त्र्यंबकेश्वर गौतमी नदी के किनारे बसा महाराष्ट्र का एक खूबसूरत इलाक़ा है। अगर कभी हसीन पहाड़ी वादियों में जाकर धार्मिक आस्था से सराबोर होने का मन हो तो त्र्यंबकेश्वर मंदिर ज्योतिर्लिंग आपके लिए एकदम मुफ़ीद जगह है। महाराष्ट्र के नासिक से त्र्यंबकेश्वर की दूरी लगभग 1 घंटे की है. इस कस्बे की रग-रग में आध्यात्म की महक महसूस की जा सकती है।
त्र्यंबकेश्वर पहुंचकर ऐसा लगता है कि ये कस्बा आस्था के लिए ही जीता है। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के बावजूद एक अनौखी सी शांति इस कस्बे में घुली सी लगती है। माथे पर त्रिषूल के आकार का टीका लगाये लोग देश के अलग अलग कोने में समाये आध्यात्मिक आस्था के भाव को यहां आकर बिखेरते से मालूम होते हैं।
त्र्यंबकेश्वर को भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिगों में से दसवां ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह देश का एक अकेला ऐसा मन्दिर है जहां भगवान ब्रहमा, विष्णु और शिव की एक साथ पूजा की जाती है। तीनों भगवानों के लिंग एक साथ होने के कारण ही इसे त्र्यंबकेश्वर कहा जाता है।
त्र्यंबकेश्वर समुद्री सतह से लगभग ढ़ाई हज़ार फ़ीट की उंचाई पर बसा है। यहां मौजूद त्र्यंबकेश्वर का मन्दिर नानासाहब पेशवा ने बनवाया था। काले पत्थरों से प्राचीन कला शैली में बने इस मन्दिर की दीवारों पर की गई नक्काशी देखने लायक है।
त्र्यंबकेश्वर की कहानी
पुराणों में कहा गया है कि त्र्यंबकेश्वर में मौजूद ब्रहमगिरि पर्वत पर गौतम श्रृषि के प्रयासों से गोदावरी का उद्गम हुआ। गोदावरी का यह उद्गम स्थल ब्रहमगिरि, त्र्यंबकेश्वर का एक अन्य आकर्षण है। ब्रहमगिरि पर्वत की तलहटी पर बने इस उद्गम स्थल से त्रयम्बकेश्वर का सुन्दर नज़ारा देखने को मिलता है। कहा जाता है कि त्रयम्बकेश्वर के निर्माता नानासाहब पेशवा अपने कैदियों को सजा देने के लिए इस पर्वत के चक्कर लगाने का आदेश दिया करते थे। इस जगह के ठीक सामने नज़र आती है लिंग के आकार की बनी एक अनूठी पर्वत संरचना। इस पर्वत को अंजली पर्वत कहा जाता है। माना जाता है कि इसी जगह पर हनुमान जी की माता अंजली ने तपस्या की थी।
त्र्यंबकेश्वर में चार अलग-अलग कुंड बने हैं। इनमें से एक को गंगासागर कहा जाता है। यहां मौजूद मुख्य कुंड कुषावर्त में हर बारह साल में एक बार कुंभ मेला लगता है। इस मौके पर भारी संख्या में लोग यहां आते हैं। सूर्योदय के बाद सुबह सुबह इस कुषावर्त में स्नान करने में कितना आनन्द आता है वह यहां आकर ही महसूस किया जा सकता है। इस समय इस घाट का नजारा ही कुछ और होता है।
त्र्यंबकेश्वर कालसर्प पूजा
पूर्वजों की अतृप्त आत्माओं की अशान्ति के कारण होने वाले कालसर्प दोष को दूर करने के लिए त्र्यंबकेश्वर एक अकेला स्थान माना जाता है। यहां आकर लोग इस दोष से मुक्ति प्राप्त करने के लिए त्र्यंबकेश्वर कालसर्प पूजा करवाते हैं। आम मान्यता है कि त्र्यंबकेश्वर आकर गंगासागर में स्नान करने के बाद भगवान त्र्यंबकेश्वर के मन्दिर की परिक्रमा करने से सारे दोष मुक्त हो जाते हैं। इसके अलावा, सन्तानोत्ति के लिए भी यहां पूजा पाठ करवाया जाता है।
त्र्यंबकेश्वर धाम के पास रहने-खाने का इंतज़ाम
यहां तीर्थाटन के लिए आये लोगों के ठहरने की व्यवस्था भी कम अच्छी नहीं है। अन्य तीर्थस्थलों की तरह आसमान छूती महंगाई यहां कतई नही दिखाई देती। यहां बने भक्त निवासों में 175 रु में तीन बिस्तर वाला साफ सुथरा कमरा रहने को मिल जाता है। खाने पीने के लिए कैन्टीन भी यहां है। जहां पर बिना प्याज टमाटर वाला सादा खाना रात साढ़े नौ बजे से पहले खाने को मिल जाता है।
शिरडी से त्र्यंबकेश्वर की दूरी
शिरडी से त्र्यंबकेश्वर लगभग 114 किलोमीटर दूर है. यानी शिरडी से त्र्यंबकेश्वर की दूरी 3 घंटे की है. शिरडी में सांई बाबा का प्रसिद्ध मन्दिर है। त्र्यंबकेश्वर आने के बाद लोग अक्सर शिरडी वाले साईं बाबा के दर्शन करने भी जाते हैं। शिरडी में भी रहने की समूचित व्यवस्था है। यहां पचास रुपये के साधारण कमरों से लेकर एयर-कंडिशनर वाले कमरे रहने को मिल जाते हैं।
त्र्यंबकेश्वर कैसे पहुंचें
त्र्यंबकेश्वर जाने के लिए नासिक या मनमाड रेलवे स्टेशन सबसे नज़दीक हैं। मनमाड से लगभग 3 घंटे और नासिक से 1 घंटे में यहां पहुंचा जा सकता है। दोनो ही स्टेशनों से टैक्सी या ऑटो यहां पहुंचाने के लिए 24 घंटे तैयार रहते हैं।
पहाड़ी इलाकों की खूबसूरती को अगर एक अलग बनावट में देखना हो तो त्र्यंबकेश्वर एक मिसाल है। दूर-दूर तक फैले मैदानों के छोरों पर बनी इन छोटी छोटी चट्टानों पर अन्य पहाड़ी इलाकों की तरह घने जंगल नहीं हैं, बल्कि यहां के पहाड़ हरी घास की चादर ओढ़े हुए हैं. हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड या सिक्किम के नुकीली पहाड़ों से बिल्कुल अलहदा इन चपटे पहाड़ों की संरचना देखने लायक है।