हिमाचल प्रदेश का जिभी (Jibhi Himachal Pradesh) पर्यटकों के बीच अब ख़ासा लोकप्रिय हो रहा है। खासकर गर्मियों में लोग इस खूबसूरत जगह पर जाना पसंद करते हैं। खासकर बर्फ़बारी के दिनों में यहाँ के नज़ारे बेहद शानदार होते हैं।
बर्फ़ का गिरना दुनिया के सबसे मुलायम और ख़ूबसूरत अहसासों में से एक है. गिरती हुई बर्फ़ आपको अपने भीतर मौजूद सुकून की तरफ़ ले जाती है. ये बात तब पता चलती है जब बर्फ़बारी का ये मंज़र ख़ुद अपनी आंखों से देखते हैं.
आज के सफर में आप मेरे साथ घूमेंगे हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के एक छोटे से क़स्बे जिभी (Jibhi) में. तो चलिए शुरू करते हैं आज का सफ़रनामा.
हिमाचल प्रदेश की बंजार (Banjar) तहसील में पड़ने वाले इस क़स्बे को अब लोग जानने लगे हैं. पर उतना नहीं जितना कुल्लू (Kullu), मनाली (Manali) या शिमला (Shimla) को. और सच बताऊँ तो तीर्थन वैली (Tirthan Valley) से लगे इस इलाके के बारे में कम लोगों का जानना ही इसे खास बना देता है.
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जिभी हिमाचल प्रदेश यात्रा का पहला दिन (Jibhi Himachal Pradesh trip day 1)
दिल्ली से मनाली (Delhi to Manali) जाने वाली बस ने सुबह-सुबह हमें औट (Aut) नाम की एक जगह पर पहुंचा दिया. इस जगह जवाहर टनल (Jawahar Tunnel) से ठीक पहले हम उतर गए.
यहां से एक सड़क जवाहर टनल होते हुए मनाली की तरफ चली जाती है और दूसरी सड़क बंजार की तरफ आती है. औट से ठीक पहले तीर्थन नदी के बेहद ख़ूबसूरत नज़ारों ने इस इलाके की सुंदरता की बानगी दे दी थी.
अच्छा यह रहा कि कुछ ही देर में हमें बंजार की तरफ़ जाने वाली लोकल बस भी मिल गयी. हमने बिना देरी किए बस पकड़ ली और आ गए बंजार की तरफ. क़रीब एक घंटे घुमावदार सड़क से गुज़रते हुए हम बंजार पहुंच गए जो कि एक छोटा सा क़स्बा है. बंजार की तरफ आने वाली यह सड़क बहुत संकरी है.
बस ने हमें टैक्सी स्टैंड पर ही उतारा और वहां से हमने जिभी (Jibhi) के लिए टैक्सी कर ली. टैक्सी वाले ने हमसे तीन सौ रुपए लिए और हमें करीब एक घंटे में जिभी में हमारे तय ठिकाने यानी डोली गेस्ट हाउस में लाकर छोड़ दिया.
जिभी में बिताने के लिए हमारे पास थे चार दिन. हम बहुत भाग-दौड़ के मूड में नहीं थे. इसलिए हम ने फैसला किया कि हम बादलों को उड़ता हुआ देखेंगे. पेड़ों से छनती हुई रोशनी का पीछा करेंगे. नदी से बतियाएंगे.
पहले दिन लगातार बारिश होती रही इसलिए हमने ज़्यादातर वक़्त गेस्ट हाउस में ही बिताया. पहाड़ों में बारिश की बूँदों को लगातार बरसते हुए देखने से बड़े सुख दुनिया में बहुत कम हैं.
जिभी हिमाचल प्रदेश यात्रा का दूसरा दिन (Jibhi Himachal Pradesh trip day 2)
दूसरे दिन भी गाहें-बगाहे बारिश होती रही. जब भी हम बाहर निकलते बारिश होने लगती और जब गेस्ट हाउस लौटते तो थोड़ी देर में बढ़िया धूप खिल जाती.
