अक्षरधाम मंदिर दिल्ली ( Akshardham Temple Delhi) की उन जगहों में से एक है जो घूमने के लिहाज़ से बेहद खूबसूरत है। ‘अक्षर’ यानी कभी नष्ट न होने वाला। अपने नाम के अनुकूल ही अक्षरधाम के चप्पे-चप्पे पर भारतीय संस्कृति, ज्ञान और कला की जैसे एक पूरी दुनिया बसी है।
धार्मिक पर्यटन के लिहाज़ से दिल्ली (Delhi) का स्वामी नारायण अक्षरधाम मंदिर आज भारत की सबसे आकर्षक विरासतों में शुमार हो चुका है। नवम्बर 2005 में बना यमुना किनारे स्थित यह मंदिर भारतीय स्थापत्य और शिल्प कला का जीता-जागता सबूत तो यह है ही, पारम्परिक शिल्प में नई तकनीकों के मेलजोल के ज़रिये देश के गौरवशाली अतीत में झांकने की यह कोशिश, खुद में अनूठी है।
यही कारण है कि यह मंदिर दिल्ली में घूमने की अच्छी जगह बन गया है.
अक्षरधाम मंदिर का इतिहास
(History of Akshardham Temple)
स्वामी नारायण अक्षरधाम मंदिर (Swami Narayan Akshardham Temple Delhi) का शुभारंम 6 नवम्बर 2005 को हुआ। इसकी स्थापना प्रमुख स्वामी महाराज संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मान्यता प्राप्त धर्मिक संस्था बी.ए.पी.एस. के तत्वाधान में की गई। मंदिर भगवान स्वामीनारायण का स्मारक है।
भगवान स्वामी नारायण का जन्म 2 अप्रैल 1781 को नीलकनाथ वरनी के रूप में हुआ। बालब्रह्मचारी नीलकनाथ वरनी ने 7 वर्षों तक देशभर में लगातार तीर्थयात्राएं की और काई लोग उनके भक्त बन गए। बाद में नीलकनाथ ही भगवान स्वामी नारायण के रूप में जाने गए और उन्हें भारत के धर्मगुरू के रूप में विदेशों में भी ख्याति प्राप्त हुई।
स्वामीनारायण के इस मंदिर की खास बात यह है कि अंकोरवाट, अजन्ता, सोमनाथ, कोणार्क के सूर्य मंदिर आदि देश-विदेश के कई मंदिरों के स्थापत्य के अध्ययन और वेद, उपनिषद और भारतीय शिल्पकला सम्बंधी कई पुस्तकों से प्राप्त जानकारियों का प्रयोग करके इसका निर्माण किया गया है।
कैसे बना अक्षरधाम मंदिर
दिल्ली में यमुना नदी के पास की 100 एकड़ वीरान ज़मीन को ऐतिहासिक चमत्कार बना देने का सपना अक्षरधाम मंदिर के रूप में देखा गया। 40 साल के इस सम्भावित प्रोजेक्ट का डिज़ाइन महेश भाई देसाई और बी.बी. चौधरी ने तैयार किया।
सिकन्दरा (राजस्थान) के 40 गांवों में लगभग 7000 कारीगरों ने खानों से निकले टनों पत्थरों को तरासा-संवारा। हर तराशे गए टुकड़े पर नक्काशी करने के बाद उसको नम्बर दिया गया और ट्रकों के ज़रिये से पत्थर दिल्ली पहुंचाये गए।
दिल्ली में कारीगरों के पास एक जिक्साॅ पजल थी, जिसे नम्बरों के हिसाब से जोड़ दिया गया। ‘कहीं का ईट, कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा’ की तर्ज पर 40 साल का प्रोजैक्ट महज पांच साल में पूरा कर लिया गया। और दिल्ली को नई ऐतिहासिक, आध्यात्मिक और कई मायनों में आधुनिक विरासत मिल गई।
