राजस्थान की गुलाबी नगरी जयपुर में घूमने की जगहों की कमी नहीं है (Jaipur places to visit)। हमारा भी जयपुर घूमने का दिन आ चुका था। वो दोपहर का वक्त था जब हम दिल्ली से जयपुर (Delhi to Jaipur) की तरफ़ रवाना हुए. दिल्ली-जयपुर हाइवे गुड़गाँव से होकर निकलता है.
यह एक पारिवारिक ट्रिप था. मम्मी, पापा और दोनों भाई भी साथ थे. जयपुर पहुंचते-पहुंचते शाम हो गई. शाम को हमने जिस जगह होटल किया वहां से हवामहल (Hava Mahal Jaipur) पैदल दूरी पर था. तय हुआ कि कल सबसे पहले हवामहल ही देखा जाएगा.
सुबह-सुबह हम होटल से निकल आए. हम एक ऐतिहासिक शहर में थे जिसे 1727 में जयसिंह नाम के राजपूत राजा ने बसाया था. जयसिंह आमेर के राजा थे और उन्हीं के नाम पर इस शहर का नाम जयपुर पड़ा. यह बाक़ायदा योजनाबद्ध तरीके से बसाया गया शहर है और इसे बसाते हुए वास्तुशास्त्र और शिल्पशास्त्र की मदद ली गई है.
1876 में सवाई राम सिंह नाम के राजा ने एलबर्ट, प्रिंस ऑफ़ वेल्स के स्वागत में इस पूरे शहर को गुलाबी रंग से रंगवा दिया, तभी से इसे गुलाबी शहर या ‘pink city’ के नाम से भी जाना जाता है.
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जयपुर में घूमने की जगहें (Jaipur places to visit)
ये तो हुआ शहर के नाम का इतिहास चलिए अब आपको बताते हैं कि जयपुर में घूमने की जगहें (Places to visit in Jaipur) कौन-कौन सी हैं.
1. हवा महल (Hava Mahal)
हम इस वक़्त हवा महल रोड पर बड़ी चौपड़ नाम की जगह पर थे. हमारे सामने था लाल और पीले रंगों से सराबोर एक शानदार महल. यह हवा महल था जो बाहर से देखने पर किसी मुकुट के आकार का लग रहा था. महाराज सवाई प्रताप सिंह ने इस महल को बनाया था जी कृष्ण के भक्त हुआ करते थे. कहा जाता है इसी वजह से उन्होंने इस महल के बाहरी हिस्से को कृष्ण के मुकुट आकार का बनवाया.
एक गलियारे से होते हुए हमने महल में प्रवेश किया. यह महल पांच मंज़िल का है. हर मंज़िल पर कई झरोखे बनाए गए हैं जहां बैठकर जयपुर के बाज़ार का नज़ारा दिखाई देता है. साथ ही, यहां से पूरे जयपुर और उसके आस-पास के इलाके का भी दीदार होता है.
यहां बने इन 953 झरोखों की खास बात यह है कि इन्हें इस तरह से बनाया गया है कि हवा के बहाव में रुकावट न हो ताकि गर्मियों में भी यह हवादार बना रहे. इसलिए इसे हवा महल कहा जाता है. झरोखे बनाने की दूसरी वजह थी राजपरिवार की महिलाएं बिना किसी के देखे जाने के भय से पूरे शहर का नज़ारा देख सकें.
महल की पहली मंज़िल पर बीच में एक चबूतरा बना हुआ है जिसमें कभी शरद उत्सव हुआ करता था. यहां से पाँचों मंज़िलों तक जाने के लिए किले के अंदर ही संकरी सीढ़ियाँ बनी हुई हैं. दूसरी मंज़िल पर पहुंचते ही रंग-बिरंगी खिड़कियां मन मोह लेती हैं.
इन पर कई रंगों के रत्न जड़े हुए हैं जिनपर रोशनी पड़ते ही कमरे रंगों से भर जाते हैं. इसे रतन मंदिर भी कहा जाता है. तीसरी मंज़िल राजपरिवार के पूजा-पाठ के लिए समर्पित है. इसे विचित्र मंदिर कहा जाता है. चौथी मंज़िल प्रकाश मंदिर है और पाँचवी पर हवा मंदिर.
