पूर्वोत्तर के शांत पहाड़ों की ख़ामोशी को महसूस करना हो तो बोमडिला एक बेहतरीन ठिकाना है। सूर्योदय के प्रदेश कहे जाने वाले अरुणांचल प्रदेश के वेस्ट कामेंग जिले का मुख्यालय है बोमडिला। ला दरअसल स्थानीय भाषा में दर्रे को कहा जाता है। बोमडिला दर्रा भारत को डिब्बत के ल्हासा से जोड़ता है। यहां की चोटियों से भूटान को जाती हुई सड़कें भी दिखाई देती हैं। चीन और भारत के बीच यह इलाक़ा लम्बे समय तक विवाद का विषय भी बना रहा है।
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बोमडिला पहुँचने का तरीक़ा
असम की कल्चरल केपीटल कहे जाने वाले तेजपुर से बोमडिला के लिए शेयरिंग टैक्सी मिल जाती है. क़रीब 150 किलोमीटर की इस यात्रा के लिए आमतौर पर टाटा सूमो मिलते हैं, जिनकी बुकिंग तेजपुर में जगह-जगह बने काउंटर्स पर की जा सकती है. पांच घंटे के इस खूबसूरत पहाड़ी सफ़र के बाद आप पहुंचते हैं दूर बनी बुद्ध की धरती पर.
बोमडिला में हों तिब्बत की संस्कृति से रूबरू
समुद्रतल से 2217 मीटर की ऊंचाई पर बसा बोमडिला न केवल अपने क़ुदरती सौंदर्य के लिए पर्यटकों को लुभाता है बल्कि चीन की सीमा से अपनी नज़दीकी की वजह से भी यह पूर्वोत्तर के महत्वपूर्ण इलाकों में शुमार हो जाता है। सुदूर पर्वतों की चोटियों के बीच घिरा गौतम बुद्ध के अनुयायियों का ये छोटा शहर उनके ही जीवन मूल्यों की तरह शांत भी है और अलग-अलग जनजातियों से जुड़े यहां के लोगों की तर्बियत में भी वो शांति सहज ही दिख जाती है।
मोंपा, मिजी, आका, बेगुन या शेरडुकपेन जनजातियों की रिहाइश वाले बोमडिला में तिब्बती संस्कृति का प्रभाव साफ़ नज़र आता है। वहीं यहां के बाज़ार में टहलते नौजवान लड़के-लड़कियों को देखकर साफ़ पता चलता है कि फ़ैशन के मामले में वो देश के बड़े महानगरों से एकदम पीछे नहीं हैं। सेव के बाग़ानों और ऑर्किड की महक के साथ लोसर जैसे उत्सवों की धूम बोमडिला आने के अहसास को कुछ ख़ास बना देती है।
बोमडिला का इतिहास
बोमडिला पहुंचकर अरुणांचल प्रदेश की सबसे ऊंची चोटियां केंगटो और गोराइचेन आपको एकदम सामने नज़र आती हैं, जैसे इस पर्वतीय प्रदेश में आने पर अपनी उजली मुस्कुराहट के साथ वो आपका स्वागत कर रही हों। कहा जाता है कि मध्यकाल में बोमडिला तिब्बत के साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था। कुछ साक्ष्य इस बात के भी हैं कि यहां पर भूटान की जनजातियों का भी शाषन रहा है। 1962 के भारत-चीन युद्ध में चीन की सेना ने बोमडिला पर क़ब्ज़ा कर लिया था लेकिन बाद में उन्हें वापस लौटना पड़ा।
बोमडिला में घूमने की जगहें
बोमडिला खूबसूरत हिलस्टेशन है जहां घूमने के लिए तमाम जगहें हैं। इस छोटे से पहाड़ी शहर से हिमालय की ऊँची चोटियाँ नज़र आती हैं जो आपको कहीं बियाबान में चले आने का अहसास होता है लेकिन यहाँ की ढलान भरी सड़कों पर लगे बाज़ार की चहल-पहल आपको आधुनिकता से भी जोड़े रखती है। आप यहाँ आएँ तो नीचे दी गई जगहों पर घूमने का लुत्फ़ ले सकते हैं।