अक्षरधाम मंदिर अंदर से कैसा है
खूबसूरत महालय
कड़ी सुरक्षा जांच के बाद मंदिर परिसर में स्वागत कक्ष (रिसेप्सन) से आगे बढ़ने पर मुख्य स्मारक है। 141 फीट ऊंचा, 316 फीट चौड़ा, और 350 फीट लम्बा यह महालय गुलाबी पत्थर और शुद्ध सफ़ेद संगमरमर से बना है।
इसे 234 नक्काशी किए गए स्तम्भों (पिलर), 9 गुम्बदों और 20,000 मूतिर्यों से सजाया गया है। महालय का मुख्य आर्कषण 2600 किलोग्राम भारी, 11 फीट ऊंची स्वामी नारायण की मूर्ति है जिसके चारों ओर गुरू-शिष्य परम्परा को दर्साती अन्य मूर्तियां भी मौजूद हैं। इन सभी मूर्तियों पर सोने की परत चढ़ाई गई है।
भक्ति परम्परा को उकेरती दीवारें
इस मंदिर की बाहरी दीवार को मंडोवर कहा जाता है। जिसकी लम्बाई 611 फीट और चैड़ाई 21 फीट है। इस पूरी दीवार पर भारतीय भक्ति परम्परा को उकेरती 248 मूर्तिशिल्प हैं। यह पूरा मंदिर टिका है गजेन्द्र की पीठ पर।
गजेन्द्रपीठ 30,000 टन पत्थरों से बनी 1070 फीट लम्बी, लगभग 148 हाथियों की शिल्प श्रृंखला है। जिस पर हाथियों की कहानियों से जुड़े 80 अलग-अलग दृश्य दरसाए गए हैं।
दो मंजिला परिक्रमा पथ
मंदिर परिसर के चारों ओर दो मंजिला परिक्रमा पथ है। ऊपरी मंजिल को नारायणपीठ कहा जाता है, जिस पर बना धातुशिल्प स्वामीनारायण की तीर्थ यात्रा का दृश्य उकेरता है। परिक्रमा पथ में 145 झरोखे बने हैं जिन पर खड़े होकर अक्षरधाम के चारों ओर का सुंदर नजारा देखा जा सकता है।
परिक्रमा पथ के बीच नारायण सरोवर है जहां 151 तीर्थों और नदियों का पानी भरा गया है, यही कारण है कि अक्षरधाम को पवित्र तीर्थ स्थल भी माना जाने लगा है।
भारत के सबसे बड़े कुण्ड : यज्ञपुरूष कुण्ड
सरोवर के चारों और धातु के बने 180 गायों के मुंह से सरोवर में लगातार गिरती जलधाराएं अलग आर्कषण रखती हैं। परिक्रमा पथ में ही नीलकण्ठ ब्रहमचारी की मूर्ति वाला अभिषेक मण्डप है, जहां जलाभिषेक किया जाता है।
परिक्रमा करते हुए हम पहुंचते है भारत के सबसे बड़े कुण्ड, यज्ञपुरूष कुण्ड में। भारतीय कुण्ड परम्परा की याद दिलाने वाने इन स्थानों पर फव्वारों का अलग आर्कषण है जो रात के समय और भी खुबसूरत दिखाई देता है। कुण्ड के पास 27 फीट ऊंची बालयोगी नीलकंठ की धातु की बनी मूर्ति भी देखने लायक है।
खूसबूरत बगीचे
परिक्रमा पथ के अन्तिम छोर में पहुंचने के बाद कमल के फूल के आकार में बना सुन्दर बग़ीचा है। हरी-हरी घास के बीच बना अष्टदल कमल, यहां मौजूद शिलालेखों के ज़रिये पवित्र भावनाओं का अहसास कराता है। सुन्दर नज़ारों का यह सिलसिला थमने का नाम ही नहीं लेता।
