view of Himalaya peaks from Ramgarh Uttarakhand

रामगढ़ से हिमालय के नज़ारे और अल्मोड़ा की रात – उत्तराखंड यात्रा 2

रामगढ़ (Ramgarh uttarakhand tourism) का ये सफ़र उत्तराखंड बाइक यात्रा का हिस्सा है। मेरे दोस्त दानिश के साथ हुई यह यात्रा दिल्ली से शुरू और फिर हमने कई दिनों तक उत्तराखंड के कई हिस्सों में सफ़र किया। यात्रा का पहला हिस्सा आप यहाँ पढ़ चुके हैं। यह रहा दूसरा हिस्सा।

 

नौकुचियाताल से अल्मोड़ा का सफर (उत्तराखंड यात्रा 2)

नौकुचियाताल में सूर्योदय के नज़ारे

(Sun rise in Ramgarh)

पहले दिन के सफर की थकान रात को एक अच्छी नीद में तब्दील हुई तो सुबह-सुबह आंख खुल गई। करीब साढ़े छह बजा था। हम पहले ही तय कर चुके थे कि सूरज के जागते ही हम उससे मिल आयेंगे। बस ज़रुरत भर पानी की छपकियां मुंह में देकर हमने जूते कसे, जैकेट लादे और कैमरा उठाकर चल पड़े।

नौकुचियाताल की पहाड़ी वादी की इस ताज़ी सुबह में बाइक पर बैठे पहाड़ी पर चढ़ते उस कच्चे रास्ते पर हम बढ़े जा रहे थे। एक मोड़ पर जाकर हमने फैसला किया कि अब और ऊपर हम पैदल जाएंगे।

 

उत्तराखंड यात्रा नौकुचियाताल
नौकुचियाताल नैनीताल

कुछ ही देर में हम एक ऐसी पगड़ंडी पर थे जिसके दूसरे छोर पर सूरज की चौंधियाती रोशनी हम पर बिखर जाने को बेताब थी। हम कुछ मिनट देरी से थे। सूरज अपनी लाल केंचुली उतारकर पहाड़ों के पीछे कहीं फेंक चुका था। उस रास्ते पर हमने कुछ तस्वीरें उतारी और फिर हम पहाड़ी के और ऊपरी सिरे की तरफ बढ़ गये।

पहाड़ी के उस ऊपरी छोर से नौकुचियाताल और उसके आसपास का पूरा इलाका अपने पूरे विस्तार में दिखाई दे रहा था। जिस जगह पर हम खड़े थे वो समुद्रतल से करीब 1300 मीटर ऊपर रही होगी।

 

Beautiful Sunrise from Naukuchiatal
Sunrise from Naukuchiatal

हमारे दांई तरफ किसी कुहासे में खोये पहाड़ की कई परतें थी जिनके बीच में कंकरीट के जंगलों का विशाल हुजूम दिखाई दे रहा था। हमने अनुमान लगाया कि वो इलाका हल्द्वानी और काठगोदाम का इलाका रहा होगा। पास ही के जंगलों से तरह तरह के पंछियों की अजनबी आवाज़ें हमारे कानों तक पहुंच रही थी। कुछ देर इस पहाड़ी टीले पर फुरसत के एकदम ताज़ें पल समेटकर हम काॅटेज की तरफ लौट आये।

वापस लौटे तो काॅटेज के केयरटेकर जगदीश और मोहन उठ चुके थे। कुछ ही देर में आलू के पराठे, दही और आचार के साथ जगदीश और मोहन की बातें हमारे ज़ायके को बढ़ा रही थी। इस काॅटेज के ठीक ऊपर बनी एक बड़ी सी बिल्डंग का जि़क्र हुआ तो उन्होंने बताया कि ये किसी दिल्ली वाले की है।


उत्तराखंड के मेरे व्लॉग यहाँ देखें

YouTube player

 

बात निकली तो मालूम हुआ कि नौकुचियाताल की ज़मीन बहुत तेजी से बिक रही है। मैदानी इलाकों के लोग स्थानीय लोगों की ज़मीन को खरीदकर अपने फार्महाउस या टूरिस्ट गेस्टहाउस बना रहे हैं और जिनसे ज़मीनें खरीदी जा रही है ज्यादातर वही लोग इन गेस्ट हाउसों में केयरटेकर बनकर काम कर रहे हैं। अपनी ही ज़मीन पर दूसरे की नौकरी करने के इस अनुभव को कैसे देखा जाय ये समझना मुश्किल है। सम्मान और ज़रुरतों की लड़ाई में सम्मान को अक्सर हारते ही देखा गया है।

आज का दिन सफर के लिहाज़ से ज्यादा आरामदेह रहना था। बीते दिन 300 किलोमीटर से ज्यादा लम्बे सफर के बाद आज का अगला पड़ाव अल्मोड़ा में होना था। नौकुचियाताल से अल्मोड़ा की दूरी महज 69 किलोमीटर थी। तो हमने फैसला किया कि हम रामगढ़ होते हुए अल्मोड़ा की तरफ जाएंगे और रास्ते में जहां मन करेगा वहां पसर जाएंगे। धूप से बातें करेंगे और हवाओं के किस्से सुनेंगे। रामगढ़ के लिये तकरीबन 39 किलोमीटर के रास्ते पर हम निकल पड़े।

 


रामगढ़ के पास से हिमालय के नज़ारे

(Himalayan view : Ramgarh uttarakhand tourism)

 

