भारत का आखिरी गांव माणा (Mana Village Uttarakhand) घूमने के लिहाज़ से उत्तराखंड की बेहतरीन जगहों में से एक है। चमोली ज़िले के गोविंदघाट नाम के इलाके से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर बसा माणा, भारत का अंतिम गाँव कहा जाता है।
माणा गाँव (Mana Village) के छोर पर बने माणा दर्रे के बाद तिब्बत (चीन) की सीमा शुरू हो जाती है। अलकनंदा और सरस्वती नदी के संगम पर बने इस गाँव में हिमालय की ग्रामीण संस्कृति और ख़ूबसूरती दोनों देखने को मिलती है।
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माणा गाँव की यात्रा के लिए अहम पड़ाव
(Delhi to Mana village)
अपनी वैली ऑफ़ फ़्लावर्स (Valley of flowers) की यात्रा के दौरान हमने पहले इस गाँव और आस-पास के इलाके की यात्रा की। यहाँ पेश है भारत के अंतिम गाँव माणा की यात्रा के बारे में वो सबकुछ जो आपको जानना चाहिए।
दिल्ली से देवप्रयाग : अलकनंदा और भागीरथी नदी का संगम
पहला दिन , दिल्ली– देवप्रयाग, 24 जून 2016
वैली ऑफ़ फ़्लावर्स या फूलों की घाटी जाने की तमन्ना बहुत पुरानी थी. जून का महीना चल रहा था. साल था 2016. दिल्ली की गर्मी से कुछ दिनों की निजात ज़रूरी हो गयी थी. अपनी यात्राओं के साथी दानिश जमशेद से हुई बातचीत का नतीजा यह निकला कि हम सुबह के चार बजे बाइक पर सवार हो चुके थे.
अंधेरा छंटते-छंटते हम ग़ाज़ियाबाद से बिजनौर की तरफ़ जाने वाले हाइवे पर थे. सुबह-सुबह निकलने के दो फ़ायदे थे. एक तो गर्मी कम रहती है और इस वक़्त ट्रैफ़िक नहीं रहता तो समय भी बचता है.
क़रीब 310 किलोमीटर का सफ़र तय करके हम देवप्रयाग पहुँच चुके थे. व्यास मंदिर के इलाके के पास से हम गंगा नदी के किनारे-किनारे चल रहे थे जो आगे चलकर ऋषिकेश और हरिद्वार की तरफ़ बढ़ जाती है. गंगा को यह नाम देवप्रयाग में ही मिलता है.
इससे पहले देवप्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी नदियों का संगम है. यहां से ये नदियाँ आगे बढ़ती हुई गंगा के नाम से जानी जाती हैं. देवप्रयाग उत्तराखंड के पंचप्रयाग में से एक है इसलिए इसका धार्मिक महत्व भी है.

देवप्रयाग से पहले अलकनंदा नदी उत्तराखंड के इन पंचप्रयाग नाम से जानी जाने वाली जगहों में अलग-अलग नदियों से मिलती है. विष्णुप्रयाग में यह धौलीगंगा नदी से मिलती है. आगे चलकर नंदप्रयाग में यह नंदाकिनी नदी से मिलती है. कर्णप्रयाग में पिंडर और रूद्रप्रयाग में मन्दाकिनी नदी से मिलते हुए यह देवप्रयाग पहुँचती है.
यहां यह भागीरथी नदी से मिलती है और फिर गंगा के नाम से आगे बढ़ जाती है. इस तरह एक गंगा नदी कई नदियों की आत्मा को अपने साथ बहाती हुई एक विशाल नदी में तब्दील हो जाती है.
शाम हो चुकी थी. आज के सफ़र को यहीं विराम देने का वक़्त आ चुका था. थकान अब अपने चरम पर थी. एकदम सड़क से लगे एक होटल में हमने कमरा ले लिया. कुछ देर हम निढाल होकर बिस्तर पर पड़े रहे. कुछ घंटों के आराम के बाद जब थकान ने शरीर को अलविदा कहा तो भूख ने उसकी जगह ले ली.
गोविंदघाट : गांव माणा का करीबी क़स्बा (Village near Mana Village Uttarakhand)
माणा गाँव की यात्रा दूसरा दिन , देवप्रयाग– गोविंदघाट, 25 जून 2016 (Mana Village trip Day 2)
सुबह-सुबह हम आगे के सफ़र पर चल पड़े. आज हमें गोविंदघाट पहुँचना था जहां से हमारे पास दो विकल्प थे. एक बद्रीनाथ होते हुए चीन की सीमा से लगे भारत के आंखरी गाँव माणा तक जाने का. दूसरा विकल्प था वैली ऑफ़ फ़्लावर नेशनल पार्क का. हमने मन बना लिया था कि अपनी इस यात्रा में हम दोनों विकल्पों को शामिल करेंगे.
देवप्रयाग से कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग, नंदप्रयाग, जोशीमठ और चमोली होते हुए गोविंदघाट पहुँचने के लिए आज हमें क़रीब 193 किलोमीटर का सफ़र तय करना था. गोविंदघाट पहुंचते-पहुंचते शाम होने को आई थी. मौसम घिरा हुआ था. थकान भी अच्छी-ख़ासी थी. अलकनंदा और लक्ष्मण गंगा नदी के संगम पर बना यह एक छोटा क़स्बा है.
गोविंदघाट की अहमियत इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि यह फूलों की घाटी के साथ-साथ सिक्खों के पवित्र स्थल हेमकुंड साहिब और हिन्दुओं के तीर्थस्थान बद्रीनाथ दोनों की यात्राओं का प्रस्थान बिंदु है.

ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों की तलहटी में बसी इस जगह की पूरी अर्थव्यवस्था धार्मिक पर्यटन से चलती है. मुख्य सड़क के किनारे एक गुरुद्वारा बना हुआ है. कई तीर्थयात्री आगे की यात्रा के पड़ाव के तौर पर यहां रात बिताते हैं और अगली सुबह आगे बढ़ जाते हैं. हमने भी अपने रात के ठहरने के लिए एक होटल कर लिया.
रात को बिस्तर में लेटे हुए देर तक बिज़ली कड़कड़ाने की डरावनी आवाज़ आती रही. ज़्यादा बारिश हमारे हक़ में नहीं थी. हम यही दुआ करते हुए सो गए कि ‘जो गरजते हैं वो बरसते नहीं’ ये मुहावरा आज सच हो जाए.
बद्रीनाथ मंदिर : बद्रीनाथ वैली की यात्रा (Badrinath temple)
तीसरा दिन , गोविंदघाट–बद्रीनाथ–माणा– वासुधारा फ़ॉल–गोविंदघाट , 26 जून 2016 (Mana Village trip day 3)

सुबह-सुबह हम नेशनल हाइवे-58 पर अपने आगे के सफ़र के लिए रवाना हो गए. सड़क बीच-बीच में टूटी-फूटी थी. और हम लगातार ऊंचाई की तरफ़ बढ़ रहे थे. इस सड़क पर भूस्ख्लन का ख़तरा लगातार बना हुआ था. घुमावदार सड़क पर हम जैसे-जैसे ऊपर बढ़ रहे थे घाटी का विस्तार और खुल रहा था. हवा और ठंडी होती जा रही थी.
गोविंदघाट (Govindghat) की समुद्रतल से 1800 मीटर की ऊंचाई पर है. 25 किलोमीटर की दूरी तय करते हुआ जब हम बद्रीनाथ पहुंचे तो हम क़रीब 3300 मीटर की ऊंचाई तक आ गए थे. यहां से नीचे देखने पर शांति से बहती अलकनंदा नदी और उसके इर्द-गिर्द बसी सुंदर घाटी दिखाई दे रही थी.
गढ़वाल हिमालय की चोटियों से घिरा बद्रीनाथ एक शांत इलाका है. आस्थावान लोगों के लिए इस इलाके का महत्व बहुत ज़्यादा बढ़ जाता है क्योंकि यह हिंदू धर्म के मशहूर चार धामों में से एक है. भगवान विष्णु के इस मंदिर का स्थापत्य देखने लायक है. मंदिर के नीचे ही एक तप्त कुंड है जहां मौजूद गर्म पानी में श्रद्धालु डुबकी ज़रूर लगाते हैं.

बद्रीनाथ में कुछ देर बिताने के बाद हमने आगे बढ़ने का फ़ैसला किया.
भारत का आखिरी गांव माणा (Mana village Uttarakhand : Last village of India)

