तुर्की के केपेदोकिया ( cappadocia turkey) की यात्रा पर आधारित यह यात्रा वृत्तांत हमें लेखिका रूपाली संझा ने भेजा है। उन्होंने तीन यात्रा वृत्तांत लिखे हैं जो उनकी विदेश यात्राओं पर आधारित हैं। तुर्की पर ‘दिल की खिड़की में टँगा तुर्की’, और वियतनाम पर ‘इतने भी दूर नहीं थे!’ नाम से आए उनके यात्रा वृत्तांत चर्चित रहे। कंबोडिया पर ‘ख़ुमारी खमेर की’ नाम से नया वृत्तांत हालिया प्रकाशित हुआ है। इसके अलावा उनका एक उपन्यास और एक काव्य संग्रह भी प्रकाशित है।
कितना समर्पण था तुम्हारे प्यार में केपेदोकिया!
किसे रश़्क ना हो ऐसी मोहब्बत पर।और किसे प्यार ना उमड़े ऐसे प्यार पर। जितनी जगह इनकी ये आपसी प्रेम क्रीड़ाएँ अपने चरमोत्कर्ष पर थी वहाँ-वहाँ नितान्त सुंदर संतति का निर्माण हुआ!
आईये मिलते हैं एक-एक कर सबसे।
गोरेमे नेशनल ओपन एयर म्युज़ियम (cappadocia turkey)
गोरेमे नेशनल ओपन एयर म्युज़ियम जो 1984 से “युनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट” है,एक विशाल मठ परिसर है।जिसमें लगभग तीस तराशी हुई गुफाएँ हैं।इसमें रॉककट चर्चों और चैपल्स का बेहतरीन समावेश है,जिसमें सुंदर भित्तिचित्र (दीवार पेंटिंग) हैं, जिनके रंग अभी भी अपनी मूल ताज़गी को बरकरार रखते हैं।
गोरमे ओपन एयर म्यूजियम के अधिकांश चर्च 10 वीं,11 वीं और 12 वीं शताब्दी के हैं।भले ही बाक़ी का सारा परिसर विश्व धरोहर घोषित नहीं है पर पूरे का पूरा अपने आप में अति विशिष्ट विश्व थाती है!
ऊशीसार कैसल
चाहे ‘ऊशीसार कैसल’ हो जो सबसे बड़ी और ऊंची ‘फेयरी चिमनी’ है जिसका अतीत में अपनी महत्वपूर्ण स्थिति के चलते वाॅच टावर की तरह इस्तेमाल किया जाता थाज्वालामुखी के उद्गार के समय निकली राख के बिछने से बनी कोमल चट्टानें उसके ऊपर आच्छादित कठोर बैसाल्ट चट्टानों की तुलना में ज्यादा घिसी तब बैसाल्ट ‘कोन’ के आकार में ऐसे खड़े रह गये मानों परियों ने जादू से विराट आकार की चिमनी ईज़ाद की हो इसलिए इसका नाम भी पड़ गया ‘फेयरी चिमनी’।
या निकट ही ‘पासाबैग वैली’ हो जो हैरतअंगेज तरीके से ऐसी तराशी गई है मानों मशरुम के खेत हो,छतरीनुमा चट्टानें !
पिजन (कबूतर) वैली (cappadocia turkey)
‘पिजन (कबूतर) वैली’ बड़ी चट्टानों का समूह है जो कभी जीतीजागती रौनक से भरपूर बस्ती थी, व्यापार के विश्व प्रसिद्ध “सिल्क रूट” पर अवस्थित।अब हालांकि इंसानी रिहाइश से वीरान है,पर कबूतरों की बस्ती ज़रुर इसे शाद-आबाद रखती है। उन्हीं के द्वारा लगातार क्षरण हो रहा अब यहाँ।जिससे भी कई रुप और बनते जा रहे यहाँ। कोई गया,कोई आया यही तो दस्तूर है,हमेशा के लिए कोई कहाँ कहीं रह पाया?