जिभी का यह इलाका हिमाचल (Himachal Pradesh Jibhi) की सराज घाटी (Seraj Valley) का हिस्सा है. पुष्पभद्रा नदी (Pushpbhadra River) के दोनों तरफ पहाड़ी ढलान में यहां के स्थानीय लोगों के घर हैं और इनके साथ-साथ कई कैफ़े, गेस्ट हाउस और कैम्पिंग के ठिकाने हैं.
हमारे इन कुछ दिनों का ठिकाना डोली गेस्ट हाउस (Doli Guest House) सड़क के एकदम किनारे है जहां हमने रिवर फ़ेसिंग कमरा लिया था. यह लकड़ी का पारंपरिक शैली में बना गेस्ट हाउस था जिसकी सामने की दीवार शीशे की थी.
परदे खोलने पर हमें बाहर का पूरा नज़ारा दिखाई दे रहा था. सामने खुला हुआ आकाश था, पेड़ों से घिरा पहाड़ी टीला था और खुबानी के कुछ ख़ूबसूरत पेड़ थे जिनमें गुलाबी रंग के फूल खिले हुए थे.
बारिश और धूप के बीच लुकाछिपी का खेल लगातार चलता रहा. इस छोटे से क़स्बे में पुष्पभद्रा नदी के किनारे देवदार के सुंदर पेड़ थे जिनसे छनती हुई धूप देखना अपने में मज़ेदार अनुभव था.
सड़क के नीचे एक पुल बना हुआ था जिससे नदी का बहुत ख़ूबसूरत नज़ारा दिख रहा था. इस पुल पर लगे बोर्ड में इस जगह का नाम जयपुर नाला लिखा हुआ था.
डोली गेस्टहाउस (Doli Guest House) के मालिक बीएस राणा से भी हमारी बातचीत हुई. उन्होंने बताया कि जिभी में ईकोटूरिज़्म की शुरुआत उन्होंने ही की. पर्यटन को ईको फ़्रेंडली बनाने से जुड़े कई आइडिया उनके पास थे. उनसे एक लम्बी मुलाकात का वादा हमने ले लिया.
शाम ढलते-ढलते कोरोना वायरस (Corona Virus) के प्रकोप की खबरें भी हम तक पहुंचने लगी थी. अभी भारत में इसकी आमद की खबरें ज़्यादा नहीं थी लेकिन चीन के बाद इटली में बुरा हाल हो चुका था. वायरस लागातार दुनिया भर में फैल रहा था. चिंताएँ लागातार बढ़ रही थी.
जिभी हिमाचल प्रदेश यात्रा का तीसरा दिन (Jibhi Himachal Prades trip day 3)
तीसरे दिन हमने जलोरी पास (Jalori Pass) जाने का मन बना लिया. गेस्ट हाउस से ही हमें ढाई हज़ार रुपए में एक जिप्सी मिल गई. हालांकि यह कीमत थोड़ी ज़्यादा ज़रूर लग रही थी पर मन था कि कुछ नया देखा जाए. कुछ ऐसा जो दिल ख़ुश कर दे. आख़िर इसलिए ही तो हम इस यात्रा पर निकले थे.
साड़े दस बज़े के आस-पास हम जलोरी पास (Jalori Pass) की तरफ जिप्सी से निकल गए. रास्ते में हमने बर्फ़ में चलने के लिए बूट भी किराये पर ले लिए.
जैसे-जैसे हम ऊपर चढ़ती सड़क पर आगे बढ़ रहे थे. दुनिया बदलती जा रही थी. क़रीब आधे घंटे के सफर के बाद हम बादलों के भी ऊपर आ गए थे. शोजा (Shoja) से करीब एक किलोमीटर आगे पहुँचकर हमारी गाड़ी रुक गई. सड़क पर इतनी बर्फ़ थी कि गाड़ी आगे नहीं जा सकती थी.
इसके आगे का सफ़र हमें पैदल तय करना था. और यही तो हम चाहते थे. मैं इससे पहले एक-आध बार बर्फ़ को गिरते हुए देख चुका था. लेकिन यह अनुभव कुछ और ही था.
