लोकटक झील मणिपुर की अकेली ऐसी झील है जिसमें दुनिया का अनोखा तैरता हुआ नैशनल पार्क है। अपने तैरते हुए द्वीपों के लिए मशहूर लोकटक झील का सफ़र मणिपुर यात्रा के दौरान यादगार रहा। लोकटक लेक को तैरती हुई झील भी कहा जाता है।
यह मेरी मणिपुर यात्रा का दूसरा भाग है. मणिपुर यात्रा के पहले भाग में आपने इम्फाल के कांग्ला फ़ोर्ट के बारे में पढ़ा जहां न केवल मणिपुर की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है बल्कि मणिपुर का इतिहास भी जानने को मिलता है.
पहले दिन इस किले में घूमकर अगले दिन हम आगे बढ़ गए. मणिपुर के इम्फ़ाल से करीब 40 किलोमीटर का सफ़र तय करके हम मोईरांग (Moirang) पहुंचे. वहां से क़रीब पंद्रह मिनट बाद हम लोकटक झील के पास थे.
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तैरती हुई झील है लोकटक झील (Loktak Lake)
जहां इस वक़्त हम थे वह इलाका सेंड्रा व्यूपॉइंट नाम से मशहूर है. हमारे सामने लोकतक झील थी जिसके तट पर कई रंग-बिरंगी मोटरबोट खड़ी थी. तैरती हुई झील नाम से मशहूर इस झील में इन मोटरबोट को हरे और पीले चटख रंगों से सजाया गया था. आसमानी रंग की रमणीय झील पर ऐसी ही सजी-धजी मोटरबोट दूर से लोगों को झील में घुमाकर वापस ला रही थी. झील के तट पर बनाए गए लकड़ी के प्लैटफ़ॉर्म पर खड़े होकर इस दृश्य को देखना बेहद सुकून दे रहा था. आस-पास शोर का नामोनिशान नहीं था.
कुछ देर के लिए हम सेंड्रा आइलैंड के व्यूपॉइंट की तरफ़ बढ़ गए. एक टीले पर एक मचान सी बनी हुई थी, जहां से लोकतक लेक का शानदार नज़ारा दिखाई दे रहा था. यह झील क़रीब 300 वर्ग किलोमीटर में फैली है और मणिपुर की अकेली ताज़े पानी की झील है. झील में झाड़ियों के झुरमुट ने गोल चक्कर से बना दिए थे. और ऐसी कई हरी-हरी वृत्ताकार आकृतियां इस झील में बिखरी हुई थी. कहीं दूर एक मछुवारा मछलियों की तलाश में घास के बने एक छोटे से टीले के किनारे अपनी नाव टिकाकर इंतज़ार कर रहा था. झील को टीले पर चढ़कर इस तरह देखते रहना वाकई सुकून दे रहा था.
मोईरांग में है आज़ाद हिन्द फ़ौज का मुख्यालय
सेंड्रा से लौटकर क़रीब आधे घंटे में हम मोइरांग के अस्त-व्यस्त बाज़ार में थे. हम मैप की मदद से म्यूज़ियम की तरफ़ बढ़ गए. परिसर में प्रवेश करते ही सुभाष चंद्र बोस की एक ऊँची प्रतिमा सामने दिखाई दी. संग्रहालय में केवल दो शख़्स थे जो टिकिट काउंटर पर बैठे थे.
मोइरांग भारतीय आज़ाद हिंद फ़ौज (आईएनए) का मुख्यालय हुआ करता था. कर्नल शौक़त मलिक ने 14 अप्रैल 1944 को दूसरी बार यहीं तिरंगा फहराया था. इसमें माईरेम्बम कोईरेंग सिंग जैसे मणिपुरी लोगों की मुख्य भूमिका मानी जाती है. माईरेम्बम बाद में मणिपुर के पहले मुख्यमंत्री भी बने. पहली बार आईएनए के कमांडर इन चीफ़ सुभाष चंद्र बोष ने पोर्ट ब्लेयर में तिरंगा फहराया था. मोइरांग के इस संग्रहालय में द्वितीय विश्वयुद्ध में भारतीय हिंद फ़ौज से जुड़े अवशेष रखे गए थे. इस छोटे से अहाते में युद्ध में इस्तेमाल हुए हथियार भी थे. यहां हमें कुछ नक़्शे भी दिखाई दिए, जिनमें आज़ाद हिंद फ़ौज की यात्रा के विवरण थे. इसके अलावा मणिपुरी राजाओं और साहित्यकारों के चित्र भी इस संग्रहालय में संजोये गए थे.
