Agnigadh Park

असम के तेजपुर में घूमने की ख़ास जगहें

लहराती हुई विशाल ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी किनारे पर बसे तेजपुर शहर को असम की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है. अपने मंदिरों, घाटों और हज़ारों साल पुरानी स्थापत्य कला के अवशेषों के लिए मशहूर पूर्वोत्तर भारत का ये शहर असम का पांचवा सबसे बड़ा शहर है. अरुणांचल प्रदेश के पहाड़ों की तलहटी पर बसा तेजपुर अपनी भौगोलिक बसावट की वजह से सामरिक दृष्टि से भी खास अहमियत रखता है. तेजपुर को ‘सिटी ऑफ रोमांस’ यानी मोहब्बत का शहर भी कहा जाता है और इस नाम के पीछे छिपा है शहर से जुड़ी मिथक कथाओं का एक रोमांचक क़िस्सा.

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तेजपुर के नाम के पीछे छिपी है एक खास कहानी

 

Ganesh Ghat Tejpur
Ghanesh ghat Gate of Tejpur

 

तेजपुर को शोणितपुर भी कहा जाता है. संस्कृत के शब्द शोणित का मतलब है लाल रंग. असम की लोकथाओं में मान्यता है कि तेजपुर भगवान शिव के अनन्य भक्त बाणासुर की राजधानी हुआ करता था. बाणासुर की पुत्री उषा बेइन्तहां खूबसूरत थी और उसे लोगों की नज़र से बचाने के लिए बाणासुर ने अग्निगढ़ नाम के अपने किले में कैद कर लिया था.

उषा सपने में एक पुरुष को देखा करती थी और मन ही मन उससे प्यार कर बैठी थी. ये बात उसने अपनी सहेली चित्रलेखा को बताई. चित्रलेखा ने उषा के कहे मुताबिक़ उस पुरुष का एक चित्र बनाया. और उसे खोज लाई. वो पुरुष अनिरुद्ध था जो भगवान कृष्ण का पोता था. उषा और अनिरुद्ध ने गन्धर्व विवाह कर लिया.

चित्रलेखा ने अग्निगढ़ के किले में उषा और अनिरुद्ध को मिला तो दिया लेकिन जब ये बात बाणासुर को पता चली तो उसने अनिरुद्ध को बंदी बना लिया. अनिरुद्ध को छुड़ाने के लिए कृष्ण ने तेजपुर पर धावा बोल दिया. बाणासुर ने भगवान शिव से मदद की गुहार लगाई और फिर हुआ दो भगवानों के बीच एक महासंग्राम जिससे तेजपुर की धरती खून से रंग गई.

महासंग्राम के बाद लहूलुहान हुई यह धरती तभी से तेजपुर के नाम से मशहूर हो गई. उषा और अनिरुद्ध के अलौकिक प्यार की याद में इसे ‘रोमांस का शहर’ भी कहा जाने लगा.


तेजपुर में घूमने के लिए कई झीलें, उद्यान, घाट और मंदिर हैं

 

असम के सबसे अहम शहरों में शुमार तेजपुर में घूमने के लिए हर तरह की जगहें है। झील, बगीचे, ब्रह्मपुत्र नदी के घाट और कई प्राचीन मंदिर तेजपुर को बेहद ख़ास पर्यटक स्थल बना देते हैं। यहाँ पेश हैं तेजपुर के ख़ास पर्यटक स्थल जहां आपको ज़रूर जाना चाहिए।

 

  • अग्निगढ़

पहाड़ की चोटी पर बने अग्निगढ़ की मूर्तियों से न केवल भगवान शिव और कृष्ण के युद्ध की कहानी ताज़ा हो जाती है बल्कि चोटी पर बनी मचान से ब्रह्मपुत्र नदी की अद्भुत छटा भी देखने को मिल जाती है. कहा जाता है कि बाणासुर की बेटी उषा की सुरक्षा के लिए यह किला हमेशा आग की सुरक्षा दीवार से घिरा रहता था इसलिए इसका नाम अग्निगढ़ पड़ा. 

