उत्तराखंड (Uttarakhand) के सुदूर हिमालयी अंचल से शुरू होने वाली आदि कैलास यात्रा (Adi Kailash om Parvat) आध्यात्म और लम्बी यात्राओं में रुचि रखने वालों के लिए किसी अलौकिक अनुभव से कम नहीं है।
क़रीब छह हज़ार मीटर की ऊँचाई पर मौजूद यह हिमाच्छादित पर्वत शिखर छोटा कैलास के नाम से भी जाना जाता है। कभी भारत-तिब्बत के बीच बेहद अहम रहा यह व्यापार मार्ग आज पर्यटकों और श्रद्धालुओं के बीच ख़ासा लोकप्रिय है।
कैलास मानसरोवर यात्री भी इसी मार्ग से होकर अपनी मंज़िल तक पहुँचते हैं।
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छियालेख के बुग्याल
महाकाली नदी के किनारे बसे पिथौरागढ ज़िले के सीमांत इलाके धारचूला से सड़क मार्ग के ज़रिए आप तवाघाट तक पहुँचते हैं जहां से आदि कैलास के लिए ट्रेकिंग शुरू होती है।
शुरुआती तीखी चढ़ाई के बाद गाला होते हुए आपको बूदी गाँव तक का सफ़र तय करना होता है। दारमा वैली के इस गाँव तक पहुँचने के लिए आपको क़रीब साढ़े चार हज़ार सीढ़ियों वाले खडंजे पर एकदम तीखे ढलान पर उतरना होता है। रास्ते में आपको नेपाल के अपि पर्वत शिखर की चोटियाँ दिखाई देने लगती हैं और यह नज़ारा यात्रा की थकान को कुछ कम करने में मदद करता है।
बूदी से फिर शुरू होती है क़रीब तीन किलोमीटर की बेहद मुश्किल चढ़ाई लेकिन इस चढ़ाई के अंतिम बिंदु पर आकर जब आप छियालेख नाम की चोटी पर पहुँचते हैं तो इसकी ख़ूबसूरती इस थकान को मायने दे देती हैं। इस जगह को इलाके में फूलों की घाटी भी कहा जाता है। हिमाच्छादित पर्वत, सुंदर बुग्याल और उनमें खिले हुए रंग-बिरंगे फूलों को देखकर दिल खुश हो जाता है।
गुंजी से अपि पर्वत का नज़ारा
यात्रा के अगले पड़ाव तक पहुँचने के लिए गर्बियांग नाम की जगह से गुज़रना होता है। भारत तिब्बत व्यापार जब अपने उरूज़ पर हुआ करता था तो यह जगह इतनी समृद्ध थी कि इसे छोटा विलायत कहा जाता था। लेकिन कुछ वर्षों पूर्व हुए भू अपर्दन की वजह से यह गाँव कई फ़ीट नीचे धँस गया और यहाँ के रवासियों को विस्थापित होना पड़ा। यहाँ मौजूद घरों की नक़्क़ाशियों में आज भी उस समृद्धि की झलक देखी जा सकती है।
गर्बियांग के बाद नाबी होते हुए आप गुंजी नाम की बसावट तक पहुँचते हैं। कुटी-यांक्ती और कालापानी नाम की नदियों के संगम पर बसे इस छोटे से गाँव से नेपाल के अपि पर्वत के बेहद शानदार नज़ारे देखे जा सकते हैं। गुंजी से एक रास्ता आदि कैलास की तरफ़ जाता है और दूसरा रास्ता लिपुलेख की तरफ़ जो कैलास मानसरोवर यात्रा में पड़ने वाला आख़री भारतीय पड़ाव है।
कुटी यांक्ती घाटी का अद्भुत सौंदर्य
कुटी यांक्ती नदी के किनारे बसी इस घाटी का नाम पांडवों की मां कुंती के नाम पर पड़ा। इस गाँव तक पहुँचने के लिए आपको कुछ ग्लेशियर भी पार करने होते हैं। कहा जाता है कि स्वर्गारोहण के दौरान पांडव अपनी मां के साथ यहाँ रुके थे।
बर्फ़ीले पहाड़ों से घिरे इस बेहद आकर्षक गाँव में आपको सौ साल से भी पुराने घर देखने को मिलेंगे जिनका स्थापत्य देखने लायक है। इन पारंपरिक घरों के खिड़की-दरवाज़ों पर की गई नक़्क़ाशियों को देखकर लगता है कि किसी दौर में यह जगह कितनी संपन्न रही होगी।
पार्वती सरोवर और आदि कैलास
चार दिनों की पैदल यात्रा के बाद जब समुद्रतल से क़रीब छह हज़ार मीटर की ऊँचाई पर पहुँचते हैं तो आप आदि कैलास नाम के इस उन्नत हिमशिखर के सम्मोहन में खो जाते हैं।
ज्योलिंगकोंग नाम की जगह के पास मौजूद आदि कैलास के चरणों को धोती पार्वती झील की सुंदरता और इस जनशून्य इलाके में
दूर से आती बर्फ़ीली हवाओं की आवाज़ मिलकर यहाँ होने के अनुभव को अलौकिक बना देते हैं।
यहाँ ऑक्सीज़न की कमी के कारण हल्की सी मदहोशी भी बनी रहती है।
ओम पर्वत का हैरतंगेज़ नज़ारा
गुंजी से चीन की सीमा की तरफ़ बढ़ने पर कालापानी नाम की एक जगह आती है। कहा जाता है कि भारत और नेपाल के बीच सीमा रेखा का काम करने वाली महाकाली नदी का उद्गम यही जगह है। हालांकि इस जगह को लेकर फ़िलहाल दोनों देशों के बीच विवाद की स्थिति है।
कालापानी से आगे बढ़ने पर नाभीडाँग नाम की जगह से एकदम सामने एक बर्फ़ीला पहाड़ दिखाई देता है जिसपर आश्चर्यजनक रूप से ओम की आकृति बनी हुई है। नैसर्गिक रूप से चट्टान पर गढ़ी हुई इस आकृति की वजह से ही इस पर्वत का नाम ओम पर्वत पड़ा है जिसे देखने दूर-दूर से लोग यहाँ आते हैं।
आदि कैलास कैसे पहुँचें (How to reach Adi Kailash om Parvat)
हवाई जहाज़ से आना चाहें तो आपको पंतनगर या देहरादून तक ही यह सुविधा मिलेगी। काठगोदाम तक आप ट्रेन से भी जा सकते हैं। उसके आगे आपको सड़क मार्ग से ही जाना होगा। बस या टैक्सी से आप धारचूला के आगे तवाघाट नाम की जगह तक आ सकते हैं जहां से आदि कैलास के लिए पैदल ट्रैक शुरू होता है।
पैदल यात्रा में आपको कम से कम आठ दिन लग जाते हैं। हालांकि अब आदि कैलास तक ही सड़क बन गई है। सम्भावना जताई जा रही है कि इस बार सड़क मार्ग से सीधे आदि कैलास तक भी पहुँचा जा सकता है।
आदि कैलास कब जाएँ (Best time to visit Adi Kailash om Parvat)
सर्दियों के मौसम में बर्फ़बारी के चलते इस इलाके तक नहीं पहुँचा जा सकता। बरसातों में भूस्खलन का भय रहता है। गर्मियों के मौसम में ख़ासकर जून से लेकर सितंबर तक यहाँ जाने का सबसे मुफ़ीद समय है।
आदि कैलास ॐ पर्वत (Adi Kailash om Parvat) इस यात्रा पर आधारित मेरा यात्रा वृत्तान्त आप यहाँ से ऑर्डर कर सकते हैं।