दसों-दिशाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले दश द्वार, 208 दृश्यों के जरिये सनातन धर्म परम्परा को दिखाने वाला भक्तिद्वार और 869 नाचते मोरों की आकृतियों से सजा मयूरद्वार भी अक्षरधाम में खास आर्कषण रखने वाले स्थान है।
22 एकड़ में फैला भारत उपवन
मंदिर की खूबसूरती में चार चांद लगाता है 22 एकड़ में फैला भारत उपवन, जहां आठ-आठ फीट ऊंची 64 मूर्तियों के ज़रिए भारत के स्वाधीनता सैनानियों, वैज्ञानिकों, विद्वानों तथा विदुषियों की यादें ताज़ा हो जाती हैं। बगीचे में घूमते हुए भारतीयता में पगे होने का गौरवशाली अहसास होने लगता है।
सात रंगों के प्रतीक सात घोड़ों वाला सूर्य रथ और चंद्रमा की सोलह कलाओं के प्रतीक, हिरण, भी हरें भरे बाग-बगीचे के बीच बरबस ध्यान खींच लेते हैं।
अक्षरधाम मंदिर टिकिट प्राइस
(Akshardham Temple ticket Price)
- वयस्कों के लिए 170 रुपए प्रति व्यक्ति (प्रदर्शनी)
- बच्चों के लिए 100 रुपए प्रति व्यक्ति (प्रदर्शनी)
- सीनियर सिटीज़न के लिए 125 रुपए प्रति व्यक्ति (प्रदर्शनी)
- वयस्कों के लिए 80 रुपए प्रति व्यक्ति (म्यूज़िकल फ़ाउंटेन)
- बच्चों के लिए 50 रुपए प्रति व्यक्ति (म्यूज़िकल फ़ाउंटेन)
- सीनियर सिटीज़न के लिए 80 रुपए प्रति व्यक्ति ((म्यूज़िकल फ़ाउंटेन)
अक्षरधाम मंदिर की प्रदर्शनी और लाइट एंड साउंड शो
(Akshardham Temple sound and light show)
मुफ़्त में इतना सबकुछ देख लेने के बाद अगर आपका मन न भरा हो और आप कुछ पैसे खर्च कर सकते हैं तो आपका सफ़र अभी खत्म नहीं हुआ है। केवल 170 रू. खर्च करके आप अपनी इस यात्रा की स्मिृतयों में और रंग भर सकते हैं।
प्रदर्शनी हाॅल के वातानुकुलित परिसर में आधुनिक तकनीक के ज़रिये पुरानी संस्कृति को नजदीक से देखना अलग अनुभव साबित होता है।
ऐनिमैट्रोनिक्स तकनीक के सहारे कंप्यूटराइज्ड उच्चारण और हावभाव दर्शाते पुतले हों या साउंडडायोरामा के ज़रिये उच्च कोटि के लाइट-साउंड समायोजन से बनी 3-डी स्क्रीन पर दिखाई जाने वाली फिल्में आदि देखकर लगता है कि यह सच नहीं सपना है।
विश्वास होने ही लगता है कि फिर एक अविश्वसनीय दुनिया नज़र आने लगती है। नाव पर बैठे-बैठे ही 10 हजार साल पुराने दौर में पहुंच जाना।
क्या टाइम-मशीन के बिना भी इसकी कल्पना की जा सकती है? भरोसा हो या न हो यह सम्भव है। दुनिया की सबसे पुरानी यूनीवर्सिटी तक्षशिला, सुश्रुत का प्राचीन अस्पताल ’नागार्जुन’ की प्रयोगशाला और इन सब पर मानव सभ्यता को जीवंत करते 800 पुतलों को देखते हुए महसूस होता है के हम सालों पुरानी उस भारतीय सभ्यता के अंग बन गये हैं।
अक्षरधाम मंदिर में खाने का इंतज़ाम भी है
(What to eat in Akshardham temple)