डेवरेंट या इमेजिनेशन वैली
‘डेवरेंट या इमेजिनेशन (काल्पनिक ) वैली’ तो कल्पनातीत ही है। ऐसे रोमांचक माहौल में प्रविष्ट हो जाते हैं इसके नजदीक पहुँचते ही, कि मानो किसी मायावी लोक में आ गये हो। चट्टानों में चितेरा गया अनिर्वचनीय सौंदर्य।आँखें फटी की फटी रह जाती हैं।तरह-तरह के जानवरों की आकृतियाँ ऐसी गढ़ी गई हैं चट्टानों में कि लगता है प्रकृति एक प्राणी संग्रहालय बनाने पर उतारू थी।
ऊँट, बंदर, मुर्गे, पैंग्विन, साँप,
कायमाकली (cappadocia turkey)
‘कायमाकली’ सबसे बड़ी भूमिगत बसाहट है।इसकी आठ मंजिलों में से चार ही पर्यटकों के लिए खुली हैं। बड़े खुले हवादार रोशनदान, शयन कक्ष, कोठार घर, रसोईघर, बैठक, पानी के निकास की नालियाँ, अस्तबल, प्रार्थनाकक्ष आदि समुचित व्यवस्थात्मक और सुरक्षात्मक तरीके से बसी ये बसाहटें बिना किसी तकनीकी और संसाधनों के भूमि के नीचे काट-काट कर कैसे बसाई गई होंगी, देखकर बड़ा अचरज होता है।
ज़ेल्वे खुली बसाहट और आर्थाहिसार बसाहट
‘ज़ेल्वे खुली बसाहट’ हो,या ‘आर्थाहिसार बसाहट’। दोनों जगहों से थ्री सिक्टी डिग्री का पॅनारोमिक दृश्य देखते ही बनता है। नज़रें दूर-दूर तक जाकर फ़िर वापस आती है कभी इधर कभी उधर भटकती हुई । कहाँ नज़र टिकाए कहाँ से उठाये इस गफलत में ही वक्त मुट्ठी से फिसलता सा लगता है।तब एक ही रास्ता सूझ पड़ता है कि हाल-फिलहाल तो फटाफट हर कोण से ढेर सारी तस्वीरें खींच ली जाएँ। फ़िर बाद में कभी इतमिनान से बैठ कर इन दृश्यों को बार-बार देख-देखकर जी बहला लिया जाएगा।
सेलीमे माॅनेस्ट्री
‘कालेदीबी मठ’ या ‘सेलीमे माॅनेस्ट्री’ हो, गुफ़ा में बना बेंजातीन कला का गहरे पक्के रंगों से चित्रित ‘डार्क चर्च’ या छोटा सा ‘चॅवुसिन गाँव’,’ इहलारा वैली’ या ‘माजी अंडरग्राउंड बसाहट’ सबका अपना नितांत पृथक सौंदर्य…मुँह तो मुँह,आँखें भी वाह बोलने के अंदाज़ में खुली की खुली रह जाएँ।
थ्री ब्युटीज़
सबसे ख़ूबसूरत तो “थ्री ब्युटीज़” ! तीन ऊँची-पूरी छरहरी सीधी-सतर खड़ी चट्टानें सिर पर ‘हैट’ पहने एक-दूसरे के साथ बचपन की पक्की सहेलियों की तरह पास-पास खड़ी बतियाती हुई नज़र आती हैं। कितनी ही देर गुज़र जाती है उनके बगल में हमें खड़े हुए,पर हम पर उड़ती हुई सी नज़र डालने की भी फुर्सत नहीं उनके पास!वो दीन-दुनिया से बेपरवाह अपनी गप्पों में ही मगन।उनकी बातें हैं कि ख़तम होने में ही नहीं आती।
तब हम ही उनकी बातों में शामिल होने,उनके और निकट चले जाते हैं और उन तीन अति सुंदर सुंदरियों के साथ चिपक कर बैठ जाते हैं।उनके साथ ढेर सारी तस्वीरें खींचते हैं।पर वो इतनी अड़ियल कि ज़रा सी घास तक नहीं डालती हमें,अपने गुट में शामिल करना तो दूर।चलो ठीक है।बनता है उनका इतना इतराना,हमें मामूली समझ पत्ता ना देने का हक तो बनता ही है।
सुंदरता इतनी अना और आन की हकदार तो है ही।हम उनके सामने से अपने साधारण से कद को उठाए आगे बढ़ लिए।लेकिन कुछ भी कहो जी तो जुरा ही गया। अच्छी संगत भले ही आपको असंगत मान आपका साथ छोड़ दे,पर उसके संग बिताया गया थोड़ा सा भी समय हर समय के लिए स्मृतियों में सुरक्षित रह जाता है।
भारी ठोस चट्टानें भी बेहद मुलायमियत से दिल को छू सकती हैं,इसका साक्षात्कार करने का ये एकमात्र स्थल। एक थी चट्टान,एक थी कुदरत,एक था उनके बीच का इश्क! और ये ब्युटीज़ उन दोनों के अंतरंग संबंधों की गहनतम परिणति।एक ठंडी साँस पूरे दम से बाहर निकलती है,ऐसी कि उसके साथ दम निकलते-
निकलते बचने से रह जाता है,बस ये गनीमत बची रह जाती है!