हवा महल में क़रीब डेढ़ घंटा गुज़ारने के बाद हम वहां से लौट आए.
2. जल महल
हवा महल से निकलकर क़रीब पाँच किलोमीटर बाद दाईं तरफ एक एक बड़ी सी झील नज़र आ रही थी. झील के बीच में एक शानदार महल था. और झील के किनारे खड़े ऊँट पर्यटकों का इंतज़ार कर रहे थे. यह मानसागर झील थी और इसके बीच में जो महल था उसे जल महल कहा जाता है.
राजा खास मौकों पर अपनी रानियों के साथ यहां वक्त बिताने आया करते थे. कई खास उत्सवों के लिए भी इस महल का इस्तेमाल किया जाता था. मानसागर झील गर्भावती नदी पर बांध बनाकर बनाई गई थी ताकि शहर में पानी की आपूर्ति हो सके.
इस महल को पुनर्जीवित करके अब यहां एक नर्सरी भी बनाई गई है जिसमें एक लाख से ज़्यादा पेड़ हैं. जल महल को अब एक पक्षी अभयारण्य बना दिया गया है. हवा से पानी में उठने वाली हल्की तरंगों के बीच इस महल के आस-पास पक्षी भी नज़र आ रहे थे.
शांत झील के किनारे कुछ देर इस महल को निहारने के बाद हम आगे बढ़ गए.
3. आमेर का क़िला (Jaipur places to visit)
मुख्य सड़क पर आकर हमने टैक्सी कर ली. हमारा अगला पड़ाव था आमेर का क़िला. यहां से आमेर के किले की दूरी क़रीब 8 किलोमीटर थी. ट्रेफ़िक से गुज़रते हुए हम आधे घंटे में आमेर के लिए किले के पास तो आ गए पर यहां और ज़्यादा ट्रेफ़िक जाम था. किले के पास पहुंचने में हमें आधा घंटा और लग गया.
यह क़िला अम्बा देवी के नाम पर बना है जिसे पहले आम्बेर कहा जाता था जो बाद में आमेर (Amer) हो गया. किले को अकबर के सेनापति सवाई मानसिंह ने बनाया था इसलिए यहां इस्लामिक आर्किटेक्चर देखने को मिलता है. यहां बने दीवाने ए आम और दीवान ए खास इसकी बानगी हैं.
किले के चारों ओर 12 किलोमीटर की दीवार से क़िलेबंदी की गई है और इसमें जगह-जगह वाच पोईँट बने हैं. यहां अलग-अलग पोल यानी गेट बने हुए हैं. चाँद पोल से रजवाड़े के कर्मचारियों का प्रवेश होता था, सिंह पोल से वीर योद्धाओं का, गणेश पोल से राजा और उसके मेहमान ही अंदर जा सकते थे.
महल के बीच में केसर क्यारी बनी हुई है. कहा जाता है कि अपनी पत्नी के कहने पर मानसिंह ने यहां कश्मीर से लाकर केसर उगाने की कोशिश की. जो प्रयोग सफल नहीं हो सका.
इस किले की सबसे खास जगह है शीशे का बना एक महल जिसे शीश महल या दर्पण महल भी कहते हैं. कहा जाता है कि यहां लगे शीशे बेल्जियम से लाए गए हैं. दीवारों पर शीशे की शानदार कारीगरी आमेर किले का मुख्य आकर्षण है.
यहां बारादरी भी है. जहां नाच-गाने का कार्यक्रम होता था. साथ ही जयमंदिर और सुखनिवास भी यहां के कुछ आकर्षण हैं.
यहां से जयगढ़ क़िला भी एक गुप्तमार्ग से जुड़ा हुआ है. युद्ध जैसी स्थिति में इसी मार्ग से राजपरिवार के लोग जयगढ़ किले तक जाते थे.
साल में 20 लाख पर्यटक यहां आते हैं. इसे बनने में 100 साल से भी ज़्यादा समय लगा. किले के सामने एक झील नज़र आती है जिसे महावटा सरोवर कहा जाता है.
इस किले में क़रीब दो घंटे का समय कब बीत गया पता भी नहीं चला. अब हमें पहाड़ की दूसरी चोटी पर बने जयगढ़ और नाहरगढ किले तक जाना था.
