़ ले आया.
गोविंदघाट की छोटी सी बाज़ार में सिखों का भारी जमावड़ा था. ज़्यादातर लोग अपने पवित्र स्थान हेमकुंड साहब की यात्रा की तैयारी कर रहे थे.
पुल पार कर एक टैक्सी स्टैंड था जहां से पुलना के लिए एक जीप लगी हुई थी. जीप में अपने लिए जगह तलाशकर हम बैठ गए. कुछ ही देर में जीप एक कच्ची सड़क पर चढ़ रही थी. यह सड़क इतनी संकरी थी कि मुझ जैसे पहाड़ी को भी एक-आध बार इस ऊबड़-खाबड़ सड़क से गुज़रते हुए डर लग रहा था.
हिचकोले खाते हुई जीप को चला रहे ड्राइवर को न जाने कितने समय से इस सड़क पर चलने की आदत रही होगी. वो निश्चिन्त गाड़ी चला रहा था. क़रीब बीस मिनट की यात्रा के बाद सड़क जहां जाकर ख़त्म हुई वहां हम उतर गए. यहां से हमें पैदल यात्रा शुरू करनी थी.
पुलना (Pulna)
यहां से नीचे देखने पर अलकनंदा नदी दिखाई दे रही थी. साथ ही, उस क़हर के घाव भी जो 2013 में आई आपदा में इस नदी ने इस इलाके में बरपाया होगा. नदी के कैचमेंट एरिया में बने तहस-नहस हो चुके कई घरों के खंडहर हमें यहां से दिखाई दे रहे थे.
ज़ाहिर था लोगों ने नदी के घर में क़ब्ज़ा करने की कोशिश की और नदी ने उन्हें नेश्तनाबूत कर दिया. साफ़ था प्रकृति जब अपने पर आती है तो उसके सामने इंसान की कोई बिसात नहीं रह जाती.
पुलना से एक चौड़ा खड़ंजा अब एक जंगल के बीच से हमें लगातार एक चोटी पर ले जा रहा था. हमें घंघरिया के लिए क़रीब 12 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़नी थी जो बहुत आसान काम नहीं था.
अच्छी बात यह थी कि रास्ते भर हमें कई ढाबे मिल रहे थे जहां खाने-पीने की अच्छी व्यवस्था थी. बुरी बात यह थी कि यहां लोगों के साथ-साथ घोड़ों का भी तांता था जिनका मल रास्ते भर बिखरा हुआ था और उसकी महक ने सफ़र का मज़ा कुछ कम कर दिया था.
लक्षमण गंगा (Lakshaman Ganga)
क़रीब तीन किलोमीटर चलने के बाद एक विस्तार सा खुला और लकड़ी के पुल के सहारे हमने एक धारा को पार किया. यह लक्षमण गंगा थी जो घंघरिया में अलकनंदा से मिलती है.
यहां कुछ देर सुस्ताकर हम आगे बढ़ गए. मौसम बहुत खुला हुआ नहीं था लेकिन बारिश अब तक नहीं हुई थी. हम उम्मीद कर रहे थे कि सफ़र के दौरान बारिश न हो ताकि रास्ते सामान्य रहें.
घंघरिया (Ghanghariya)
क़रीब पांच घंटे के ट्रैक के बाद अब हम घंघरिया में थे. आस-पास ऊँचे-ऊँचे पहाड़ थे जो बादलों से घिरे हुए थे. हमारी उम्मीद के विपरीत घंघरिया में बहुत सारे होटल और दुकानें थी. यहां खेतों में कई सारे स्थाई टेंट भी लगे हुए थे. आसमान में बादल अब एकदम काले हो गए थे.
तय था कुछ देर में घनघोर बारिश होगी. इससे पहले ही हमने होटल कर लेने का फ़ैसला किया. कुछ देर में हमें रात गुज़ारने के लिए एक ठीक-ठाक सा ठिकाना मिल गया और इससे पहले हम कुछ और सोचते बारिश शुरू हो गई.
क़रीब घंटे भर की बारिश के बाद जब हम बाहर निकले तो गाँव के बीच से गुज़रते खड़ंजे कीचड़ से भर चुके थे. फिसलते-बचते कुछ देर हम गाँव में घूमते रहे और अंधेरा होने से पहले होटल में लौट आए. यहां एक दिक्कत हो गयी थी.