अक्षरधाम के पूरे अहाते में घूमते हुए कब घंटो बीत जाते हैं पता ही नहीं चलता। यहां ऐसा शान्त और शाीतल वातावरण है कि मीलों लम्बे परिसर में चलते-चलते भी थकान की शिकन चेहरे पर नहीं दिखती।
लेकिन अगर आपको भूख लग आई हो तो मंदिर के बाहर खाना तलाशने या घर से ढोकर ले जाने की ज़हमत भी नहीं उठानी पड़ती है। यहां आपको हर तरह का खाना मिल जाएगा।
साफ-सुथरे प्रेमवती आहार गृह में 10 रू. से लेकर 300 रू. तक हर किस्म का खाना मिल जाता है। सैंडविच, समौसे बर्गर से लेकर तरह-तरह के व्यंजनों से सजी स्पेशल थाली तक यहां मौजूद है।
पोपकौर्न, कोल्डड्रिंक और आइस्क्रीम जैसी यूथ के मतलब की हल्की-फुल्की चीज़ें भी यहां आसानी से मिल जाती है। आराम से धूप में बैठकर भी खाने का लुत्फ उठाया जा सकता है।
कुछ शॉपिंग हो जाए
(Shopping in Akshardham Temple Delhi)
अपने घर में बने मंदिर के लिये सुन्दर नक्काशी वाला धातु का मंदिर खरीदना हो या दादा-दादी के लिये धार्मिक-किताबें, दोस्तों को खास तरह का पैन गिफ्ट करना हो या रिश्तेदारों को नए साल के ग्रीटिंग भेजने हों, तो जनाब अक्षरधाम हाट आप ही के लिए है।
इस सुंदर शाॅपिंग कॉम्प्लेक्स में युवाओं के लिए तो ऐसेसरीज की भरमार है। चेन, नैकलेस, मोतियों की मालाएं, हैंडबैग जैसे सैकड़ों आइटम रियायती दामों पर इस हाट से खरीदे जा सकते हैं। अब अगर किसी को खास गिफ्ट देने का मूड हो या जाते-जाते अक्षरधाम की यादगार के रूप में कुछ भी खरीदना हो तो इस हाट में आपके ठाट-बाट का पूरा ध्यान रखा जायेगा। चिन्ता न करें।
1. अक्षरधाम मंदिर में एंट्री बिल्कुल फ़्री, प्रदर्शनी और लाइट एंड साउंड शो के लिए देने होते हैं पैसे
2. वाहनों के लिये पार्किग सुविधा है
3. सुरक्षा के लिहाज से मोबाइल, कैमरा, रिकॉर्डर और कोई भी इलेक्ट्रॉनिक सामान प्रतिबन्धित
अक्षरधाम मंदिर कब बंद रहता है
सोमवार को छोड़कर किसी भी दिन आप अक्षरधाम घूमने का प्लान बना सकते हैं। अक्षरधाम मंदिर सोमवार को बंद रहता है.
अक्षरधाम मंदिर दिल्ली टाइमिंग
(Akshardham Temple Delhi timing)
अक्षरधाम मंदिर की टाइमिंग का खयाल ज़रूर रखें. यहां आप सुबह 9.30 बजे से शाम 6.30 बजे तक प्रदर्शनी का आनन्द उठा सकते हैं। लेकिन अक्टूबर से मार्च तक शाम 5 बजे ही प्रदर्शनी हाॅल बंद हो जाता है। यहां जाने से पहले टिकट खरीदना न भूलें।
संगीतमय फव्वारों की लय में झूमने के लिए शाम के ठीक 6 बजकर 45 मिनट पर वहां पहंच जाएं। आहारगृह में खाने का लुफ्त 11 बजे से रात 10 बजे तक उठाया जा सकता है।
0 Comments
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(January 4, 2009 - 9:07 am)where you come from!
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(January 7, 2009 - 3:05 am)Very rich and interesting articles, good BLOG!