1) तीन गोंपा जो हैं आस्था के प्रतीक
बोमडिला बुद्ध के अनुयाइयों की आस्था का एक अहम केंद्र है। यहां मौजूद 3 गोम्पा बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों के लिए तो ख़ास अहमियत रखते ही हैं, देशभर से आने वाले पर्यटकों को भी ये अपनी ख़ास शिल्पकला की वजह से अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
ऊपरी गोम्पा
बोमडिला के मुख्य बाज़ार से क़रीब 5 किलोमीटर की दूरी पर बना ऊपरी गोंपा 15 वीं शताब्दी में बनी दक्षिणी तिब्बत की त्सोना गोंट्से मोनेस्ट्री की नकल है। इस गोंपा के निर्माण की शुरुआत 12वें रिंपोचे के दौर में 1965-66 में हुई। यहां बुद्ध के मंदिर के साथ-साथ एक बड़ा प्रार्थना कक्ष और बौद्ध सन्यासियों के रहने के लिए कमरे भी बने भी हैं। इस गोंपा की ख़ास बात ये है कि यहां से बोमडिला का सुंदर नज़ारा भी देखने को मिलता है।
मध्य गोम्पा
खड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद आप बोमडिला के सबसे पुराने गोम्पा यानी मध्य गोम्पा में पहुँचते हैं। मुख्य बाज़ार से क़रीब 2 किलोमीटर चलने के बाद जब आप पहाड़ की चोटी पर बने इस गोम्पा के अहाते में पहुँचते हैं तो यहां का नज़ारा देखकर सारी थकान मिट जाती है। इस गोम्पा में गौतम बुद्ध के अलग-अलग अवतारों की तस्वीरें भी लगी हैं। मान्यता है कि यहां आकर पूजा अर्चना करने से भगवान बुद्ध सारी बीमारियां हर लेते हैं।
निचला गोम्पा
इसे थूबचोंग गेटसेल लिंग मोनेस्ट्री भी कहा जाता है। बाज़ार के बीचों-बीच बने इस गोम्पा में भी एक बड़ा प्रार्थना कक्ष है। बोमडिला के टेक्सी स्टेंड के दूसरी ओर मौजूद इस गोम्पा के आहाते में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।
2) टिपी ऑर्किड रिसर्च सेंटर
ऑर्किड के फूलों की रंगत देखनी हो तो टिपी ऑर्किड रिसर्च सेंटर ज़रूर जाना चाहिए। 10 हेक्टेयर में फैले इस सेंटर में ऑर्किड की तमाम वेराइटी मौजूद हैं। क़रीब 1000 प्रजातियों के फूलों वाला ऑर्किड ग्लास हाउस इस सेंटर का एक अहम हिस्सा है। इस ग्लास हाउस के बीच में एक झील बनाई गई है जिसपर एक फ़व्वारा भी है। अलग-अलग तरह के क़रीब 10 हज़ार ऑर्किड के पौधे इस ग्लास हाउस में अपनी छटा बिखेरते हैं। इस सेंटर में प्रयोगशाला, म्यूज़ियम और बग़ीचे भी बनाए गए हैं। ख़ुशबुओं और फूलों से प्यार करने वाले पर्यटकों का तो इस सेंटर में एक बार ज़रूर जाना बनता है।
3) ईगलनेस्ट वाइल्डलाइफ़ सेंचुरी
बोमडिला से क़रीब 50 किलोमीटर की दूर घने जंगल के बीच है ईगलनेस्ट वाइल्डलाइफ़ सेंचुरी। 2018 वर्ग किलोमीटर में फैली ये सेंचुरी कई दुर्लभ पक्षियों का घर है।इस सेंचुरी में उभयचर प्राणियों की 34, सांपों की 24, पक्षियों की 454 और तितलियों की 165 प्रजातियां पाई जाती हैं।