 

  • दा पारबतिया

यह चौथी शताब्दी का एक मंदिर है। यहां पर गुप्त वंश के दौर की निर्माणकला के नमूने देखे जा सकते हैं। यहां जो द्वार बना है वो 600 ईसवी सन का माना जाता है। इसे आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के द्वारा संरक्षित भी किया गया है।

 

  • बामुनी हिल्स

 बामुनी हिल्स में नवीं और दसवीं सदी के कलात्मक अवशेष देखने को मिलते हैं.  यहां मूर्तियों के अवशेष रखे हैं जिनसे पुराने समय की अद्भुत मूर्तिकला का परिचय मिल जाता है। पत्थरों पर की गई चित्रकारी में भगवान विष्णु के दस अवतारों को भी यहां दर्शाया गया है।

  • चित्रलेखा उद्यान

चित्रलेखा उद्यान शहर के बींचोंबीच बना एक खूबसूरत पार्क है। इसे स्थानीय लोग कोल पार्क भी कहते हैं। खूबसूरत झील के इर्द-गिर्द बने इस पार्क को ब्रिटिश सरकार ने 1906 में बनाया। इस पार्क में ओपन एयर थिएटर भी बनाया गया है। साथ ही बोटिंग करने की भी व्यवस्था है।

झील के किनारे हरे-भरे पेड़ों और फूलों की क्यारियों के बीच बनी पगडंडियों पर शाम की वॉक का मज़ा लेते यहां स्थानीय लोगों और पर्यटकों को अक्सर देखा जा सकता है। इस पार्क में भोमोरागुरी के भित्तिचित्र की भी प्रदर्शनी लगाई गई है। इन भित्ति चित्रों को देखने से अहोम वंश के राजा कालिया भोमोरा की ब्रह्मपुत्र पर एक विशाल पुल बनाने की योजनाओं में बारे में पता चलता है।

 

  • पदुम पोखरी

पदुम पोखरी नाम की सुन्दर झील भी यहां है जिसपर एक खूबसूरत टापू बना है. इस टापू को अब एक पार्क में तब्दील कर दिया गया है। पदुम यानी कमल और पोखरी यानी तालाब। कुछ लोग इसे कमल तालाब  भी कहते हैं। इसके अलावा शहर के बीचों-बीच बोर पोखरी नाम का एक तालाब भी है।

कहा जाता है कि ये दोनों जुड़वा तालाब यहां के बाण राजा और उनकी बेटी उषा की यादगारी हैं। पदुम पोखरी में लोहे का एक पुल इस टापू से ज़मीन के मुख्य भाग को जोड़ता है. झील के किनारे टॉय ट्रेन की यात्रा और पैडलिंग का भी मज़ा लिया जा सकता है.  

 

  • कनकलता उद्यान

भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान शहीद हुई कनकलता की याद में बना कनकलता उद्यान जिसे ओगुरी हिल भी कहा जाता है, पर्यटकों के बीच लोकप्रिय है. असम की कनकलता बरुआ मृत्युबाहिनी नाम के एक संगठन से जुड़ी थी। भारत छोड़ो आंदोलन के दौर में इस दल ने तिरंगे झंडे को लहराते हुए एक शांति मार्च करने का फैसला लिया।

ब्रिटिश प्रशासन ने इसके गंभीर नतीजे भुगतने की चुनौती दी लेकिन कनकलता का हौसला नहीं डगमगाया। उस समय वह केवल सत्रह साल की थी। शांति मार्च किया गया और ब्रिटिश प्रशासन ने उस पर गोलीबारी शुरू कर दी। इस गोलीबारी में कनकलता बरुआ शहीद हो गई। मरने से पहले उसने अपना तिरंगा झंडा मुकुंद काकोती को दे दिया।

पुलिस ने उनपर भी बोली चला दी। कनकलता के इस साहस को याद करने के लिए उनकी याद में उद्यान को कनकलता उद्यान नाम दे दिया गया। उद्यान में कनकलता बोरुआ की एक मूर्ति भी लगी है जिसके हाथों में तिरंगा अब भी लहरा रहा है।

 

  • भैरवी मंदिर और मैथन मंदिर

भैरवी मंदिर, मैथन जैसे मंदिरों के साथ ही महाभैरव मंदिर भी आस्था का अहम केंद्र है. मान्यता है कि इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग दुनिया का सबसे पुराना शिव लिंग है. 

