सुशील बहुगुणा वरिष्ठ पत्रकार हैं और एनडी टीवी से जुड़े हैं. खासतौर पर पर्यावरण से जुड़े विषयों पर उन्होंने कई उल्लेखनीय रिपोर्ट तैयार की हैं, जिनमें से कुछ को पुरस्कारों से भी नवाज़ा गया है. तिब्बत और भारत के व्यापारिक रिश्तों और उच्च हिमालय के लोगों के रहन-सहन पर बनी इस फिल्म को सुशील बहुगुणा की टिप्पणी के साथ यहां पेश किया जा रहा है.
हिमालय एक पहेली, एक तिलिस्म सा बना रहता है आपके लिए अगर आप उसमें दिलचस्पी लेने लगें तो. जितना जानें उससे ज़्यादा जानने की उत्सुकता पैदा हो जाती है. ऐसी ही इच्छा मेरी रही है उच्च हिमालय के लोगों के रहन सहन को जानने समझने की. ख़ासतौर पर पुराने दौर में वो कैसे रहते रहे होंगे उस भीषण ठंड के बीच उस ऊंचाई पर. उनकी पारिवारिक-सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था कैसी रही होगी. उच्च हिमालय के उस समाज का हिमालय पार तिब्बत के साथ व्यापार कैसे होता रहा होगा ये जानने की ललक हमेशा रही.
हिमालय को अपने पैरों से नापने वाले पंडित नैन सिंह रावत पर प्रो. शेखर पाठक के लिखे शोध ग्रंथ ‘एशिया की पीठ पर’ को पढ़ने से एक तस्वीर दिमाग में बनी. वरिष्ठ पत्रकार हरीश चंदोला के साथ जोशीमठ में एक लंबी बातचीत के दौरान उस दौर की कई बातों से भी समझ बनी. लेकिन आज यूट्यूब पर ये वीडियो हाथ लगा तो बड़ी खुशी हुई. वो दौर थोड़ा बहुत अपनी आंखों से देख लिया. जो भी लोग उच्च हिमालय के समाज से ज़रा भी परिचित हों या जानने के इच्छुक हों उन्हें ये डॉक्यूमेंटरी ज़रूर देखनी चाहिए.
इस डॉक्यूमेंटरी को आर्मीनियाई मूल के मशहूर फिल्म मेकर J. Michael Hagopian ने 1957 में तैयार किया था. इसके लिए वो ख़ुद इस कठिन इलाके में कितना पैदल चले होंगे, अंदाज़ा लगाया जा सकता है. इंटरनेट पर Hagopian के काम के बारे में आप और भी जान सकते हैं. उन्होंने कई शानदार डॉक्यूमेंटरी अलग अलग विषयों पर बनाई हैं. लेकिन पहले आप इसे देखिए. उस दौर की सादगी, उस दौर का समाज. बीता कल देखकर आज और बेहतर समझ आता है.