यह हमारी बेवक़ूफ़ी ही थी कि हमें लगा था कि यहां कोई एटीएम होगा. हमारे पैसे अब ख़त्म होने को आए थे. लेकिन स्वाभविक तौर पर यहां कोई एटीएम नहीं था. हम क़रीब 3200 मीटर की ऊंचाई पर एक सुदूर गाँव में थे. हमने कुछ ज़्यादा ही उम्मीद पाल ली थी.
ख़ैर तय हुआ कि अगली सुबह जितनी जल्दी हो सके फूलों की घाटी की तरफ़ रवाना हो लिया जाएगा. ताकि वक़्त पर लौटकर वापस गोविंदघाट पहुंचा जा सके. और वहाँ से क़रीब दस किलोमीटर आगे उस जगह पहुचा जा सके जहां एटीएम था. रात को हम जल्दी बिस्तर के हवाले हो गए. सफ़र की थकान तो थी ही. नींद भी आ ही गयी.
फूलों की घाटी की यात्रा के अंतिम पड़ाव
Valley of flower trek Day 2 : Ghanghariya to Valley of flower national park
दूसरा दिन , घंघरिया– फूलों की घाटी– गोविंदघाट, 28 जून 2016
सुबह का पांच बज रहा था. उजाला अभी हुआ ही था और दानिश और मैं होटल से निकल आए थे. घंघरिया गाँव से कुछ ऊपर बढ़कर एक रास्ता सिखों के प्रसिद्ध तीर्थ हेमकुंड साहब की तरफ़ जाता है और दूसरा फूलों की घाटी (Valley of flower) की तरफ़.
यहां से गाँव का सुंदर नज़ारा भी दिखाई दे रहा था. हेमकुंड साहब की तरफ़ तो कुछ लोग जाते हुए दिख रहे थे लेकिन घाटी की तरफ़ जाने वाले केवल हम दोनों लोग ही थे.
Valley of flower entry Fee चैकपोस्ट
कुछ देर में हम एकदम जनशून्य रास्ते पर थे और अनुमान के हिसाब से आगे बढ़ रहे थे. कुछ आगे एक चेकपोस्ट मिला जिससे तय हो गया कि हम सही रास्ते पर हैं. चैकपोस्ट पर कोई नहीं था. एक बोर्ड था जिसपर लिखा था वैली ऑफ फ़्लावर की एंट्री फी 150 रुपए. मतलब हम दोनों के तीन सौ रुपए लगने थे.
हमारे पास कुल पांच सौ रुपए बचे थे. ऐसे में अगर हम इस फ़ीस से बच सकें तो आज वापस घंघरिया में रुक सकते थे. यह सोचते हुए हम दबे पाँव आगे निकल ही रहे थे कि पीछे से एक आवाज़ आई- कहाँ जा रहे हो? एंट्री करके जाओ. इस आवाज़ के पीछे नीचे बने एक टीनशेड से एक आदमी भी नुमाया हुआ.
“इतनी सुबह-सुबह? अभी तो एंट्री का टाइम भी नहीं हुआ. यहां छह बजे एंट्री होती है.”
यह कहकर वो शख़्स ऊपर बने चेकपोस्ट पर आ गया.
“कोई बात नहीं कुछ ही मिनट बचे हैं. आप लोग एंट्री करा के चले जाओ”
यह कहकर उस शख़्स ने हमारी रसीद काट दी. हमारे बहुमूल्य तीन सौ रुपए जाते रहे. हम रसीद लेकर निकल ही रहे थे कि उस अधेड़ शख़्स ने फिर टोका
“एक मिनट ये डंडे लेकर जाओ. यहां भालुओं का आतंक हो रखा है. डंडे पीटते हुए और आवाज़ करते हुए जाना. आप पहले हो जो एंट्री कर रहे हो. हमें हर आदमी का हिसाब रखना होता है. शाम को पांच बजे से पहले आप नहीं लौटे तो हमारे लोग आपको ढूँढने आएंगे. वैसे होगा कुछ नहीं. आप बस शोर मचाते हुए जाना”
ये कहकर उस शख़्स ने हमारे मन में एक डर भी पैदा कर दिया था. जिस खड़ंजे पर हम चल रहे थे वह एक हल्की ढलान में उतर रहा था जो हमें एक पुल तक ले आया. पुल पार करते ही गर्जना करती हुई एक पानी की धारा से हमारी मुलाक़ात हुई. इस धारा के बग़ल से एक रास्ता पहाड़ी की तरफ़ जा रहा था.
इस रास्ते पर चढ़ते ही हमें समझ आ गया कि यहां तो बड़े आराम से किसी भी जंगली जानवर से मुलाक़ात हो सकती है.