 

  • कालिया भोमुरा सेतु

1987 में बने कालिया भोमुरा सेतु से ब्रह्मपुत्र नदी का विहंगम नज़ारा देखने को मिलता है. 3 किलोमीटर से भी ज्यादा लम्बे इस पुल को बनने में 6 साल का समय लगा था. अहोम साम्राज्य के कालिया भोमोरा फूकन के नाम पर बने इस पुल को अमेरिकन कंक्रीट इंस्टिट्यूट की ओर से ‘सबसे बेहतरीन कंक्रीट स्ट्रक्चर’ की मान्यता भी मिल चुकी है. 

 

  • गणेश घाट और जहाज़ घाट

तेजपुर के गणेश घाट और जहाज घाट से भी ब्रह्मपुत्र नदी का दीदार किया जा सकता है. इस विशाल नदी के इन घाटों के किनारे बैठकर सूरज को ढ़लते हुए देखना एक अलग ही शान्ति देता है. कहा जाता है पुराने समय में विदेशों से माल लाने ले जाने के लिए जहाज़ घाट पर जहाजी बेड़े आते-जाते थे. इसलिए इसका नाम जहाज़ घाट पड़ा.     

 

  • जोनाकी

असम का पहला सिनेमाघर जोनाकी भी तेजपुर शहर के बीचों-बीच है. असम में सिनेमा की नींव रखने वाले ज्योतिप्रसाद अग्रवाल को इस सिनेमाघर को बनवाने का श्रेय जाता है। 1935 में जब उन्होंने अपनी पहली फ़िल्म बनाई तो ये तो उस वक्त लोगों को फ़िल्म दिखाने के लिए तेजपुर में कोई जगह नहीं थी।

तब फिल्मों को स्कूल के हॉल, गोदाम वगैरह में दिखाना पड़ता था। ज्योतिप्रसाद अग्रवाल ने इस कमी को महसूस करते हुए 1937 में इस ऑडिटोरियम को बनवाना शुरू किया। इसके लिए उन्होंने अपने पैतृक घर ‘पोकी’ के पीछे वाले हिस्से को चुना। 1937 में दुर्गापूजा के पहले इस ऑडीटोरियम में पहली फ़िल्म दिखाई गई। इस तरह से चित्रलेखा डिस्ट्रीब्यूटर्स के बैनर तले यहां फिल्में दिखाए जाने का सिलसिला शुरू हुआ। 

 

  • भालुकपोंग

तेजपुर से करीब 56 किलोमीटर दूर जिया भोराली नदी के किनारे ‘भालुकपोंग’ नाम की जगह भी प्रकृति से प्यार करने वालों को लुभाती है. यहां नदी किनारे ट्रेकिंग और रिवर राफ्टिंग का मज़ा लिया जा सकता है. तेजपुर से 35 किलोमीटर की दूरी पर ही नामेरी नेशनल पार्क भी है. 200 वर्ग किलोमीटर में फैले इस पार्क में हाथियों के साथ-साथ दुर्लभ रॉयल बंगाल टाइगर का भी बसेरा है.      

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भारत-चीन युद्ध के दौरान तेजपुर में क्या हुआ 

 

वो सन 1962 के भारत-चीन युद्ध का दौर था, नवम्बर का महीना था, जब भारत की सेना को कामेंग सेक्टर से पीछे हटना पड़ा था. कामेंग सेक्टर अब अरुणांचल प्रदेश है जिसे तब नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (नेफ़ा) के नाम से जाना जाता था. भारत के पीछे हटने की खबर से नज़दीकी शहर तेजपुर में ये बात फैल गयी कि चीन की सीमा कभी भी यहां तक पहुंच सकती है.

पूरा शहर उस वक्त दहशत में आ गया. जानमाल के नुकसान से बचने के लिए एहतियातन पूरे शहर को खाली करवा दिया गया. हजारों लोग बैलगाड़ियों में सामान लादकर ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे जमा होने लगे. ताकि स्ट्रीमर की मदद से वो नदी पार करके सुरक्षित ठिकानों तक पहुंच सकें. 

तेजपुर में टूरिस्ट इन्फोर्मेशन ऑफिसर, बासब बोरा बताते हैं कि उस वक्त खुद उनके पिताजी तेजपुर में रहते थे. उन्होंने उस दहशत को अपनी आंखों से देखा. तब कालिया भोमोरा पुल नहीं बना था. लोगों को फेरी से नदी पार करनी पड़ती थी. उस वक्त सभी लोग जान बचाने के लिए असम के ऊपरी इलाकों की तरफ़ भाग रहे थे.