यूँ तो थ्री ब्युटीज़ के अंदर भी जाया जा सकता है और इनके ऊपर भी चढ़ा जा सकता है। अगर चाहें तो। इन्हें एतराज़ नहीं लेकिन थोड़ा झुककर साफ़-सादा-सरल मन लेकर।जैसी ये हैं, दुराव-छुपाव से सर्वथा मुक्त अपने आप में खोयी हुई उन्मुक्त अपरुप सौंदर्ययुक्त और गर्व से तनी हुई। वहाँ अपना अहम बाहर छोड़कर ही जाया जा सकता है।
लव वैली
‘लव वैली’ केपेदोकिया का ह्रदय स्थल।यहाँ प्यार अपनी चरम अवस्था में था। दिल्लगी थी दिल से दिल मिलकर एकदिल हो गये थे तो दिल की ही आकृति में ढल कर रह गये। दूर-दूर तक पसरा ये प्यार का उच्चतम,गहनतम ठोस भाव गंभीर प्रतीकात्मक रूप में एक साथ मानव मन को झकझोरने के लिये मकबूल है।दंग रह जाने के अलावा दूसरा कोई दर नहीं।दुनिया में इस जैसी दूजी कोई ठौर नहीं,दूर दूर तक प्यार का उफनता सागर!इतना उत्कट कि पहली नज़र में आँखें उसके आवेग को बर्दाश्त ना कर अपने आप मूंद जाए, तन बदन में सिहरन भर उठे।
कई कहानियाँ सुनी अमर प्रेम की लेकिन केपेदोकिया जैसा डूबकर,टूटकर मौन इश्क़ करने वाला कोई आश़िक ना हुआ जो सैकड़ों सालों से अपनी मोहब्बत की कहानी बनकर ख़ुद जी रहा है! “जो कह दी जाए वो कहानियाँ होती है,जो जी ली जाए वो ज़िंदगानियाँ होती है!”
इस लिहाज़ से केपेदोकिया दोहरी ज़िंदगी जी रहा…एक कहानीमय ज़िंदगी, एक ज़िंदगी कहानी सी. बहुत मुश्किल है मानव मात्र के लिए इस तरह ज़िंदगी जी जाना…उसकी औकात से दूर… बहुत दूर की बात !
केपेदोकिया ने सिखाया कि जब कोई आपकी मोहब्बत में हो तो कैसे अपने प्रियतम पर दिलो-जान लुटाये जाते हैं। कैसे उसकी ख़ातिर दिलो-जान निसार कर दिये जाते है। कैसे उसके उमड़ते आवेग से परेशान हो, पिंड छुड़ा के पलायन कर रणछोड़दास नहीं बन जाते हैं कैसे उसके प्यार के तरीके को बेड़ी समझकर उसे तोड़-ताड़ कर भाग के दूसरे ठौर नहीं ढूँढे जाते हैं।
कि कैसे सब कुछ हार कर ही प्रेम में जीता जाता है। कि कैसे प्यार में बारदान को भी मखमली दुशाले की तरह ओढ़ लिया जाता है। प्यार में पूरी तरह रौंद दिये जाने के बावजूद अपनी टूटन को गाँठ कर कैसे सुशोभित, सुंदरतम रुप में काढ़ लिया जाता है कि आख़िरी बची याद ही हमेशा के लिये दिल में घर कर जाती है बाक़ी पिछला सब बिसार दिया जाता है।
जैसा केपेदोकिया ने किया।
केपेदोकिया एक काव्यमय महागद्य
केपेदोकिया एक काव्यमय महागद्य है। उसका ये वर्तमान बचा स्वरुप इस महागद्य का अंतिम अनुच्छेद।सुंदरता का उच्चतम पायदान। ये सीख देता हुआ कि अंत भी ख़ूबसूरत हो सकते हैं, बिगाड़ देना,ढहा देना ही अंतिम परिणति नहीं! इसका मूक गवाह तुर्की का ताज ये “नायाब केपेदोकिया” शहर मेरे अंदर धक-धक कर साँसे लेता शहर!
पीढ़ी दर पीढ़ियाँ गुज़ार दीं, मोहब्बत की गली-कूचों से हजारों बार दो-चार हुए लेकिन एक ऐसा पूरा शहर बन कर सदियों सिर उठाकर जी ना सके,ना हो सका हमसे…कभी हो भी नहीं सकेगा।कूवत ही नहीं हमारी इतनी।
ठूँस-ठूँस कर भर लाई इन ठूँठों को अपनी रग-रग में।अब तिल मात्र भी जगह नहीं मुझमें तुम्हारी ऐ लोगों..!
अलविदा तुमसे!इस शहर के जीवन दर्शन के बाद सब बेमानी है।
केपेदोकिया मेरा मोक्ष है, मेरा निर्वाण !!
(रूपाली संझा की क़िताब ‘दिल की खिड़की में टँगा तुर्की’ का एक अंश। क़िताब आप यहाँ से ऑर्डर कर सकते हैं)