अलकनंदा नदी पर पुल
आगे एकदम घना जंगल था जिसके बीच से एक पगडंडी गुज़र रही थी. झाड़ियाँ इतनी घनी थी कि कुछ मीटर आगे क्या है दिखाई नहीं दे रहा था. और रास्ता लगातार ऊपर की तरफ़ बढ़ रहा था. क़रीब चार किलोमीटर की तीखी चढ़ाई चढ़ते हुए हम आवाज़ करते रहे.
ऊपर झाड़ियों में सरसराहट होती तो भालू का चेहरा हमारी आँखों के सामने नाचने लगता. ख़ैर क़रीब डेढ़ घंटे की चढ़ाई चढ़ने के बाद एक मोड़ आया और सबकुछ बदल गया.
फूलों की घाटी का शुरुआती पॉंइंट
मोड़ के बाद घना जंगल कहीं ग़ायब हो गया और सामने एक हरी-भरी वादी अपने पूरे खुलेपन में नुमाया हो गयी. यह अब देखे मेरे सबसे खूबसूरत नज़ारों में से एक था. हम फूलों की घाटी के शुरुआती बिंदु पर खड़े थे. ऊपर से ठंडे पानी की एक धारा बहती हुई आ रही थी.
इस पानी से हमने पानी पिया और मुँह धोया तो थकान जैसे जाती रही. आगे का रास्ता अब आसान था. हमें पगडंडी पर चलते हुए एक सपाट सी घाटी में उतरना था.
फूलों की घाटी का अंतिम पड़ाव (Valley of flower medow)
क़रीब एक किलोमीटर चलकर हम घाटी के बीच में थे. हम दो लोगों के सिवा इस वक़्त यहां दूर-दूर तक और कोई नहीं था. इतनी ख़ूबसूरत जगह पर पूरी तरह से अपना अधिकार होना एक अलौकिक अनुभव था. हम जितनी ज़ोर से चाहे चीख़ सकते थे जहां चाहे लेट सकते थे. जो चाहे कर सकते थे.
जैसे हम एक नयी दुनिया में आ गए हों जहां हमपर कोई नज़र नहीं थी. किसी भी बंधन से परे एक दुनिया जो सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारी थी.
यह फूलों के खिलने का मौसम नहीं था. यहां अगस्त में फूलों की कई क़िस्में अपनी खूबसूरती बिखेरती हैं. जो कोंपलें खिल रही थी उससे हम अंदाज़ा लगा सकते थे कि जब यह सारे फूल खिल जाएँगे तो यह हरियाली कितने रंगों से भर जाएगी.
हमने सुना था कि ब्रह्मकमल जैसे विरले फूल भी यहां खिलते हैं. वैली ऑफ़ फ़्लावर (Valley of flower) को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्ज़ा दिया गया है. यह दरसल एक नेशनल पार्क है.
आस-पास हरियाली से पगे पहाड़ थे जिनपर बादल के टुकड़े आवाजाही कर रहे थे और ऊपर चटख नीला आसमान था. यहां का हर रंग यहां उतना ही साफ़ था जितनी हवा. किसी भी तरह के प्रदूषण से इस जगह का दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं था. दूर एक ग्लेशियर भी नज़र आ रहा था.
हमारा मन तो था कि हम उसके नज़दीक जा पाते लेकिन इस बार हम मजबूर थे. हमारे पैसे ख़त्म हो चुके थे. आज ही हमें नीचे लौटना था.
क़रीब घंटेभर हम घाटी के बीच में उगती कोंपलों के बीच एक छोटी से चट्टान पर बैठे रहे. कितनी गहरी शांति थी यहां. इस शांति को कुछ देर हम अपने अंदर महसूस करते रहे. घंटे भर बाद हम न चाहते हुए भी यहां से लौट आए.
अभी हमें क़रीब 20 किलोमीटर का पैदल रास्ता तय करना था. क़रीब दस बजे हम फूलों की घाटी से लौट रहे थे और लोग अब यहां आना शुरू कर रहे थे.
हमारे लिए अच्छी बात थी कि क़रीब-क़रीब पूरा रास्ता ढलान भरा था. अपने हिस्से की मेहनत भरी चढ़ाई हमने चढ़ ली थी.
रास्ते भर हमें लोग मिलते रहे और पूछते रहे कि कितना और चलना है. रास्ते भर हम उन्हें बताते रहे कि चलते रहिए ऊपर जन्नत आपका इंतज़ार कर रही रही है. एक ऐसी जगह जहां पहुँच जाने के बाद रास्ते की थकान फिर मायने ही नहीं रखती.