China Travelogue Cheeni Mitti by Ran Vijay

‘चीनी मिट्टी’ में पहुँचे एक भारतीय का यात्रा वृत्तांत

रात के आठ बजे , (चीन का लोकल समय) हम शंघाई में लैंड कर रहे थे (China Travelogue) . साढ़े ग्यारह बजे चल कर हम छः घंटे का सफर तय कर दिन से रात में पंहुच गये थे. सूर्य स्थिर है वह अपनी टॉर्च से रौशनी फेंक रहा है ,पृथ्वी की अपनी ध्रुवीय गति है उस पर छपे चीन और भारत बारी से टॉर्च के सामने पड़ेंगे . मगर दिन में ही रात हो जाने से पता लगता है कि एक जहाज बना कर इन्सान ने दिन और रात के फासले को ख़त्म सा कर दिया है . पृथ्वी की गति से एक जहाज में चलिए और हमेशा रौशनी में रहिये. 

एक बात और हुई ,शंघाई उतरते ही , हम अपनी उम्र में ढाई घंटे से अचानक बूढ़े हो गए . अगर उलटी दिशा में चलते तो कम से कम आध दिन से उम्र कम भी कर सकते थे . जब पायलट ने घोषणा किया कि शंघाई आने वाला है तब तक तो बस यही लगा कि चलो सफर की मुसीबत कटने वाली है . थोड़े ही अन्तराल पर एक झटका लगा और जहाज जरा डगमगा कर जमीन पर दौड़ने लगा , फिर आहिस्ता -आहिस्ता  रुक गया . तब पहली बार बदन में एक झुरझुरी हुई कि यह जमीन परायी है , यहाँ हर वक्त सावधान रहना पड़ेगा . अब आज़ादी कई कारणों से प्रतिबंधित होगी .

शंघाई का भव्य एयरपोर्ट और एक झटके में इमिग्रेशन (Immigration in China – China Travelogue)

China Travelogue by Ranvijay

 

खूब ऊंची संवरी छत , साज – सज्जा, प्रकाश का आभा मंडल और परिदृश्य से शंघाई का एअरपोर्ट भव्य दिख रहा है . वह हाथ पकड़ कर जैसे रोक लेता है कि देख लो आज हमको मुझे जी भर के . हम लोग सब बाहर निकल रहे हैं . मोबाइल हमने चालू कर लिया. अब बस इसी छः इंच में भारत शेष रह गया है . जैसे ही हमारा इंटरनेशनल रोमिंग चालू हुआ , राहत हुई कि चलो भारत और चीन आपस में भी कनेक्टेड रह सकेंगे . तुरंत ही मैंने अपने पहुँचने की खबर घरवालों को  whatsapp पर अपडेट कर दी .

हमारे इर्द-गिर्द देसी लोगों से माहौल ऐसा है कि एयर इंडिया की फ्लाइट में चढ़ने से लेकर अब तक हमें ऐसा कभी नहीं महसूस हुआ कि हम कहीं परदेस में हैं या जा रहे हैं . फ्लाइट  में यात्रा करने वाले लगभग साठ से सत्तर प्रतिशत लोग भारतीय थे. एयरहोस्टेस भी भारतीय और पूड़ी, पराठा भी भारतीय. प्लेन में इंटरटेनमेंट (फ़िल्में) भी भारतीय था. तब तक हमारा भारतीय माहौल कहीं भी हमसे जुदा नहीं हुआ  और हम अभी भी उस अजनबियत से बहुत दूर हैं , जो हमें विदेशी जमीन का एहसास दिलाता .

पर अचानक, शंघाई एयरपोर्ट के खुले और विस्तीर्ण क्षेत्र में जो मुट्ठी भर मद्रासी ,पंजाबी ,बंगाली साथ आये थे , गायब हो गये . अब हर तरफ गोरे और नेपाली कट ही दिख रहे हैं. नज़ारा बदल चुका है, इसलिए नज़र भी बदलनी पड़ गयी. सतर्कता पूर्वक अंग्रेजी में लिखे संकेत चिह्न देखते हुए हम आगे बढ़ने लगे .