4. जयगढ़ क़िला (Jaipur places to visit)
आमेर के किले से 11 किलोमीटर का सफ़र और तय करके हम एक बार फिर अरावली की पहाड़ी पर थे. जिस चोटी पर जयगढ़ का क़िला बना है उसे ‘चील का टीला’ कहा जाता है.
यह क़िला आमेर के किले की हिफ़ाज़त करने के लिए बनाया गया था. घुमावदार सड़क से होते हुए पहाड़ की चोटी पर आकर एक टिकिट काउंटर है जहां से किले के लिए टिकिट लेना होता है.
किले के एकदम अंदर तक सड़क जाती है. इसके मुख्यद्वार पर एक तोप रखी हुई है. दरअसल यह क़िला एक वक़्त में युद्ध से जुड़ी गतिविधियों का केंद्र था. यहां तोपख़ाना हुआ करता था जहां बड़ी-बड़ी तोपें बनाई जाती थी. ऐसी ही एक तोप इस किले में रखी हुई है जिसे एशिया की सबसे बड़ी तोप माना जाता है. यह जिस दरवाज़े पर रखी है उसे डूंगर दरवाज़ा कहा जाता है. पचास टन की यह तोप 31 फ़ुट 30 इंच की है.
किले के झरोखों से माओटा झील के नज़ारे भी देखने को मिलते हैं.
इस किले के बारे में कई रोचक कहानियां पढ़ने को मिलती हैं. कहा जाता है कि सवाई मान सिंह ने अपने नवाब अकबर से छिपाकर बहुत सारा ख़ज़ाना यहां छिपाया हुआ था. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जब सत्ता में थी तब सेना की टुकड़ी भेजकर किले के तहखानों में छिपे उस ख़ज़ाने को तलाशने की कोशिश भी की. कहानियां ऐसी भी हैं कि उस समय दो दिन के लिए जयपुर हाइवे को बंद करवा दिया गया और कुछ ट्रक जयपुर से दिल्ली आते हुए देखे गए. हालाकि ये कहानियां कितनी सच हैं यह खोज का विषय हो सकता है.
5. नाहरगढ़ किला (Jaipur places to visit)
जयगढ़ किले से निकलकर क़रीब 6 किलोमीटर का सफ़र तय करके हम आ गए नाहरगढ़ के किले में. इस किले को बनवाया था सवाई जय सिंह द्वितीय ने. नाहरगढ़ के किले के बाहर एक सीढ़ीदार बावड़ी बनी हुई है. इस बावड़ी में अब भी थोड़ा बहुत पानी मिल जाता है.
किले के अहाते में बना माधवेन्द्र भवन भी देखने लायक है. इसे सवाई माधो सिंह ने बनाया था. उनकी रानियों के लिए यहां 9 अलग-अलग कमरे बनाए गए थे. इन कमरों को आपस में इस तरह से जोड़ा गया है कि एक कमरे से दूसरे कमरे के आस-पास होने वाली किसी गतिविधि का पता ना चले.
कहा जाता है कि ऐसा इसलिए किया गया कि जब राजा एक रानी के पास हो तो दूसरी रानियों को इस बात की ख़बर न हो. अलग-अलग मौसम में रहने के लिहाज़ से दो मंज़िलों में बने माधवेन्द्र भवन में राजा के रहने के लिए भी अलग इंतज़ाम किया गया है.
इस किले में एक संग्रहालय भी है जहां वैक्स की बनी मूर्तियां रखी हुई हैं.
किले के अहाते में बड़े-बड़े कड़ाहे भी रखे गए हैं जो अपनी ओर ध्यान खींचते हैं.
नाहरगढ किले की खास बात लगी कि इसकी छत से पूरे जयपुर का बेहद शानदार नज़ारा दिखाई दे रहा था.
कैसे एक ऐतिहासिक इमारतों और किलों वाला शहर धीरे-धीरे एक आधुनिक में तब्दील हो गया यह एक अलग कहानी है. कंक्रीट के जंगल के बीच बची रह गई कुछ तालाब नुमा संरचनाएं अब भी अपने अतीत की याद दिला रही थी.
राजपूताना दौर की विरासतों से भरे अतीत का चक्कर लगाकर हम वापस लौट आए थे. जयपुर की यह यात्रा वाकई शानदार रही.