पानी में तैरता हुआ नेशनल पार्क केबुल लामजाओ
आईएनए के संग्रहालय को देखने के बाद हम छह किलोमीटर का सफ़र तय करके केबुल लामजाओ नेशनल पार्क के पास पहुंचे. इसे दुनिया का अकेला और अनौखा तैरता हुआ नेशनल पार्क या फ़्लोटिंग नेशनल पार्क कहा जाता है. लोकतक झील पर बने इस सबसे बड़े तैरते द्वीप को अब नेशनल पार्क का दर्जा दिया जा चुका है.
इस फ़्लोटिंग नेशनल पार्क के आस-पास कई छोटे-छोटे तैरते हुए द्वीप हैं. इन्हीं में से एक करांग द्वीप पर जब हम पहुंचे तो सूरज डूबने की कगार पर था. डूबते सूरज ने अपनी आभा पूरी झील में बिखेर दी थी. दूर छोटी-छोटी पहाड़ियां नज़र आ रही थी और उनकी परछाइयों के बीच इस झील में हमारी नाव एकदम धीमी रफ़्तार से आगे बढ़ रही थी. नाविक ने बताया कि उसका नाम खज़राक्पा है.
झील में जगह-जगह पर पानी में तैरती हुई वनस्पतियों से बने छोटे-छोटे द्वीपों को अब हम नाव में बैठे-बैठे छू सकते थे. ऐसे ही एक तैरते द्वीप पर एक महिला पारम्परिक मणिपुरी हैट पहने मछलियों के जाल में फ़सने का इंतज़ार कर रही थी.
कैसे बनते हैं पानी में तैरते हुए द्वीप
पानी में तैरते हुए इन द्वीपों को विज्ञान की भाषा में बायोमास कहा जाता है और स्थानीय भाषा में फुमडी. लहरों में उठते तूफ़ान या किसी और प्राकृतिक वजह से मर चुकी वनस्पतियों और जैविक पदार्थों से बना यह बायोमास झील के किनारों से टूटकर पानी में बहने लगता है. इसमें उगी वनस्पतियों की जड़े गहरे पानी में ज़मीन तक नहीं पहुँच पाती. वो इसी बायोमास की तलहटी पर अपने लिए ऑक्सीजन तलाश लेती हैं. वनस्पतियों की जड़ें आपस में गुँथकर एक-दूसरे को सहारा देती हैं. वक़्त के साथ-साथ पानी में ये अपने लिए बड़ी और मज़बूत ज़मीन तैयार कर लेती हैं.
लोकतक झील में तैरती इन फुमडियों से यहां के मितेई जनजाति के हज़ारों लोगों की जीविका चलती है. मछुवारे इन तैरते द्वीपों को गोल आकार दे देते हैं. इनके बीच वो अपने लिए झोपड़ियाँ बनाते हैं. तैरते द्वीपों पर रहते हुए वो अपनी नावों में बैठे देर तक मछलियों का इंतज़ार करते हैं. उत्तर के लोग जिस तरह गंगा को पूजते हैं, ठीक उसी तरह पूर्वोत्तर की ये जनजाति इस झील की पूजा करती है. करांग द्वीप को देश का पहला कैशलेस द्वीप होने का दर्जा भी मिला है.
मिथकों का ख़ज़ाना मणिपुर का राजकीय पशु संगाई
लोकटक झील पर ये तैरते हुए द्वीप न केवल मछुवारों की ज़िंदगी से जुड़े हैं बल्कि यह उन विरली जगहों में से है जहां मणिपुर का राजकीय पशु संगाई (हिरन का एक प्रकार) मुख्य रूप से पाया जाता है. संगाई का मणिपुर में इतना महत्व है कि यहां बाक़ायदा इसके नाम पर संगाई महोत्सव मनाया जाता है.
इस खास तरह के हिरन की सामने की दो सींगें उसकी आंखों के ऊपर बनी भौहों से निकलती है इसलिए उसे ‘ब्रो-एंटलर’ डीयर भी कहा जाता है. केवल मणिपुर में पाए जाने वाले संगाई का यहां की लोककथाओं में बहुत अहम दर्जा है. माना जाता है कि संगाई प्रकृति और इंसानों के बीच की कड़ी की तरह काम करता है और संगाई को नुकसान पहुँचाना प्रकृति को नुकसान पहुँचाने की तरह ही है.
इन अनौखे द्वीपों में क़रीब चार हज़ार मछुवारों और कुछ सौ बचे रह गए ‘डांसिंग डियर’ कहे जाने वाले संगाई की जीवनयात्रा की वजह बनती इस झील में कुछ मोटरबोट भी चल रही थी. क़रीब पैतालीस मिनट खज़राक्पा के साथ नाव की सवारी करके हम तट पर लौट आए.