पाताल भुवनेश्वर गुफा (Patal Bhuvaneshwar cave) उत्तराखंड की पहाड़ी वादियों के बीच बसे सीमान्त कस्बे गंगोलीहाट में मौजूद किसी आश्चर्य से कम नही है। यहां पत्थरों से बना एक-एक शिल्प तमाम रहस्यों को खुद में समेटे हुए है।
मुख्य द्वार से संकरी फिसलन भरी 80 सीड़ियां उतरने के बाद एक ऐसी दुनिया नुमाया होती है जिसके बारे में मान्यता है कि यहां युगों-युगों का इतिहास एक साथ प्रकट हो जाता है। गुफा में बने पत्थरों के ढांचे संगतराशी की कला की एक शानदार मिसाल पेश करते हैं.
पाताल भुवनेश्वर गुफा के बारे में मान्यताएं
(History of Patal Bhuvaneshwar cave )
मान्यताएं सच हों ये ज़रूरी नहीं होता. सच हों या फ़साना, पाताल भुवनेश्वर गुफा के हर कोने के बारे में कई मान्यताएं प्रचलित हैं.
कहा जाता है कि इस गुफा को त्रेता युग में राजा ऋतुपर्ण ने सबसे पहले देखा। द्वापर युग में पाण्डवों ने यहां चौपड़ खेला और कलयुग में जगदगुरु शंकराचार्य का 822 ईसवी सन के आसपास इस गुफा से साक्षात्कार हुआ तो उन्होंने यहां तांबे का एक शिवलिंग स्थापित किया।
इसके बाद चन्द राजाओं ने इस गुफा के विषय मे जाना और आज देश -विदेश से सैलानी यहां आते हैं और गुफा के स्थापत्य को देख दांतो तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाते हैं।
अंदर से कैसा है पाताल भुवनेश्वर मंदिर
(Patal Bhuvaneshwar cave tour)
सच चाहे कुछ भी हो पर एक बारगी गुफा में बनी आकृतियों को देख लेने के बाद उनसे जुड़ी मान्यताओं को मान लेने का मान करता है। गुफा की शुरुआत में शेषनाग के फनों की तरह उभरी संरचना पत्थरों पर नज़र आती है। मान्यता है कि धरती इसी पर टिकी है।
आगे बड़ने पर एक छोटा सा हवन कुंड दिखाई देता है। कहा जाता है कि राजा परीक्षित को मिले श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए उनके पुत्र जन्मेजय ने इसी कुण्ड में सभी नागों को जला डाला परंतु तक्षक नाम का एक नाग बच निकला जिसने बदला लेते हुए परीक्षित को मौत के घाट उतार दिया। हवन कुण्ड के ऊपर इसी तक्षक नाग की आकृति बनी है।
आगे चलते हुए महसूस होता है कि हम किसी की हड्डियों पर चल रहे हों। सामने की दीवार पर काल भैरव की जीभ की आकृति दिखाई देती है। कुछ आगे मुड़ी गरदन वाला गरुड़ एक कुण्ड के ऊपर बैठा दिखई देता है। माना जाता है कि शिवजी ने ने इस कुण्ड को अपने नागों के पानी पीने के लिये बनाया था।
इसकी देखरेख गरुड़ के हाथ में थी। लेकिन जब गरुड़ ने ही इस कुण्ड से पानी पीने की कोशिश की तो शिव जी ने गुस्से में उसकी गरदन मोड़ दी।
कुछ आगे ऊंची दीवार पर जटानुमा सफ़ेद संरचना है। यहीं पर एक जलकुण्ड है।। मान्यता है कि पाण्डवों के प्रवास के दौरान विश्वकर्मा ने उनके लिये यह कुण्ड बनवाया था। कुछ आगे दो खुले दरवाजों के अन्दर संकरा रास्ता जाता है। कहा जाता है कि ये द्वार, धर्म द्वार और मोक्ष द्वार हैं।
आगे ही है आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित तांबे का शिवलिंग। माना यह भी जाता है गुफा के आख़री छोर पर पाण्डवों ने शिवजी के साथ चौपड़ खेला था। लौटते हुए एक स्थान पर चारों युगों के प्रतीक चार पत्थर हैं। कहा जाता है कि इनमें से एक एक धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा है।
माना जाता है कि यह कलयुग है और जब यह दीवार से टकरा जायेगा तो प्रलय हो जायेगा। गुफा की शुरुआत पर वापस लौटने पर एक मनोकामना कुण्ड है। मान्यता है कि इसके बीच बने छेद से धातु की कोई चीज पार करने पर मलोकामना पूरी होती है।
शांति की तलाश में यहाँ आते हैं पर्यटक
आश्चर्य ही है कि जमीन के इतने अन्दर होने के बावजूद यहां घुटन नहीं होती शांति मिलती है। देवदार के घने जंगलों के बीच बसी रहस्य और रोमांच से सराबोर पाताल भुवनेश्वर की गुफा की सैलानियों के बीच आज एक अलग पहचान है। कुछ श्रृद्धा से, कुछ रोमांच के अनुभव के लिये और कुछ शीतलता और शान्ति की तलाश में यहां आते हैं।
पाताल भुवनेश्वर गुफा (Patal Bhuvaneshwar cave) के पास हरे भरे वातावरण में सुन्दर होटल भी पर्यटकों के लिये बने हैं। खास बात यह है कि गंगोलीहाट में अकेली यही नहीं बल्कि दस से अधिक गुफाएं हैं जहां इतिहास की कई परतें, मान्यताओं के कई मूक दस्तावेज खुद-ब-खुद खुल जाते हैं। आंखिर यूं ही गंगोलीहाट को गुफाओं की नगरी नहीं कहा जाता।
पाताल भुवनेश्वर के आस-पास क्या करें
(Thigs to do around Patal Bhuvaneshwar )
हिमालय की श्रृंखलाओं को यहां नजदीक से देखा जा सकता है
गंगोलीहाट का प्रसिद्ध महाकाली मन्दिर यहां से बहुत पास है
सर्दियों में बर्फ़ का लुत्फ भी यहां उठाया जा सकता है
अल्मोड़ा से पाताल भुवनेश्वर की दूरी क़रीब 109 किलोमीटर है और पिथौरागढ से क़रीब 90 किलोमीटर है
पाताल भुवनेश्वर कैसे पहुंचें
(How to reach Patal Bhuvaneshwar)
दिल्ली से गंगोलीहाट तक सीधी बस सेवा है। गंगोलीहाट से टैक्सी लेकर एक घंटे में यहां पहुंचा जा सकता है या फिर आप काठगोदाम रेलवे स्टेशन तक ट्रेन में आ सकते हैं और वहां से कैब या शेयर्ड टैक्सी लेकर भी गंगोलीहाट पहुंच सकते हैं.
उमेश पंत यात्राकार के संस्थापक-सम्पादक हैं। यात्रा वृत्तांत 'इनरलाइन पास' और 'दूर दुर्गम दुरुस्त' के लेखक हैं। रेडियो के लिए कई कहानियां लिख चुके हैं। पत्रकार भी रहे हैं। और घुमक्कड़ी उनकी रगों में बसती है।
2 Comments
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(January 4, 2009 - 9:07 am)can u leave ur phone number to me???
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(January 7, 2009 - 3:05 am)After reading the information, I may have different views, but I do think this is good BLOG!