हाथी, लंगूर, बंगाल टाइगर, रेड पांडा, भालू जैसे वन्य जीव भी इस सेंचुरी में देखे जा सकते हैं।भारतीय सेना की रेड ईगल डिविज़न सन 1950 में यहां हुआ करती थी जिसके नाम पर इस सेंचुरी का नाम ईगलनेस्ट पड़ा। जैव-विविधता के लिहाज़ से ये देश के सबसे ज़्यादा संरक्षित अभयारण्यों में शुमार है। बर्ड वाचिंग और फ़ोटोग्राफ़ी के शौकीन लोगों के लिए ये सेंचुरी किसी ख़ज़ाने से कम नहीं है।
4) रूपा वैली और चिलीपम
बोमडिला आते हुए रास्ते में एक सड़क टेंगा नदी के किनारे बसी रूपा वैली के लिए कट जाती है। भारतीय सेना की छावनियों के बीच से गुज़रते हुए जब आप इस घाटी में पहुँचते हैं तो अद्भुत शांति का अहसास होता है। पहाड़ों के बीच बसे इस छोटे से क़स्बे को आप पैदल ही नाप सकते हैं।
यहां क़रीब 100 साल पुराना एक गोम्पा भी है जो तिब्बत की पारम्परिक बौद्ध शिल्पकला का अद्भुत नमूना है। लकड़ी पर की गई जंतुओं और पौधों के चित्रों की नक्काशी के साथ ही रंगों का अनूठा समन्वय भी इस गोम्पा के शिल्प को ख़ास बना देता है। यहां से एक सड़क पहाड़ की चोटी पर बने चिलीपम गोम्पा की तरफ़ ले जाती है। चिलीपम से रूपा वैली का ख़ूबसूरत नज़ारा भी देखने को मिलता है।
5) दीरांग वैली
बोमडिला से तवांग जाने के रास्ते में क़रीब 43 किलोमीटर दूर है एक ख़ूबसूरत वैली-दीरांग।कामेंग नदी के किनारे पहाड़ों की तलहटी पर बसा ये क़स्बा बेहद ख़ूबसूरत तो है ही साथ ही समेटे है सालों पुरानी स्थापत्य कला की विरासत भी। यहां दीरांग डजोंग नाम का इलाका 150 साल पुराना है। डजोंग के आस-पास बने पत्थर के कुछ घर क़रीब 500 साल पुराने हैं। यहां से क़रीब 1 किलोमीटर आगे गरम पानी का एक सोता भी है जिसे स्थानीय लोग बहुत पवित्र मानते हैं। इस सोते में आप चाहें तो डुबकी भी लगा सकते हैं।
दीरांग के पास देश का अनूठा राष्ट्रीय याक अनुसंधान केंद्र भी है। 1989 में शुरू हुए इस रिसर्च सेंटर में याक से जुड़े विभिन्न पहलुओं मसलन उत्पादन, ब्रीडिंग, नस्लों में सुधार आदि पर अनुसंधान किया जाता है। यहां से 31 किलोमीटर दूर एक याक फ़ार्म भी बनाया गया है। रिसर्च सेंटर देखने के लिए आपको पहले से अनुमति लेनी ज़रूरी है।
इनरलाइन परमिट बनाना है ज़रूरी
अरुणांचल प्रदेश की सीमा में प्रवेश करने के लिए इनरलाइन परमिट की ज़रूरत पड़ती है। ये एक तरह का सरकारी आज्ञा पत्र है जिसके बिना आपको इस प्रदेश की सीमा में जाने की अनुमति नहीं है। इनरलाइन परमिट दिल्ली, गुवाहाटी, शिलोंग, तेज़पुर में बने अरुणांचल भवन से बनवाया जा सकता है। परमिट बनवाने के लिए ऑनलाइन सुविधा भी मौजूद है।
परमिट के लिए आपको वोटर आइडी कार्ड, पासपोर्ट, आधार कार्ड या ड्राइविंग लाइसेंस जैसे किसी परिचय पत्र की ज़रूरत होती है। रास्ते में बने चेकपोईंट्स पर इस परमिट की जांच के बाद ही आप आगे जा सकते हैं। अगर आप बोमडिला जाना चाहते हैं तो पहले ही परमिट बनाने की कार्रवाई पूरी कर लें तो बेहतर रहेगा।