इमिग्रेशन कराना सामान्यतया एक लम्बी प्रक्रिया होती है  पर यहाँ बहुत आसान दिखा. प्रक्रिया का मशीनीकरण कर दिया गया था . यह मैंने सिंगापुर , मलेशिया , जर्मनी , इटली तक में नहीं देखा था . एक मशीन पर पासपोर्ट और वीसा मैंने खुद स्कैन किया  और उँगलियों के इम्प्रैशन दिए, बस पांच  मिनट में मामला खत्म . इतना सुविधाजनक और इतना मशीनीकृत . मन आह्लादित भी हुआ, और ईर्ष्यालु भी . भारत में इसी काम में घंटों लगा देते हैं . पहले लम्बी सी कतार में खड़े रहो . इस देश ने अपनी जमीन पर विकसित टेक्नोलॉजी का पहला नमूना देकर ही हमे चकित कर दिया . 

 

जूझना भाषा की चुनौती से ( Language problem in china -China Travelogue)

हम बाहर निकल कर आ चुके हैं. शंघाई का तापमान भारत से कुछ कम रहा होगा . एक हल्की ठंडी हवा ने हमारा स्वागत किया . महसूस हुआ यह हिमालय के इस पार की हवा है और ज़रूर ही दक्षिणी चीन सागर को चूमते हुए आई है . हवा मुझे सहला के जा रही है और… और अभी पीछे मुड़ कर मुस्कुरा देगी . जैसे किसी माशूका को देख कर मुस्कुराहट आती है , वैसा ही मैं अपने आप में अभी मुस्कुराया और चोर नज़रों से इधर उधर देखा . असली मायने में तो चीन की सर ज़मीन पर अब आये हैं . एअरपोर्ट तो ग्लोबल गाँव सा है . सब अपना है और कुछ भी अपना नहीं .

एक ड्राईवर हमारे नाम का प्लेकार्ड लिए हुए खड़ा था . हमने अपने टैक्सी ड्राइवर से कुछ बात करना चाहा तो उसने इशारे की भाषा का प्रयोग किया और साथ में कुछ कहा जो अबूझ था . तत्काल यह महसूस हुआ कि वह गूंगा और बहरा नहीं है बल्कि उसको अंग्रेजी समझ में नहीं आती है. नदी पार करने के लिए नाव तो मिल सकती है ,पर मल्लाह नहीं है . इस देश में भाषा हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक थी . इस चुनौती का आरम्भ हो चुका है जैसे कुश्ती में दो पहलवानों के हाथ मिलाते ही दंगल शुरू हो जाता है .

जब वह कार लेकर आया तो वह एक मर्सिडीज की बड़ी गाड़ी थी. मैंने मन ही मन सोचा कि अच्छा… यहाँ टैक्सी का स्टैण्डर्ड  मर्सिडीज़ से शुरू होता है ? अहा मेरे भाग्य …क्या पता कल हेलीकाप्टर मिले , सब्र कर लेता हूँ . उसका बस इतना ही काम था कि उसे हमें एक होटल पर  ड्राप कर देना था.  जैसा कि सब जगह ही होता है ,शंघाई एअरपोर्ट भी शहर से काफी बाहर था. मेरा होटल एअरपोर्ट के आस पास ही था .

यूँ कह लीजिये ये हवाई यात्रियों की सुविधा के लिए बने हुए होटलों में से ही एक था . हमारी हिम्मत की मिसाल तो देखिये . विश्वास की एक पतली डोर पकडे चार लोग एक दूसरे का सहारा बन एक ऐसी गाड़ी में बैठ गए , जहाँ यह स्पष्ट नहीं है कि कार किसने भेजी है और वह हमें लेकर किधर जा रहा है ?  