शहर छोड़ने से पहले लोगों ने अपनी धन-संपत्ति को बचाने के लिए उसे शहर के बीचों-बीच बनी झील में डाल दिया. कुछ लोग जो शहर में सुरक्षित बचे रह गए, लड़ाई ख़त्म हो जाने के बाद वो इस धन-संपत्ति की बदौलत मालामाल हो गए. 


असम की सांस्कृतिक धरोहरों का ठिकाना 

 

Bhupen hazarika Kala kshetr in Tejpur
Statue of Bhupen Hazarika in Bhupen hazarika Kala kshetr in Tejpur

 

असम की तीन मशहूर सांस्कृतिक हस्तियां तेजपुर की ही देन हैं. ज्योति प्रसाद अग्रवाल, बिष्णु प्रसाद राभा और भूपेन हज़ारिका. इन तीनों दिग्गजों का तेजपुर से गहरा रिश्ता रहा है. बिष्णु राभा असम के संगीत जगत का एक बड़ा नाम हैं और भूपेन हज़ारिका को कौन नहीं जानता. ‘आमी एक जाजाबर’ और ‘दिल हूम-हूम करे’ जैसे मशहूर गाने लिखने वाले भूपेन हज़ारिका का बचपन यहीं बीता था.

भूपेन हज़ारिका की याद में यहां ‘भूपेन हज़ारिका कला भूमि’ नाम से एक ओपन एयर थिएटर भी बना है. यहां भूपेन हज़ारिका की एक विशाल प्रतिमा भी लगाई गई है। ज्योति प्रसाद अग्रवाल असम के संगीत और साहित्य जगत में एक जाना माना नाम हैं. उन्होंने 1935 में असम के सिनेमाजगत की पहली फिल्म ‘जौयमती’ बनाई थी. शहर के बीचों-बीच बने उनके पुरखों के घर ‘पोकी’ को अब एक संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है.    


तेजपुर की लीचियाँ भी हैं बड़ी मशहूर

 

अगर आपने तेजपुर की लीची नहीं चखी तो क्या चखा! अपने अलग आकार और गहरे लाल रंग की वजह से अलग से पहचान में आने वाली इस लीची को मुंह में डालते ही इसकी मिठास जीभ में घुल जाती है. तेजपुर के पोरोवा नाम के गाँव में ‘लीची पुखुरी’ नाम की जगह पर उगने वाली इस लीची की देश ही नहीं विदेश में भी मांग है.

तेजपुर की लीची को ज्योग्रेफिकल इंडिकेशन (जीआई) टैग भी मिल चुका है. इस टैग के मिलने के बाद किसी भी उत्पाद को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिलती है साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि उस उत्पाद को उसी जगह पर उगाया जाए जहां वह मूल रूप से पैदा होता है. इस तरह तेजपुर की लीची अब दुनियाभर में अपनी मिठास घोल रही है.


सर चकरा दे तेजपुर की  भूत झोलकिया 

 

तेजपुर मीठी लीचियों के साथ सर चकरा देने की हद तक तीखी भूत झोलकिया के लिए भी मशहूर है। यह एक स्थानीय  मिर्च है जिसे चख भर लेने से क़रीब आधे घंटे तक इसकी झन्नाहट चीभ में बरकर्रार रहती है। भूत झोलकिया को नागा झोलकिया या घोस्ट पेपर भी कहा जाता है।

ये मिर्च दुनिया की सबसे तीखी मिर्च मानी जाती है और इसके लिए इसका नाम गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ड रेकर्ड में भी शामिल है। तेजपुर के साथ-साथ यह मिर्च असम के दूसरे हिस्सों, अरुणांचल प्रदेश, नागालेंड और मणिपुर में भी पाई जाती है। स्थानीय लोग रोज़मर्रा के खाने में मसालों के साथ इसका इस्तेमाल करते हैं। साथ ही तीखा खाने के शौक़ीन इसका अचार भी बहुत पसंद करते हैं।

