Ravish Kumar America trip

अमेरिका, नाम तो सुना होगा !

(Last Updated On: July 21, 2023)

अमेरिका नाम तो आपने जरूर सुना होगा और हर भारतीय की तरहअमेरिका यात्रा (Amerika trip) की इच्छा भी जरुर की होगी। मैं भी आप से अलग नहीं हूँ बचपन से एक सपना मेरे मन में भी था कि काश एक बार अमेरिका यात्रा का मौका मिले। खैर मौका मिला।

10 दिन की अमेरिका यात्रा (America trip)

अब ये जानना आपके लिए जरूरी नहीं होगा कि मैं अमेरिका क्यों गया। इससे मेरा यात्रा वृतांत एक सीमित पाठक वर्ग तक सिमट कर रह जाएगा। मुझे अमेरिका के कैलीफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी लॉन्ग बीच की यात्रा करनी थी और हमारा लगभग 10 दिन का प्रवास था। (10 days America trip)
हालाँकि यह मेरी पहली विदेश यात्रा नहीं थी लेकिन जैसा कि मेरी हर यात्रा में होता कुछ न कुछ अड़चनें आ जाती हैं और विदेश यात्रा अपने आप में एक अनचाहा डर भी साथ लाती है। वैसा इस बार भी था। यूँ कहें कि घर छोड़ना बुरा भी लगता है किन्तु अपने विस्तार के लिए यात्रा करना भी जरुरी है। 

मै 4 दिसंबर को लखनऊ से दिल्ली के लिए उड़ा। अबुधाबी में हमारी घड़ी डेढ़ घंटे पीछे हुई ।हम 14 घंटे की उड़ान के लिए तैयार थे। अबुधाबी एअरपोर्ट पर हमारी दुबारा सुरक्षा जांच हुई।
अबुधाबी एअरपोर्ट पर सुरक्षा उतनी कड़ी नहीं थी। सुरक्षा जांच के बाद हम विमान में थे। विमान में जल्दी ही उन लोगों को देखा जिन्हें सुरक्षा जांच के वक्त इंतज़ार के लिए रोका गया था।
वो एक ही परिवार के कई बच्चे थे और एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति था जो शायद उनका पिता था। मै सारी यात्रा उन्हें ही देखता रहा मेरे मन में कई सारे सवाल उमड़ रहे थे। मैं उनसे बात करना चाहता था, मैं जानना चाहता था कि इतने सारे बच्चों को लेकर वो अमेरिका क्यों जा रहा था। क्योंकि उनकी हालत ये बयां कर रही थी कि वे आर्थिक रूप से उतने संपन्न नहीं लग रहे थे कि वे महज देशाटन के लिए अमेरिका (America trip) जा रहे हों।
जब हमारा विमान न्यूयॉर्क एअरपोर्ट पर उतरने वाला था तब हमें कुछ फॉर्म दिए गए जिन्हें भरना अनिवार्य था। ये हर देश का एक नियम है कि आपको अपनी यात्रा का पूरा ब्यौरा आव्रजन अधिकारियों को देना था। वे फॉर्म नहीं भर पा रहे थे।
उन्होंने मेरी मदद माँगी, मैंने मदद की भी। वो फॉर्म अपनी हस्तलिपि में ही भरना होता (जैसा मै जानता हूँ ) तब मुझे पता लगा कि वो सब बांग्लादेशी हैं हालाँकि वो हिंदी मिश्रित भाषा जानते थे लेकिन उन्होंने मुझसे हिंदी मे बात नहीं की जबकि मैंने उन्हें उस भाषा में बात करते सुना था।
मन में कई सवालों को लिए मै यही सोचता रहा ये छोटे बच्चे अपने अपनों से दूर कैसे रहेंगे और यहाँ क्या करेंगे? मुझे उनमे कई भारतीय छोटू दिखे जो वहां कहीं न कहीं खप जायेंगे वैसे भी अमेरिका सबको अपना लेता हैं। उसका इतिहास भी यही कहता है।
न्यूयॉर्क के लिए उड़ान भरते वक्त मैंने ये नहीं सोचा था कि ज़िंदगी का एक नया अनुभव होने वाला था जिसे टाइम ज़ोन इफ़ेक्ट कहा जा सकता है। हम दिल्ली से 5 की सुबह 4 बजे उड़े थे लेकिन जब हम लगभग 14 घंटे की उड़ान के बाद न्यूयॉर्क पर उतरे तो उस वक्त दिन के तीन बज रहे थे।
इस तरह हमारी ज़िंदगी से एक रात गायब हो गयी जो थी भी और नहीं भी। ज़िंदगी भी ऐसी ही है एक मृगतृष्णा हम भागते रहते हैं लेकिन सत्य तो मृत्यु है फिर भी …
America tourभारतीय समय के हिसाब से जब हम न्यूयॉर्क  उतर रहे थे भारत में 6 की सुबह हो रही थी लेकिन न्यूयॉर्क में उस वक्त 5 की शाम थी.
14 घंटे की थका देने वाली उड़ान के बाद जब हमारा विमान न्यूयॉर्क एअरपोर्ट पर उतर रहा था वहां हल्की बर्फ़बारी हो रही थी।
बर्फ़ गिरते देखने का यह मेरा पहला अनुभव था थोड़ी देर में ज़ोरदार बारिश होने लग गयी जो हमारे लॉस एंजलिस के लिए उड़ान भरते वक्त जारी रही। ठण्ड बहुत थी और एक बार हम फिर 6 घंटे की उड़ान के लिए तैयार थे। न्यूयॉर्क एअरपोर्ट काफी बड़ा और खूबसूरत है।
हमको एक टर्मिनल से दूसरे टर्मिनल जाने के लिए ट्रेन पकड़नी पड़ी लेकिन सुविधाओं के हिसाब से मुझे कुछ ख़ास नहीं लगा। आप सब मुझसे असहमत हो सकते हैं। आव्रजन सम्बन्धी औपचारिकता निपटाने के बाद हम अमेरिका की सरज़मीन पर थे।
 