चारों ओर बर्फ़ ही बर्फ़ और हम केवल दो लोग. पेड़ों से बर्फ़ के झरने तक की आवाज़ हमें सुनाई दे रही थी. देवदार के घने जंगलों में दूर-दूर तक बर्फ़ पसरी हुई थी. सड़क से लेकर पहाड़ की चोटियों तक बर्फ़ का साम्राज्य फैला हुआ था और एक रूह को ख़ुश कर देने वाली उजास पसरी हुई थी.
करीब दो घंटा हम इन नज़ारों का मज़ा लेते रहे. जलोरी पास (Jalori Pass) तो हम नहीं पहुंच पाए लेकिन वो अनुभव हमें मिल चुका था जिसके लिए हम यहां आए थे. क़रीब दो किलोमीटर बर्फ़ से पटी हुई सड़क पर चलकर हम वापस लौट आए. यही रास्ता आगे जलोरी पास की तरफ जा रहा था जहां से शिमला के लिए सड़क जाती है.
ब्रिटिश दौर में यह काफ़ी मशहूर ट्रेड रूट (Trade route) हुआ करता था. इसी रास्ते पर नारकंडा (Narkanda) नाम का एक ख़ूबसूरत हिल स्टेशन भी है.
जलोरी पास से सरयोसर झील (Saryolsar Lake) के लिए भी एक ट्रैक है जिसमें क़रीब पाँच किलोमीटर चलना होता है. दूसरी तरफ़ रघुपुरगढ़ किले (Raghupurgarh fort) का भी एक ट्रैक है. लेकिन इस बार भारी बर्फ़बारी (Heavy Snowfall) की वजह से वहां पहुंच पाना नामुमकिन था.
अब मौसम भी ख़राब हो रहा था. एक बार फिर बर्फ़ गिरने लगी थी. आस्था इसलिए भी बहुत ख़ुश थी कि वो पहली बार आखों के सामने बर्फ़ को गिरते हुए देख रही था. बर्फ़बारी का मंज़र दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत नज़ारों में से एक जो होता है.
मन तो नहीं था लेकिन हम लौट आए. रास्ते में बर्फ़बारी के बीच एक ठेले पर गरम चाय और मैगी ने इस सफ़र का ज़ायका और बढ़ा दिया.
गेस्टहाउस लौटकर हमने लंच किया और राणा ज़ी से मिलने चल पड़े. राणा ज़ी ने पहाड़ के बीचों-बीच कई कौटेज भी बनाए हैं. उन्होंने हमें जिभी और सराज घाटी से जुड़ी कई जानकारियां भी दी. उन्होंने बताया कि पास ही में चैनी कोठी नाम की जगह है जो 13 मंज़िल की लकड़ी की बनी अपनी तरह की नायाब इमारत है.
यह लकड़ी के खाँचों के जोड़ वाली एक खास शैली में बनी है इसलिए सदियों से यहां टिकी हुई है. बीच में भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाओं के बावजूद उसके खास स्थापत्य की वजह से चैनी कोठी (Chehni Kothi) को आंच तक नहीं आई.
इसके अलावा पास ही में बाहू नाम का एक गाँव भी है जहां पारम्परिक मंदिर और सुंदर ट्रैक हैं. राणा ज़ी ने बताया कि जिभी के आस-पास के इलाके में नागों की पूजा होती है. बूढ़ी नागिन उनकी आराध्य देवी हैं.
हम क़रीब दो घंटा राणा जी से बात करते रहे. इस पहाड़ी टीले से जिभी के आस-पास का शानदार नज़ारा दिख रहा था. शाम ढलने से पहले हम लौट आए. राणा ज़ी से यह मुलाक़ात काफ़ी अच्छी रही थी.
जिभी हिमाचल प्रदेश यात्रा का चौथा दिन (Jibhi Himachal Prades trip day 4)
सुबह के छह बज रहे थे और मैं निकल आया विलेज वॉक ( Village walk) के लिए. जिभी की पुष्पभद्रा नदी के किनारे सड़क से गाँव की तरफ़ जाती पगडंडी पर मैं आगे निकल आया.