 यह मिर्च इतनी तीखी है कि 2009 में डीआरडीओ के शोध में बताया गया कि इसका इस्तेमाल आतंकवादियों से लोहा लेने के लिए किया जा सकता है। इसके इस्तेमाल से बनाए गए चिली ग्रेनेड अब भारतीय सेना द्वारा भी इस्तेमाल किए जाते हैं। इस पर किए गाए शोध ये भी बताते हैं कि भूत झोलकिया के इस्तेमाल से बने ये ग्रेनेड पैलेट गन के बेहतर विकल्प के तौर पर भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं।   


तेजपुर है अरुणांचल प्रदेश के लिए ट्रांजिट पॉइंट      

 

अरुणांचल प्रदेश के प्रमुख पर्यटक केन्द्रों तवांग, सेला पास, बोमडीला और ज़ीरो वैली जाने का रास्ता तेजपुर से ही गुजरता है. इसलिए इन इलाकों में आने वाले पर्यटक तेजपुर में ठहरना पसंद करते हैं. यहां रूककर आगे का सफर तय करना यात्रा को कुछ आसान बना देता है.  


देश के सबसे कम प्रदूषित शहरों में शुमार है तेजपुर 

 

देश के बड़े शहरों की हवा अब जहां जीना मोहाल होने की हद तक दूषित हो चुकी है वहीं तेजपुर की हवा अब भी एकदम साफ़-सुथरी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की एक रिपोर्ट में तेजपुर को देश के सबसे कम प्रदूषित शहरों में शुमार किया गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक़ तेजपुर की हवा की गुणवत्ता देश के सभी शहरों में सबसे बेहतर है। हवा की गुणवत्ता के मुख्य आधार पीएम 10 का स्तर तेजपुर में 11 माइक्रो ग्राम/ क्यूबिक मीटर पाया गया जो इसके स्वीकार्य स्तर 20 माइक्रोग्राम/ क्यूबिक मीटर से काफ़ी कम है।  


तेजपुर कैसे और कब जाएं     

 

कोलकाता और सिल्चर से हवाई मार्ग के ज़रिए पहुंचा जा सकता है. कोलकाता से सीधे तेजपुर के लिए भी विमान सेवा उपलब्ध है. नज़दीकी एयरपोर्ट गुवाहाटी में है जहां से सड़क मार्ग के ज़रिए यहां पहुंचने में करीब चार घंटे लगते हैं. गुवाहाटी तक देश के प्रमुख शहरों से ट्रेन भी उपलब्ध है. दिल्ली से हफ्ते में एक बार रविवार के दिन तेजपुर से पच्चीस किलोमीटर दूर रंगपारा नाम के स्टेशन तक एक सीधी ट्रेन भी आती है.  

अक्टूबर से मई के बीच यहां मौसम बहुत खुशनुमा बना रहता है. हल्की गुनगुनी धूप में तेजपुर यात्रा का मज़ा लेने के लिए ये समय सबसे मुफीद रहता है. 


तेजपुर से क्या ख़रीदें 

 

तेजपुर में यूं तो कोई बड़े शॉपिंग मॉल या बाज़ार नहीं हैं लेकिन छोटे शहर के पारम्परिक बाज़ारों में घूमने का मज़ा लेना हो तो शहर के बीचों-बीच एमसी रोड पर मौजूद चौक बाज़ार एक अच्छा विकल्प हो सकता है। इस बाज़ार में असम के बुनकरों द्वारा हाथ से बिना हुआ मशहूर असमिया सिल्क का सामान ख़रीदा जा सकता है। ख़ासतौर पर सिल्क की साडियां और असम के पारम्परिक परिधान जैसे मेखला यहां आपको आसानी से मिल सकते हैं। अपने चहेतों को असम की ये यादगारी उपहार के तौर पर देना एक अच्छा आइडिया हो सकता है। इसके अलावा बांस के बने हुए शोपीस, मास्क और कपड़े के बने हुए खिलौने भी आपको यहां मिल जाएंगे।

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उमेश पंत

उमेश पंत यात्राकार के संस्थापक-सम्पादक हैं। यात्रा वृत्तांत 'इनरलाइन पास' और 'दूर दुर्गम दुरुस्त' के लेखक हैं। रेडियो के लिए कई कहानियां लिख चुके हैं। पत्रकार भी रहे हैं। और घुमक्कड़ी उनकी रगों में बसती है।

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