अमेरीकी समय के अनुसार हम रात के 11 बजे लॉस एंजलिस एयरपोर्ट पर उतर रहे थे, शरीर थककर चूर हो चुका था। हमारे मेजबान एअरपोर्ट पर हमारा इंतज़ार कर रहे थे। थोड़ी देर में हम होटल के रास्ते में थे। चौड़ी-चौड़ी सड़कें जिनपर सरपट दौड़ते चौपहिया वाहन रौशनी से जगमगाता शहर वैसे जब हमारा विमान लॉस एंजलिस एअरपोर्ट पर लैंड कर रहा था तो नीचे मैंने रौशनी में जगमगाता शहर देखा। क्या खूबसूरती से समकोण पर काटती सड़कें।
पूरा शहर एक खूबसूरत लैंडस्केप लग रहा था और मुझे याद आ रहा था बचपन में इतिहास की किताबों में पढी हड़प्पा सभ्यता के बारे में पढी बातें। सारी सडकें एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं। हिन्दुस्तान अपने इतिहास से चिपका रहा और अमेरिका अपना भविष्य बनाता रहा।
मैंने अक्सर अमेरिका की आलोचना इस आधार पर सुनी है अरे वो क्या देश है उसका तो कोई इतिहास ही नहीं और मुझे ग़ालिब चाचा का शेर याद आता रहा “दिल के खुश रखने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है।” हड़प्पा सभ्यता की कुछ खास बातें मैं अमेरिका मैं देखने वाला था मसलन वहां की सफाई व्यवस्था।
 
हम 20 मिनट की ड्राइव के बाद लोंग्बीच शहर के होलीडे इन होटल में थे . ड्राइव की बात पर बताता चलूँ- अमेरिका में दूरी समय में मापी जाती है। ब्लॉगिंग सरताज समीर लाल की ये पंक्तियाँ पढ़ लीजिये अमेरिका का फलसफा समझ में आ जाएगा।
“अमेरीका का अजब शिगूफा है. बस सबसे अलग दिखना है, मानो यही मोटो हो. आज भी माइल में दूरी आँकते हैं जबकि पूरा विश्व किलोमीटर पर आ गया है. तापमान फेरेन्हाईट में, पेट्रोल गैलन में, वजन पॉण्ड में।”
कुछ और जोड़ता चलूँ लाइट के जो स्विच हमारे लिए ऑफ होते हैं अमेरिका में ऑन होते हैं।  भारतीय कोई भी बिजली के उपकरण अमेरिका में नहीं चल सकते क्योंकि उनके प्लग अलग किस्म के होते हैं। इसके लिए आपको कन्वर्टर की जरूरत होगी और इन समस्याओं का शिकार मैं अपने होटल पहुँचते हुआ।
पहले ऑन-ऑफ का चक्कर समझा उसके बाद मैंने सोचा अपने सकुशल पहुँचने की सूचना घर दे दी जाए।  लेकिन मेरा लैपटॉप उचित प्लग न हो पाने के कारण नहीं चला। बड़ी समस्या हुई। खैर हमारी एक साथी इसकी व्यवस्था कर के ले गयीं थी और वो प्लग उन्होंने मुझे सहर्ष दे दिया जिससे मैं अपना लैपटॉप चला पाया।
ये कन्वर्टर मेरे लिए एक बड़ी समस्या बना क्योंकि मैं अपने साथ बहुत से उपकरण ले गया था (वीडियो कैमरा , स्टिल कैमरा , मोबाइल , ऑडियो रिकॉर्डर इत्यादि ) और इन सबको चार्जिंग की जरुरत पड़ती है। पहले दिन तो काम चला।  आगे मैं किश्तों में सोता था और सारी रात अपने उपकरणों को चार्ज करता था।
 
जारी …

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मुकुल श्रीवास्तव

मुकुल श्रीवास्तव लखनऊ यूनीवर्सिटी में पत्रकारिता और जनसंचार विभाग के अध्यक्ष हैं। तमाम अख़बारों के लिए लेख लिखते हैं। देश-विदेश में घूमते हैं और घुमक्कड़ी के अपने अनुभवों को बख़ूबी लफ़्ज़ों में भी ढालते हैं।

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