बिना देरी किए हम बढ़ गए क़रीब पांच किलोमीटर की दूरी पर बसे माणा गाँव की तरफ़. माणा गाँव इसलिए बड़ा अहम माना जाता है क्योंकि यह भारत और तिब्बत की सीमा पर बना गाँव है. इसे भारत का आंखरी गाँव भी कहा जाता है.
दिल्ली बद्रीनाथ हाइवे का अंत भी इसी माणा गाँव पर पहुँचकर होता है. माणा के शुरुआत में ही सेना की चौकी है जिसके सामने लगा बोर्ड ‘भारत के आंखरी गाँव’ में पहुंचने पर आपका स्वागत करता है. यहां अपनी मोटरसाइकिल पार्क कर हम गाँव की तरफ़ बढ़ गए. इस शांत पहाड़ी गाँव में दुकानें और चाय की टपरियां हैं. बढ़िया धूप खिली हुई थी. ऐसे ही एक टपरीनुमा ढाबे पर बैठकर कुछ देर हम चाय पीते रहे. साथ ही यहां हमने नाश्ता भी कर लिया.
माणा गाँव को आध्यात्मिक लिहाज़ से अहम माना जाता है। कहते हैं कि वेदव्यास जी ने गणेश भगवान के साथ मिलकर जो महाभारत लिखी वो जगह यहीं थी।
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गणेश गुफ़ा
गाँव में मौजूद गणेश गुफ़ा के बारे में कहा जाता है कि यहीं बैठकर भगवान गणेश ने वेद व्यास के कहे अनुसार महाभारत को लिखा।
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व्यास गुफ़ा
साथ ही, माणा में व्यास गुफ़ा भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि यह पाँच हज़ार साल पुरानी है और यहाँ वेद व्यास ने वेदों की रचना की।
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भीम पुल
इसके अलावा माणा के छोर पर भीम पुल है। कहते हैं जब पांडव अपने अंतिम समय में महाप्रस्थान के लिए निकले तो इसी पुल से होकर स्वर्गारोहिणी की तरफ़ गए।
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स्वर्गारोहिणी और सतोपंथ
इस पुल से आप पहाड़ों से छलछलाकर निकलती सरस्वती नदी को देख सकते हैं। माणा से स्वर्गारोहिणी और सतोपंथ जैसे अहम ट्रेक भी शुरू होते हैं।
वासुधारा फ़ॉल ट्रैक (Vasudhara fall trek from Mana village Uttarakhand)
यहां पता चला कि क़रीब 6 किलोमीटर का ट्रैक करके वासुधारा फ़ॉल नाम की जगह पर जाया जा सकता है. हम चलते-चलते माणा की आंखरी चाय की दुकान पर आ चुके थे. गाँव से गुज़रती एक सुंदर पगडंडी हमें यहां ले आई थी.
यहां पर एक छोटा झरना भी था. इस जगह को ही भीम पुल कहा जाता है। इसके इर्द-गिर्द राहगीरों के बैठने की जगह भी बनाई गई थी. झरने की तेज़ आवाज़ आस-पास गूँज रही थी. पास ही, एक दुकान थी जिसके साइन बोर्ड पर लिखा था ‘हिंदुस्तान की अंतिम दुकान’.

दुकान से कुछ आगे ही दूर एक सुंदर विस्तार दिखाई दे रहा था. उसी तरफ़ वासुधारा फ़ॉल के लिए रास्ता जा रहा था. कुछ देर चाय पीते हुए यहां सुस्ता लेने के बाद हमने क़रीब दो घंटे के इस ट्रैक पर चलने का मन बना लिया. दिन का एक बड़ा अभी हमारे पास था. ऐसे में समय रहते हम यह 12 किलोमीटर की यात्रा कर ही सकते थे.

बिना समय गँवाए हम आगे बढ़ गए. एक खड़ंजा था जो दूर जाता दिखाई दे रहा था. बहुत हल्की सी चढ़ाई पर हमें लगातार चढ़ते जाना था. वासुधारा वैली का खूबसूरत विस्तार रास्तेभर हमें नज़र आता रहा. चौखंबा, नीलकंठ और बालाकुन की पर्वत ऋणखलाएँ यहाँ से नज़र आ रही थी।
कुछ आगे सतोपंथ हिमानी के नज़ारे भी दिखाई देने लगे थे। क़रीब डेढ़ घंटा चलने के बाद हमें एक ऊँची चोटी से झरता हुआ यह खूबसूरत झरना नज़र आने लगा था. जब इस झरने के पास पहुंचे तो इसका उन्माद चौंका देने वाला था. क़रीब चार सौ फ़ीट ऊँची चट्टान से गिरते इस झरने से जो बूँदों की जो बौछार उठ रही थी वो कई मीटर दूर खड़े लोगों को भी भिगो दे रही थी. इसकी रफ़्तार इतनी थी कि झरने का पानी दूध की तरह सफ़ेद नज़र आ रहा था.

इस झरने के बारे में मान्यता है कि इस झरने में नहाकर वही सुरक्षित वापस आ सकता है जिसने कोई पाप न किए हों. हमारी ही तरह यहां कोई भी पापी नहीं था. सब एकदम सुरक्षित इस झरने के पास खड़े इसकी खूबसूरती को निहार रहे थे. मई के दूसरे हफ़्ते से नवम्बर तक यह खूबसूरत ट्रैक खुला रहता है क्यूंकी यही वो वक़्त है जब बद्रीनाथ के कपाट खुलते हैं और माणा तक आने वाला हाइवे चालू रहता है. इस वक़्त हम क़रीब 3600 मीटर की ऊंचाई पर थे. बद्रीनाथ के क़रीब होने की वजह से यहां लोगों की आवाजाही में कोई कमी नहीं थी.

क़रीब घंटाभर बिताकर हम यहां से लौट आए. आज हमें वापस गोविंदघाट भी लौटना था. इसके लिए हमें पहले छह किलोमीटर का ट्रैक करके माणा गाँव ( Mana Village) पहुँचना था और वहाँ से क़रीब 28 किलोमीटर की यात्रा करके गोविंदघाट पहुँचना था. ताकि हम अगले दिन फूलों की घाटी के लिए निकल सकें.
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