जामिया के मासकम्यूनिकेशन रिसर्च सेन्टर में साउन्ड के लेक्चरार मतीन अहमद को फिल्म चिल्ड्रन आफ पायर की साउन्ड डिजाइनिंग के लिये इस बार का नैशनल अवार्ड दिया जा रहा है।
बनारस में मरघटों पर जलती हुई लाशों से कफन बीनने वाले बच्चों की कहानी
ये फिल्म वाराणसी के उन 6 बच्चों की कहानी है जो मरघटों पर जलती हुई लाशों पर लिपटे हुए कफन बीनते हैं। कफन बीनकर या कभी कभी चुरा और छीनकर अपनी जिन्दगी जीने वाले इन बच्चों का जीवन कैसे बसर होता है चिल्ड्रन आफ पायर इसे मार्मिक तरीके से दिखाती है।
ये वो बच्चे हैं जो चाहते हैं कि लोग जल्द से जल्द मर जांयें ताकि उनकी मौत से इन्हें जीने की वजह मिल पाये। इस अजीब सी विडम्बना से जूझते इन बच्चों को आपस में लडते, गालियां करते, कफन पर झपटते, लावे सी आग में लगभग झुलसता सा देखते लगता है कि चिताओं के दई गिर्द केवल मरे हुए लोगों की लाशें ही नहीं हैं बल्कि इन बच्चों के कई बचपन भी हैं जिनकी मौत कई कई बार होती है। फर्क इतना सा है कि चिता में जलती लाशें कुछ देर में खाक हो जाती हैं पर बचपन की ये लाशें जिन्दा रहती हैं उनकी गरीबी पर व्यंग करती सी।
साउंड डिज़ाइन के लिए मिला नैशनल अवार्ड
निर्देशक राजेश एस ज्याला को भी इस फिल्म के लिये स्पेश जूरी अवार्ड
मतीन अहमद के साथ ही फिल्म के निर्देशक राजेश एस ज्याला को भी इस फिल्म के लिये स्पेश जूरी अवार्ड से नवाजा गया है। गणतंत्र दिवस के मौके पर यह एक विडम्बना ही है कि ऐसी फिल्में तो सराही जा रही हैं जो लाशों पर जीने वाले मरते बचपन की नग्न सच्चाई को दिखा रही हैं पर उस सच्चाई से निजात दिलाने के प्रयास कम ही नजर आते हैं। खैर मतीन सर और फिल्म के निर्देशक और पूरी टीम को इस सच्चाई से वाकिफ कराने के लिये बधाई तो दी ही जानी चाहिये।
bahut khoob …….aapka blog padh ke bahut accha laga …
शुर्किया कुश का जिसने इस ब्लॉग का लिंक दिया ……यहाँ तो खज़ाना है भाई……..