यहां मुझे मिला एक मंदिर. यह जिभी के कुल देवता शेषनाग का मंदिर था. यहां के लोग नागों की पूजा करते हैं. इस इलाके में नाग देवता के ऐसे और भी कई मंदिर भी हैं यह बात राणा जी ने हमें बतायी थी. मंदिर से आगे जंगल के बीच जाती एक सुनसान पगडंडी पर मैं यूं ही निकल आया.
कुछ ऊपर से जिभी के पास के गाँव दिखाई दे रहे थे और दूर कहीं जलोरी पास (Jalori Pass) था जहां से शिमला की तरफ पुराना ब्रिटिश ट्रेड रूट जाता है. यहां से जिभी के आस-पास के गावों के पारंपरिक घर भी दिख रहे थे जो पहाड़ी टीलों पर बने थे. सूने पहाड़ों के बीच कुछ देर के एकांत का सुख भोगकर मैं अपने गेस्ट हाउस में वापस लौट आया.
एक अच्छी मॉर्निंग वॉक (Morning walk) के बाद अच्छा नाश्ता तो बनता था. गेस्टहाउस में नाश्ता करके कुछ देर में हम निकल आए जिभी के खास आकर्षण जिभी फ़ॉल (Jibhi Fall) की तरफ. बारिश की वजह से यह झरना अपने उफान पर था. और धूप की किरणें जब फुहारों से गुज़रती तो रोशनी के सातों रंग दिखाई देने लगते.
यहां के लोग मानते हैं कि पानी के देवता छोई और छोइन इस झरने की रक्षा के लिए हमेशा इसके आस-पास रहते हैं. प्यारी सी धूप और पानी की फुहारों के पास हम काफ़ी देर तक बैठे रहे.
इस ख़ूबसूरत झरने के पास एक अच्छा वक्त बिताकर हम लौट आए. जिभी में बीते ये चार दिन वाकई ख़ूबसूरत रहे. डिनर के वक़्त गेस्ट हाउस चला रहे गुड्डू ने बताया कि उनकी टूरिज़्म असोसिएशन ने फैसला लिया है कि कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से एहतियातन अब वो कोई नया टूरिस्ट नहीं लेंगे.
तीर्थन वैली (Tirthan Valley) से लगी बंज़ार वैली (Banjar Valley) के इस सफ़र में बर्फ़, बारिश और धूप तीनों का ही भरपूर मज़ा ले लिया था हमने. अगली शाम हमने औट से ही दिल्ली की बस ले ली.
इस बस में ख़बर फैली हुई थी कि कोरोना वायरस (Corona Virus) के संक्रमण को ध्यान में रखते हुए अगले दिन से ही सरकारी और निजी बसों की आवाजाही पर हिमाचल सरकार रोक लगा रही है. हम भाग्यशाली थे कि एकदम सही वक़्त पर लौट आए थे. अगर एक दिन की भी देरी होती तो हम शायद हिमाचल में ही फँसे रह जाते.
कुछ ही दिनों बाद दिल्ली में लॉकडाउन (Lockdown) की घोषणा हो गयी. हम भाग्यशाली ही थे कि घरों में बंद रहने की देशव्यापी बंदिश के ठीक पहले हम इतनी ख़ूबसूरत यात्रा की यादें बटोर लाए थे.
इस यात्रा पर बनाया वीडियो ब्लॉग आप यात्राकार के यूट्यूब चैनल (YouTube Channel) पर देख सकते हैं
जिभी यात्रा : पहला भाग
जिभी यात्रा : दूसरा भाग
1 Comment
Akansha
(June 3, 2021 - 1:35 am)यात्रा वृतांत पर आपकी लेखनी और अनुभव दोनों ही शानदार होते हैं। इनरलाईन पास के बाद आज आपका यह ब्लॉग पढ़ने का मौका मिला। आपकी बुक से बहुत ज्यादा प्रभावित हुई थी। ऐसे ही घुमकक्ड़ी का शौक रखने वाले हम जैसे लोगो को प्रेरित करते रहिये।