Beautiful View Of Himalaya From Bageshwar Uttarakhand

बागेश्वर से सोमेश्वर होते हुए रानीखेत का सफर – उत्तराखंड यात्रा 5

पाँचवा दिन : गंगोलीहाट- बागेश्वर – सोमेश्वर – रानीखेत

 

सुबह-सुबह गंगोलीहाट (Gangolihat) से निकल पड़े. आज का पड़ाव अभी तय नहीं हुआ था. मगर इस बार दिल्ली की वापसी दूसरे रास्ते से करने का मन था. इसलिए बागेश्वर (Bageshwar) से रानीखेत (Ranikhet) होते हुए नैनीताल के रास्ते हल्दवानी (Haldwani) पहुंचने का मन बन गया. यह रास्ता कुछ लम्बा ज़रूर था लेकिन हमारी इस यात्रा में उत्तराखंड के कुमाऊं के इलाके को अच्छे से देख लेना हमारी वरीयता में था.

तो हम सुबह-सुबह राईंआगर होते हुए आगे बढ़ गए. एक बार फिर राईंआगर से बेरीनाग जाने वाले रास्ते पर हमने हिमालय को अच्छे से निहारा. हिमालय की इतनी विस्तृत ऋंखला यहां से दिखाई देती है कि बिना थमे और कुछ समय उसे निहारे हम आगे कैसे बढ़ सकते थे. बेरीनाग में हमने नाश्ता किया और फिर उड्यारी बैंड होते हुए हम आगे बढ़ गए.


बागेश्वर के पास से एक बार फिर हिमालय के नज़ारे

 

गंगोलीहाट से बागेश्वर क़रीब तीन घंटे का रास्ता है. पर हम रुक-रुक कर चल रहे थे. आस-पास के इलाके को जी भर निहारते हुए. सही मौक़े पर चाय पकोड़े खाते हुए. तो हमें क़रीब पांच घंटे तो लगने ही थे.

आसमान एकदम खुला हुआ था. हिमालय के जितने अच्छे नज़ारे हमें मिल सकते थे मिल रहे थे. ऐसे में सफ़र एकदम सुहाना बना हुआ था. बाइक से यात्रा का फ़ायदा यह है कि आप एक-एक जगह, एक-एक मोड़ को महसूस करते हुए चलते हैं. हवा की धड़कनों की रफ़्तार आपको अपने सीने पर महसूस होती है. ऐसे में हल्की-हल्की धूप, और हल्का सा ठंडापन लिए हवा मिलकर एक ऐसा ज़ायक़ा बना देते हैं जिसका स्वाद सीधे रूह को मिलता है.

हिमालय की ऋंखला को निहारने हम एक बार फिर रुके. एक बार फिर भाव विभोर होकर उसे देखते रहे. और फिर आगे बढ़ गए.

 

Beautiful view of Himalaya from Bageshwar Uttarakhand
Beautiful view of Himalaya from Bageshwar

 

ख़ैर अब हम जहां से गुज़र रहे थे वहां से सड़क ढलान भरी थी. क़रीब 450 मीटर की ऊंचाई की तरफ़ ले जाते इस ढलान की मंज़िल थी बागेश्वर की घाटी जहां गोमती और सरयू नदी का संगम है. एक मोड़ के बाद बागेश्वर की घाटी हमें नज़र आने लगी. एक मैदानी विस्तार में बिखरे हुए एक मंज़िला घर ऐसे लग रहे थे जैसे किसी मैदान में डब्बे रख दिए गए हैं. जैसे-जैसे हम नीचे उतरते जाते ये डब्बे घरों में तब्दील होते जाते. और साथ ही गर्मी भी बढ़ती जाती.

 

Bageshwar valley of Uttarakhand
Top angle view of Bageshwar Uttarakhand

 

2 बजे के क़रीब हम बागेश्वर में थे. पुल पार एक संकरी सड़क के दोनों ओर मकान और दुकानें थी. ऊपर से दिख रहे विस्तार का भ्रम जैसे यहां आकर टूट गया हो. एक शहर बनने की फ़िराक़ में एक अविकसित सा क़स्बा था ये. पहाड़ की नदी घाटियाँ मुझे अक्सर निराश सा करती हैं. हमने तय किया कि हम यहां से आगे बढ़ जाएंगे. बागेश्वर में बाइक की सर्विसिंग की ज़रूरत महसूस हुई. इस बीच हमने खाना खा लिया. 3 बजे के क़रीब हमने इस शहर को अलविदा कहा और एक बार फिर चढ़ाई चढ़ने लगे.

 


सोमेश्वर की घाटी (Someshwar Valley) का सुहाना सफर 

 

क़रीब सवा घंटे के सफ़र के बाद हम एक पहाड़ी विस्तार में थे. ये सोमेश्वर की खूबसूरत घाटी थी. सोमेश्वर कोसी और साई नादियों के संगम पर स्थित एक ख़ूबसूरत मैदानी घाटी है. यहां 12वीं शताब्दी का एक मंदिर भी है जिसे सोमनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है. दूर-दूर तक खेतों का विस्तार और नेपथ्य में पहाड़. औरतें और आदमी खेतों में हल चलाते दिखाई दे रहे थे. यह नज़ारा बहुत सुंदर था. यहां एक चाय का ब्रेक तो बनता था.

 

Way to Someshwar valley of Uttarakhand
Someshwar valley of Uttarakhand

 

कुछ देर एक अच्छी सी जगह पर बने ढाबे में रुककर हम आगे बढ़ गए.

 


शाम घिरते पहुंचे रानीखेत

 

चलते-चलते शाम घिरने से पहले हम रानीखेत पहुंच गए थे. बागेश्वर समुद्र तल से 450 मीटर की ऊंचाई पर है. वहां से निकलकर अब हम रानीखेत यानी क़रीब 1860 मीटर की ऊंचाई तक आ गए थे. इस ऊंचाई पर तापमान तो बदलना ही थाऔर फिर अब शाम भी हो गई थी. रानीखेत में सुबह और शाम अक्सर अच्छी ठंड रहती ही है. रानीखेत में गर्मियों में भी अच्छा मौसम रहता है इसलिए ब्रिटिश अधिकारियों ने इसे अपनी ग्रीष्मक़ालीन राजधानी बनाया था.

रात होने से पहले रानीखेत में रहने के लिए हमने एक होटल तलाशा और कुछ देर रानीखेत की बाज़ार में टहलते रहे. रात को खाना खाकर हम लौट आए. सफ़र की थकान तो थी ही. ऐसे में नींद आनी ही थी.

यह हमारी उत्तराखंड बाइक यात्रा की आखरी रात थी. अगले दिन पहाड़ों के हसीन मौसम को अलविदा कहकर हम दिल्ली लौट आए.


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उमेश पंत

उमेश पंत यात्राकार के संस्थापक-सम्पादक हैं। यात्रा वृत्तांत 'इनरलाइन पास' और 'दूर दुर्गम दुरुस्त' के लेखक हैं। रेडियो के लिए कई कहानियां लिख चुके हैं। पत्रकार भी रहे हैं। और घुमक्कड़ी उनकी रगों में बसती है।

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