भीमताल तक ढ़लान पर उतरने के बाद भवाली होते हुए हम एक बार फिर चढ़ाई चढ़ने लगे। रामगढ़ के रास्ते में गागर नाम की उस जगह पर एक तीखे मोड़ पर आकर हम ठिठके। बाइक रोकी गई। उतरा गया। हमारे ठीक सामने बर्फ से ढ़के पहाड़ों की एक पूरी श्रृंखला थी। ये इस यात्रा में हिमालय से हमारी पहली मुलाकात थी।

 

View of Himalayan Peaks from Ramgarh Uttarakhand
Himalayan Peaks from Ramgarh Uttarakhand

कांच के गिलास में गर्मागर्म चाय पीते हुए हम अपने ठीक सामने फैली उस सफेद चादर को निहार रहे थे। गागर की समुद्रतल से ऊंचाई तकरीबन 2100 मीटर है। वहां से हिमालय की श्रृंखलाओं नंदादेवी, त्रिशूल, पंचाचूली, पिंडारी ग्लेशियर, नंदाघुघटी, नंदाकोट और कामेत की खूबसूरत झलक मिल जाती है।

गागर में पहुंचकर लगा कि उत्तराखंड के खासकर कुमांऊ के इलाके को पर्यटन के लिहाज से कितना नज़रअंदाज़ किया जाता रहा है। उत्तराखंड सरकार की पर्यटन से जुड़ी योजनाओं की नज़र इतनी खूबसूरत जगहों पर आखिर क्यों नहीं पहुंच पाती ये समझ से परे है। खैर अभी शिकायतों और शिकवों का माहौल बिल्कुल नहीं था। विदेश से आये स्कूली बच्चों का एक पूरा हुजूम अभी अभी वहां से गुजरा था और कुछ एक प्रवासी उत्तराखंडी अपने परिवार के साथ कुछ देर के लिये यहां ठहरे हुए थे। करीब एक घंटा इस खूबसूरत जगह पर बिता लेने के बाद हम रामगढ़ (Ramgarh) की तरफ बढ़ गये।

दानिश का मन था कि हम रामगढ़ (Ramgarh) में नीमराना के काॅटेज (Neemrana Resort) भी देख आयें। हम लोग लगातार पहाड़ी ढ़लान पर उतर रहे थे। नीमराना में लेखकों और कलाकारों वगैरह के लिये खास कमरे बनाये गये हैं। उनका बाहर से ही जायज़ा लेकर हम खाने की जगहें तलाशने लगे।

पास ही में रुके तो एक 60-65 साल के आदमी ने पास आकर हमारा परिचय जानना चाहा। वो इस बात से कुछ हैरान और शायद खुश भी हुआ कि हम इतनी दूर दिल्ली से बाइक पर सवार होकर आये हैं। खैर उस अजनबी को अपनी तस्वीरों में कैद कर अल्मोड़ा की तरफ जा रही उस सड़क पर आगे बढ़ गये।

काफी दूर तक हमें खाने का कोई ठिकाना ही नज़र आया। प्यूरा नाम की एक जगह पर आखिरकार एक ढ़ाबे में हमें मैगी, आमलेट और चाय हासिल हुई। इस बीच फोन की बैटरी जा चुकी थी। कुछ देर उसे चार्ज पर लगाया। लौटते हुए फोन उसी ढ़ाबे में रह गया। याद आने पर जब मैं वापस ढ़ाबे पर लौटा तो उस आदमी ने फोन लाकर देते हुए कहा- फोन और माचिस दोनों के साथ ऐसा होता है कि जहां रखते हैं, वहां भूल ही जाते हैं। लाइटर के दौर में माचिस के बाबत की गई ये छोटी सी टिप्पणी कई कारणों से याद रह गई।

प्यूरा से हमें लगातार नीचे उतरना था और अब सड़क कुछ खराब हो गई थी। अल्मोड़ा की ओर जाने वाली मेन रोड तक उस खराब सड़क पर दानिश को बाइक चलानी थी। खराब पहाड़ी सड़क पर बाइक चलाने की प्रेक्टिस करने का ये सुनहरा मौका था। आगे ऐसे कई मौके जो मिलने थे।

 


अल्मोड़ा हिल स्टेशन की रात

 

अल्मोड़ा (Almora) पहुंचते-पहुंचते अंधेरा घिरने लगा था। अल्मोड़ा में रुकने का ठिकाना तय किया जा चुका था। सात बजे के करीब हम रानीधारा के उस ठिकाने के पास थे जहां आज रात हमें ठहरना था। वहां से अल्मोड़ा का बहुत खूबसूरत नज़ारा दिखाई दे रहा था। काले रंग के हो चुके पहाड़ों के बीच जगमगाती हज़ारों बत्तियां ऐसी लग रही थी जैसे सर्दियों के मज़े लेने के लिये तारे भी पहाड़ों पर आकर बस गये हों। रात को खाने में मडुए की ओर रोटी और घी भी शामिल था। घी में चुपड़ी मडुए की रोटी भी उन स्वादों में से है जो हर पहाड़ी के नाॅस्टेल्जिया का हिस्सा है।

घोड़े की पीठ जैसे आकार पर बसे अल्मोड़ा (Almora) में रात भर रुककर हमें अगले दिन सुबह सुबह गंगोलीहाट के लिये  निकलना था। हमारी उत्तराखंड यात्रा का ये पहाड़ी सफर मज़े में कट रहा था।


उत्तराखंड बाइक ट्रिप की पूरी सीरीज़ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

Loading

उमेश पंत

उमेश पंत यात्राकार के संस्थापक-सम्पादक हैं। यात्रा वृत्तांत 'इनरलाइन पास' और 'दूर दुर्गम दुरुस्त' के लेखक हैं। रेडियो के लिए कई कहानियां लिख चुके हैं। पत्रकार भी रहे हैं। और घुमक्कड़ी उनकी रगों में बसती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *