उत्तराखंड अपनी ख़ूबसूरती के लिए तो मशहूर है लेकिन यहाँ के व्यंजन उतने मशहूर नहीं हो पाए। हांलाकि अब पर्यटकों के बीच पहाड़ी खाने के बारे में जानने और उनका स्वाद लेने का चलन बढ़ रहा है। आइए आज आपको बताते हैं इन्हीं पहाड़ी व्यंजनों के बारे में जो स्वादिष्ट तो हैं हीं लेकिन पौष्टिक और भी ज़्यादा है।
आज आपको ऐसे पहाड़ी पकवानों के बारे में बताते हैं जिनका स्वाद उनके साथ जुड़े हुए अपनेपन से ज्यादा बढ़ जाता है। साउथ इन्डियन या पंजाबी खाना तो मैट्रो शहरों में भी फेमस है पर हमारे देश के हर इलाके के कई ऐसे पकवान या व्यंजन हैं जिनका अस्तित्व बस उन्हीं इलाकों तक सिमटा हुआ है। और उनमें स्थानीयता का एक गहरा भाव जुड़ा हुआ है। सम्भव है इनका स्वाद अपनी स्थानीयता में ही हो। लेकिन कई बार इस तरह के व्यंजन कई तरह के प्रभावों की वजह से प्रचलन से बाहर चले जाते हैं। मसलन फास्टफूड का कल्चर गांवों में भी अपनी दखल बना चुका है। जैसे मैगी, चाउमीन, मोमो जैसी चीजें गांव घरों तक जा पहुंची हैं जिसमें गलत जैसा कुछ नहीं है। लेकिन इन खाद्य पदार्थों ने स्थानीय व्यंजनों के लिये लोगों के रुझान को कम किया है।
हम जैसे लोग जो घर से बाहर रह रहे हैं वो घर जाते हैं तो उनमें इस तरह के स्थानीय खाने का क्रेज रहता है। क्योंकि यहां दिल्ली में तो ये खाना मिल नहीं पाता। लेकिन गांवों या कस्बों में ये पकवान बनने बंद होने लगें तो ये चिन्ता की बात हो सकती है। तो पेश हैं कुछ ऐसे पहाड़ी पकवान जिनके बारे में आपको न केवल जानना चाहिए बल्कि मौक़ा लगे तो इनका ज़ायक़े का लुत्फ़ भी ज़रूर लेना चाहिए।
भटिया

नाम बड़ा अटपटा सा जरुर है पर कुमांउं में इस डिस का बड़ा क्रेज है बाईगौड। किसी भी कुंमाउंनी से पूछियेगा कि भटिया खाया है कभी। तो आपकी ओर हैरानी से देखेगा। भटिया ना खाया हो ऐसा हो कैसे सकता है। और अगर कोई कुमाउनी ये कहे कि उसने भटिया कभी नहीं खाया तो उसके कुमाउनी होने पर आप मेरी तरफ से शक कर लीजियेगा। यहां तो हफ्ते में एक बार भटिया हर घर में बनता ही है। मिर्च और नमक को धनिये के साथ पीसकर बने नमक के साथ भटिया खाने का अपना मजा है। साथ में झोली और पालक की सब्जी हो और भांग की चटनी परोस दी जाये तो मजा आ ही जाता है। खैर मम्मी ने जो भट पीसे थे उनका आज मेरे घर में भी भटिया ही बना है।
भट की चुड़कानी

वैसे भट के इन दानों से एक और पहाड़ी डिश बनती है। । चुड़कानी माने होता है बिल्कुल गर्म। भट की चुड़कानी को गर्म गर्म ही परोसा जाता है। लेकिन इसको बनाने के लिये भटिये की तरह भट भिगाये नहीं जाते। बल्कि उन्हें भूना जाता है और फिर प्याज और आटे के साथ इन भूने हुए दानों को एक बार फिर भूनकर बनाई जाती है भट की चुड़कानी।
चूख सान

चूख, माल्टा और नारंगी को छीलकर उसके फेसे निकाल लिये जायें और फिर उन फेसों के भी छोटे-छोटे टुकड़े कर लिये जांयें। और फिर इसमें मिलाया जाये मिर्च, नमक और धनिये के साथ पिसा हुआ नमक और चीनी। और हाथ से अच्छी तरह मिलाकर चटख धूप में इसे खाया जाये। फिर देखिये। सेंटर शौक खाकर जो मीठा मीठा-सा, खट्टा शौक लगता है वो इसके सामने कुछ नहीं होगा।
बड़ी की सब्जी
बड़ी की सब्जी भी पहाड़ी लोगों की एक चहेती डिस है। वो रामलीलाओं से कुछ दिन बाद का समय होता है जब घरों में एक काम बड़े स्तर पर किया जा रहा होता है। अब तक पीली पड़ चुकी ककड़ियों को कद्दू कस में कोरने का काम। इन ककड़ियों को कोरने के बाद मास को पीसा जाता है और इसमें कोरी हुई ककडियों को मिलाकर बनाई जाती है छोटी छोटी बड़ियां। छोटी-बड़ी। वाह। और फिर ये छोटी बड़ियां सुखाई जाती हैं धूप में। फिर डब्बों में भर भर कर इन्हें साल भर तक सब्जी बनाने के काम में लाया जाता है।
सिंगल

यह एक ठेठ पहाड़ी पकवान है। त्यौहारों के मौकों में पकवान तो हमारे देष के हर हिस्से में बनते ही हैं। सिंगल भी एक ऐसा ही पहाड़ी पकवान ठहरा। सिंगल को बनाने का तरीका कुछ कुछ जलेबी बनाने के तरीके से मिलता है। लेकिन होता ये जलेबी से बिल्कुल अलग है। सूजी या चांवल के आटे को दही के साथ घोलकर इसमें चीनी मिला ली जाती है। और इस घोल को जलेबी के स्टाइल में हाथों से घुमाकर तेल या घी में भून लिया जाता है। लेकिन सिंगल बनाने के लिये खास तरह की टैक्नीक चाहिये। वरना इसका हलवा बनते देर नहीं लगती।
मौणिया
यह चांवल के आटे से बनाया जाता है। सूखा हलवा टाईप कुछ। कई लोग इसे साया भी कहते हैं। मौड़िये में भी दही का इस्तेमाल किया जाता है। हम लोग अक्सर शाम के नास्ते में चाय के साथ इसे खाया करते थे।
जौला
इसे आप पथ्य कह सकते हैं। यानी बीमारों को दिया जाने वाला खाना। पर मुझे जौला बड़ा पसंद है। चांवल और मट्ठे को मिलाकर बनता है जौला। कुछ कुछ खिचड़ी जैसा। पर इसमें बांकी किसी तरह की दाल वाल नहीं मिलाई जाती। बस घी में जीरे या धनिये का छौंक लगा दिया जाता है और चांवल में और मट्ठा मिलाकर हल्के से मसाले के साथ दो तीन सीटी लगाकर कूकर में पका दिया जाता है और जौला तैयार।
पिनालू के गुटके
दरअसल पिनालू यानी अरबी को उबालकर उसके छोटे छोटे टुकड़े बनाकर उसे तेल में छौंककर बनाये जाते हैं। अपने स्वाद से नमक मिर्च मसाला डाला जा सकता है। लेकिन अगर छौंकने मन न हो तो गरम गरम पिनालू बस धनिये में पिसे हुए नमक के साथ भी खाये जा सकते हैं। साथ में चाय हो तो और ही बात है।
डुबका
यह चने की दाल से बनता है। काले चने को रात में भिगाकर सुबह उन्हें पीस लिया जाता है। और प्याज टमाटर के साथ छौंककर उसमें पानी मिलाकर बन जाता है डुबका।
पालक का कापा
पालक को अच्छे से घोटकर और इसमें बिस्वार (चावल का आटा) मिलाकर बनाया जाने वाला पालक का कापा सर्दियों में न केवल गर्माहट देता है बल्कि स्वादिष्ट भी होता है।
गहत की दाल और गडेरी
गहत जिसे कुलिथ या कुल्थी भी कहा जाता है उसमें गडेरी मिलाकर यह दाल बनाई जाती है। यह दाल न केवल पौष्टिक होती है बल्कि इसका स्वाद उँगली चाटने को मजबूर कर देता है।
ये कुछ पहाड़ी व्यंजन हैं जिन्हें आपको एक न एक बार खाकर ज़रूर देखना चाहिए। इस बार उत्तराखंड जाएं तो इन व्यंजनों की फ़रमाइश करें और फिर बताएँ आपको इनका स्वाद कैसा लगा।
बहुत बढिया पोस्ट. बधाई.
लालच दिलवा दिलवा कर मार डाला….एक से एक पकवान और खाने के लजीज तरीके..गज़ब की पोस्ट…आभार!!
Thank you for a great article – straight from the heart (to the stomach). But you are absolutely correct. For some of us who live outside the country, even a “cutting” chai is like an elaborate dish that we pine for.