 

चीन की पहली झलक (First look of China)

China Travelogue Cheeni Mitti By Ran Vijay

 

मन खूब व्याकुल है कि चीन कैसा है ? छोटे बच्चे के मानिंद दुकान पंहुचने से पहले ही चाकलेट के लिए मचले जा रहा है . कार के विंडो से हमने बाहर बहुत झांका कि हमें चीन की पहली झलक मिले पर यह रात आठ बजे की नव यौवना अँधेरा है , जल्दी हाथ नहीं आती .  महसूस हुआ कि भले ही वह किधर से भी घूम कर आई हो , पर हवा भारत जैसी ही है . पता नहीं अब तक क्यों मन को यह लगता रहा था कि  कम से कम एक प्रतिशत तो अलग होगी वहां की हवा .

आखिर हिन्द महासागर नहीं बल्कि चीन सागर के किनारे पंहुच गए थे हम . खैर सागरों का क्या , बस नाम ही अलग , बाकी सब एक दूसरे से मिले हुए हैं . कोई दीवार नहीं , बॉर्डर नहीं . सड़कें पुर सुकून हैं , पता नही यह कार का अच्छा सस्पेंशन है या सड़क की अच्छी राइडिंग . मेरा इंजीनियर दिमाग खोज में लग गया था  और साहित्यिक मन…पूछो न, वहां की हवा में कुछ रूमानियत और कवित्व के तत्व खोजने लगा था .

हवा रुमान के माकूल है , पर मन ठहर नहीं रहा है  . आकुल है , आतुर है . दृश्य में ठहर कर सुन्दरता का गोता लगाने के बजाय अभी सरपट दौड़ रहा है ,वह  विस्तार देखना चाहता है . दस मिनट में होटल आ गया . जब होटल पहुंचे तो रात के साढ़े नौ बज रहे थे .

यह एक एक थ्री स्टार होटल जैसा है . रिसेप्शन पर दो छोटे कद की, शायद स्कूल जाने वाली लडकियाँ बैठी हैं.  उनमें से एक तो दो चोटी में भी है . उनकी उम्र को लेकर यह मेरा भ्रम था , जो आगे जाकर समझ में आया . जैसे धर्म की पहचान कपडे, टोपी, टीके इत्यादि से करने की हमारी आदत है, वैसे ही मैं उनकी उम्र नाप रहा था,  आकार  ,पहनावे और प्रतीति से . गलत साबित हो जाना कितना ज़रूरी है हमारे ज्ञान की समृद्धि के लिए .

 

चीन में अंग्रेज़ी का सहारा

 

हमारे पास अंग्रेजी भाषा की ऐसी बैसाखी थी , जिससे हम अब तक सारी अंतर्राष्ट्रीय वैतरणी पार करते रहे हैं .  हमने तुरंत बैसाखी डाल ली . हमें जवाब भी अंग्रेजी में मिला. हम अपनी अंग्रेजी में  बोल रहे हैं , वे अपनी . समझने के लिए ध्यान देना पड़ रहा है . जबान के साथ -साथ ,आज कान को भी मेहनत करनी पड़ रही है . वह भी दम साधे काम पर लगा है . उनकी वाली अंग्रेजी  में ‘ट‘ की जगह ‘त‘  बोले जाते हैं जैसे हमारा  ‘राईट ‘ उनका ‘राइत’ था. उनके अन्य उच्चारण भी कुछ भिन्न थे . नफासत की जुबान में इसे  तलफ्फुज का फर्क माना जायेगा . 

यहाँ का समय भारतीय समय से ढाई घंटे आगे चल रहा था, इसलिए शरीर को अभी कोई भूख नहीं लग रही थी .देह की घडी अभी रिसेट नहीं हुई है . शंघाई घूमने की ललक लगी थी, क्योंकि मेरे ट्रिप में उसके लिए समय कम पड़ रहा था . जो तीन लोग साथ आये थे उनसे पूछा तो दो चलने को तैयार हो गये . चीन की धरती पर पहुंचने के बाद मेरा एडवेंचर वाला हार्मोन तेजी से बहने लगा था. मेरे अंदर कीड़ा कुलबुला रहा था कि जल्दी से कुछ ना कुछ देखते हैं. अभी किसी को नींद भी नहीं आ रही थी. 