बोमडिला से क्या ख़रीदें
बोमडिला तिब्बतन कारपेट के लिए जाना जाता है। इसके अलावा पारम्परिक मास्क, पेंटिंग्स और थांका भी यहां से ख़रीदे जा सकते हैं। इनपर किया जाने वाला बारीक काम और अलग-अलग थीम वाले रंग-बिरंगे डिज़ाइन इनकी ख़ासियत हैं। बोमडिला के क्राफ़्ट सेंटर और एथनोग्राफ़िक म्यूज़ियम से भी ये चीज़ें ख़रीदी का सकती हैं। खासकर ड्रैगन के चित्रों वाले कारपेट और पेंटिंग यहां पर्यटकों के बीच काफ़ी मशहूर हैं। ऊनी मफ़लर और टोपियाँ भी ख़रीदने के लिए अच्छा विकल्प हो सकती हैं। लोग अक्सर तोहफ़े और यादगारी के लिए बोमडिला से ये सामान लेना नहीं भूलते।
बोमडिला कैसे पहुंचें
बोमडिला पहुंचने के लिए गुवाहाटी तक प्लेन या ट्रेन से पहुँचा जा सकता है। दिल्ली, मुंबई या कोलकाता जैसे बड़े शहरों से गुवाहाटी के लिए फ़्लाइट और ट्रेन दोनों उपलब्ध हैं। गुवाहाटी से टेक्सी हायर की जा सकती है। वैसे यहां से सीधे बोमडिला के लिए बस भी चलती है।
दूसरा तरीक़ा है कि आप सीधे तेज़पुर आ जाएं। तेज़पुर के लिए कोलकाता से फ़्लाइट ली जा सकती है। तेज़पुर से बोमडिला के लिए शेयर्ड टेक्सी भी मिलती है लेकिन आमतौर पर इसके लिए आपको पहले से काउंटर्स पर बुकिंग करनी होती है। तेज़पुर बाज़ार में बने काउंटर पर जाकर आप अपनी सीट एडवांस में बुक करा सकते हैं। तेज़पुर से बोमडिला की दूरी करीब 153 किलोमीटर है और पहुँचने में 5 से 6 घंटे का समय लग जाता है। रास्ते में ठहरकर आस-पास के नज़ारों का लुत्फ़ लेना हो तो प्राइवेट गाड़ी हायर करना बेहतर रहता है।
बोमडिला में क्या खाएं
बोमडिला तिब्बत की संस्कृति से प्रभावित है। इसलिए वहां का खान-पान भी उनके खान-पान से मेल खाता है। बोमडिला में रोड के किनारे ढाबों पर आपको गरम-गरम थुक्पा का स्वाद ज़रूर लेना चाहिए। थुक्पा एक तिब्बती डिश है जो सूप में नूडल्स डालकर बनाई जाती है। इसके अलावा यहां के मोमोज़ भी आपको ज़रूर ट्राई करने चाहिए।
थुक्पा और मोमोज़ जैसी लोकप्रिय खाने की चीज़ों के अलावा स्थानीय मोंपा समुदाय का अपना पारम्परिक खान-पान भी है। जिसे मौका मिलने पर आपको ज़रूर आज़माना चाहिए।
बोमडिला कब जाएं
बोमडिला में अच्छी ख़ासी ठंड पड़ती है। सर्दियों में तापमान 5 डिग्री से नीचे भी चला जाता है। इसलिए अगर सर्दियों से बहुत ज़्यादा प्यार न हो तो ये वक़्त वहां जाने के लिए सही नहीं है। गरमियों का मौसम यानी अप्रैल से अक्टूबर का समय यहां आने के लिए एकदम मुफ़ीद है।वैसे भी दुनिया में बहुत कम चीज़ें ही हल्की सर्द हवाओं के बीच पहाड़ की गुनगुनी धूप से बेहतर होती हैं।
उमेश पंत यात्राकार के संस्थापक-सम्पादक हैं। यात्रा वृत्तांत 'इनरलाइन पास' और 'दूर दुर्गम दुरुस्त' के लेखक हैं। रेडियो के लिए कई कहानियां लिख चुके हैं। पत्रकार भी रहे हैं। और घुमक्कड़ी उनकी रगों में बसती है।