हम सब कपड़े बदल कर नीचे रिसेप्शन पर आ गये . मैंने रिसेप्शन पर एक टैक्सी बुक करने को कहा . उन्होंने हमारे लिए एक टैक्सी ड्राईवर को बुला दिया . अब हमें उससे सब कुछ तय करना था . उसे अंग्रेजी नहीं आती , हमें चीनी मंदारिन . इन्ही क्षणों के लिए हम जो विभिन्न हथियारों से लैस होकर आये थे , वे प्रयोग में आये . 

मैंने गूगल trans literation का ऑफ लाइन वर्जन मोबाइल में पहले से ही डाउनलोड  कर रखा था , मैं अंग्रेजी में लिखता और मोबाइल में उसके बदले चित्र सा बनता  . मैं वह चित्र  उसे दिखाता . तब वह हाँ- हाँ में सर झमकाता . पहले मंजिल और फिर भाड़ा तय हुआ दो सौ युवान . मैंने अपने चीनी दोस्त जेम्स से we chat  अप्प पर वौइस् कॉल कर रेट के बाबत  पूछा. मैं अपने पहले ही लेन देन में ठगे जाने से शुरुआत नहीं करना चाहता हूँ. उसे भी दिखलाना था कि हमें उल्लू न समझना , हम बारीक हैं . उसने इस रेट पर आश्चर्य व्यक्त किया .

एयर पोर्ट के पास से शंघाई तक दो सौ युवान कम लग रहा था, उसके हिसाब से तीन सौ तक होना चाहिये. उसने कहा अच्छी डील है . मुझे उस चीनी प्रतिनिधि यानि जेम्स का बड़ा सहारा था . उसने कह जो रखा था , उसे दिन- रात कभी भी डिस्टर्ब किया जा सकता है . क्योंकि उससे मैं भारत में दो बार मिल चुका था , तो वह मेरा एक वैसा सहारा था , जैसे मेरे हाथ जिन्न वाला चिराग हो , ज़रूरत पड़ते ही जिन्न को बुला लूँगा .

 

शंघाई चीन का सबसे बड़ा शहर

हम एक स्विफ्ट जैसी कार में निकल पड़े. शंघाई चीन का सबसे बड़ा और सबसे प्रसिद्ध शहर है. फिर इतनी इज्ज़त अफजाई तो बनती है कि  उसे देखने के लिए आराम के वक्त में से कटौती की जाये . वहाँ, जहाँ जोश ,  कहाँ, वहाँ  होश?  रात के दस बजे  के पास इस सफ़र पर पूरी उत्तेजना में हम निकल पड़े थे . मुझे डर तो लग रहा है , पर हम तीन हैं  , सब एक दूसरे के भरोसे . हर मिनट मैं इस जगह को ऐसी नजरों से देख रहा हूँ  , जैसे यहाँ हर इंच पर कुछ नया दिखेगा . पर अफ़सोस… ऐसा कुछ नहीं हुआ . रात अँधेरी है, जिसे रौशनी की एक लम्बी सिल्ली चीरती जा रही है . जितनी हमें जल्दी थी , उतना ही ये दूर था .

रास्ते में हाईवे के एक चौराहे पर रेड लाइट पड़ी, ड्राईवर खड़ा हो गया . काफी देर तक कोई भी गाड़ी किसी तरफ से नहीं आई . ऐसा तो मैंने दिल्ली में देखा था कि भले ही कोई गाडी किसी भी तरफ न हो , मगर रेड लाइट मतलब रेड लाइट . डेढ़ मिनट बाद एक लोडर उसके पीछे से निकल कर तेजी से दौड़ कर  रेड सिग्नल पार कर गया . मैं गाड़ी में आगे ही बैठा था . ड्राईवर ने मुझे देखा , मैंने  ड्राईवर को . वह मेरी प्रश्नात्मक आँखों को समझ गया था . उसने कुछ कहा और इशारे से ऊपर दिखाया .

उसका एक शब्द ही समझ में आया  ‘कैमरा‘. चौराहे पर रौशनी थी , तो हमें कैमरा दिख गया . यह एक हाईवे था और वहां हाईवे पर भी मोनिटरिंग कैमरा लगा था , जिससे ट्रैफिक पुलिस डिफाल्टर को पकड सकती थी और उन्हें दंडित कर सकती थी . भारत में अभी सीसीटीवी  महानगरों, राजधानियों तक सीमित है , उसका भी बहुत उन्नत स्वरूप नहीं दिखता . एक बात और गौर करने की है कि हाईवे पर रोड लाइट लगाना सुविधाओं और संरक्षा  का एक लेवल ऊपर बढ़ाना है . मुझे यहाँ तो कहीं नहीं दिखता है . 

 

ग्रेट फ़ायरवॉल ऑफ़ चाइना (The grate firewall of China – China Travelogue)

China Travelogye

 

चीन में घुसने के पहले ही हमें यह मालूम था कि यहाँ ग्रेट वाल ऑफ़ चाइना की तरह ही ग्रेट फ़ायरवॉल ऑफ़ चाइना भी है. जिसका अर्थ यह है कि दुनिया भर के सारे लोकप्रिय इन्टरनेट प्लेटफार्म यहाँ गायब हैं . जी हाँ आपने सही सुना , यहाँ सब गायब हैं . न ही गूगल , न जीमेल , न ही whatsapp ,न ही यूट्यूब , न ही फेसबुक, न ही ट्विटर . भारत में ,जिसे अपनी साँसों में हर जगह पा जाते हैं , वह वायु यहाँ अनुपस्थित है . कल्पना कर सकते हैं कि आज के युवाओं, गत और आगत युवाओं के लिए कितना मुश्किल है , जी पाना, इनके बिना . एक बार को प्रेमिका के बगैर जिया जा सकता है , पर इनके बिना ..ओह ओह मुझे सोचने मात्र से सिहरन होती है .

प्रयोग के लिए किसी युवा से उसका मोबाइल बारह घंटे के लिए लेकर देखिये . क्या पता उसे अनिद्रा या रक्तचाप का स्ट्रोक लग जाए . गूगल तो हर कदम पर हमारा हाथ थामने के लिए खड़ा मिलता है, यह बात और है कि नाशपीटा हाथ पकड़ कर हमारे राज अपने कब्जे में ले लेता है . जहाँ आदमी को यह तक आदत पड़ जाये कि ‘पान शॉप नियर मी’ भी गूगल पर ढूढ़ रहा होता है वहां उसके बिना अब जीवन मुश्किल है . केवल इतना ही नहीं भारत में चलने वाली कोई भी साईट यहाँ  खुल नहीं रही है .

मतलब हमारे लिए देश दुनिया झाँक लेने की खिड़की भी बंद कर दी गयी है . जब तक हम शंघाई इंटरनेशनल एअरपोर्ट के अंदर थे , तब तक सब चलता रहा . परन्तु जैसे ही बाहर निकले , सब छू मंतर हो गया . यह भी एक अजीब पालिसी थी . हम सब ने ‘we chat ‘ डाउन लोड कर रखा था ,जो whatsapp का चीनी भाई है . अपने घर वालों को भी सबको यही डाउन लोड करवा दिया था . क्योंकि यहाँ इन्टरनेट पर यही चल सकता है . 

लेखक के बारे में

Ran Vijay Writer Cheeni Mittiचीन का यह यात्रा वृत्तांत लेखक रण विजय की हालिया आई किताब ‘चीनी मिट्टी’ का अंश है।

इससे पहले रण विजय के दो उपन्यास और दो कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।

यह उनका पहला यात्रा वृत्तांत है।  आप इस किताब को यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं। 

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