
‘हंसा’ :गांव में शहर की गुपचुप घुसपैठ
हंसा। थियेटर और सिनेमा के अदाकार मानव कौल ने जब इस फिल्म को अपनी फेसबुक टाइमलाइन पे शेयर किया तो […]
हंसा। थियेटर और सिनेमा के अदाकार मानव कौल ने जब इस फिल्म को अपनी फेसबुक टाइमलाइन पे शेयर किया तो […]
वो कहती है- “तुम बहुत सीधे और ईमानदार हो। बिल्कुल निदा फाज़ली की गज़लों की तरह।” वो पूछता है – […]
एक शक्ल की दो लड़कियां हैं जिनमें एक ओरिजनल है एक डुब्लिेकेट। अब असल मुद्दा ये है कि जो आॅरिजनल […]
एन एच 10 के एक दृश्य में मीरा (अनुष्का शर्मा) हाइवे के किसी ढाबे के गंदे से टॉयलेट के दरवाज़े […]
बाज़ार के सामने बार-बार हारता बाॅलिवुड जब दम लगाता है तो दम लगाके हाइशा सरीखा कुछ सम्भव हो पाता है। […]
चलिये शुरु से शुरु करते हैं। पीके इसी भाव से शुरु होती है। एकदम नग्न। आवरणहीन। इस विशाल दुनिया के […]
फाइन्डिंग फैनी इस स्वार्थी और व्यस्त होती जा रही दुनिया में एक ऐसी जगह की खोज की कहानी है जहां […]
दो समानान्तर रेखाएं अनन्त पर मिलती हैं। बाउजी इस बात को मानने से इनकार देते हैं। दो समानान्तर रेखाएं अगर […]
Beasts of the southern wild हशपपी का खुद पर और जीवन की अच्छाईयों पर एक गहरा और अटूट भरोसा है। […]
Film : A woman under influence कितनी फिल्में होंगी जो स्त्रियों के मनोविज्ञान में बहुत गहरे तक झांकने की कोशिश […]
एमिली अकेलेपन से जूझती एक लड़की है जो अपनी दुनिया को परी-कथाओं सा बनाकर अपने अकेलेपन का हल खोज रही […]
फेसबुक पर एक दोस्त के स्टेटस को देखकर ये फिल्म डाउनलोड की और अब रात के दो बजकर 30 मिनट हो […]
पिछले मुंबई फिल्म फेस्टिवल में अनूप सिंह के निर्देशन में बनी फिल्म ‘किस्सा’ देखी थी.. उसी फिल्म पर की […]
दिल्ली में कॉलेज आने जाने वाले लड़कों के बीच एक टर्म बहुत प्रचलित है। ‘बहन जी‘। ‘बहन जी टाइप‘ होना […]
शिप ऑफ थीसियस फ़िल्म देखी तो सोचा कि एक शहर के रुप में मुम्बई की आईरनी यही है कि उसकी […]
रोम में एक शासक हुआ करता था- नीरो। एक ऐसा शासक जिसके शासनकाल में लगी आग की लपटें आज तक […]
मूलतः गाँव कनेक्शन के लिए लिए गए इस साक्षात्कार को यहां भी पढ़ा जा सकता है. भारतीय सिनेमा में गाँव […]
मुम्बई फिल्म फेस्टिवल के छटे दिन फेसबुक पर फेस्टिवल के पेज से जानकारी मिली कि मुम्बई डाईमेन्शन कैटेगरी के अन्दर आने […]
पांच दिनों से मुम्बई के पांच अलग अलग थियेटरों का पीछा किया है। हर थियेटर जैसे एक ट्रेन सा हो […]
एक और दिन मुम्बई फिल्म फेस्टिवल के नाम रहा। शुरुआत खराब थी। इतवार की सुबह सुबह सायान के सिनेमेक्स सिनेमाहौल […]
सुबह सुबह नीद खुली तो देर हो चुकी थी। साढ़े नौ बज चुके थे। रात को सोते वक्त सोचा था […]
एक जलसा मुम्बई में दस्तक देने वाला है। इस जलसे की उत्सवधर्मिता का स्वरूप बिल्कुल अलहदा है। इस जलसे में […]
आपके जीवन में जब कविताएं घट रही होती हैं, जिन्हें महसूसने के लिये आपको शब्दों के सहारे की ज़रुरत नहीं […]
कहानी के ट्रेलर देखकर लग रहा था कि कोई रोने धोने वाली फिल्म होगी… जिसमें शायद कलकत्ते को लेकर नौस्टेल्जिया […]
बीहड़ में बागी होते हैं… डकैत मिलते हैं पार्लामेन्ट में…. पान सिंह तोमर का ये डायलौग फेसबुक की दीवारों पे […]
“You got to be careful that person you fall in love is worth it to you” “How can you trust […]
कुछ दिन पहले भवन्स कौलेज में रौकस्टार के प्रोमोशन का लाईव शो देखते हुए कई सारे टैक्निकल एरर हुए तो […]
यहां मुम्बई में बैठे दायें या बायें देखते हुए एक कार थी जो पहाड़ के एक गांव कांडा के कलाकेन्द्र […]
परसों रात दो बजे जब फाईनली डिसाईड हो गया कि आज नीद नहीं ही आयेगी तो अपने फिल्मों के कलेक्शन […]
हमारा अपना काल्पनिक मानसिक संसार जब हमारी जिन्दगी में शामिल होने लगता है तो हमारा व्यवहार उसे ज़ाहिर कर देता […]
इन्टयूशन था कि साली अच्छी होगी। कई इन्टयूशन सच निकलते हैं। इस बार यही हुआ। ये साली जिन्दगी कुलमिलाकर एक […]
बीते साल की आंखिरी सांसों के इर्द गिर्द महज महीना पुरानी बेरोजगारी की एक हल्की सी बू थी। रिज्यूमे को […]
बहसतलब का आज दूसरा दिन था। आज बात होनी थी हिन्दी सिनेमा और बाजार पर। कार्यक्रम के संचालन की बागडोर […]
बहसतलब का आज दूसरा दिन था। आज बात होनी थी हिन्दी सिनेमा और बाजार पर। कार्यक्रम के संचालन की बागडोर […]
मोहल्ला लाईव, जनतंत्र और यात्रा बुक्स द्वारा आयोजित बहसतलब का पहला दिन कुछ सार्थक बहसों के नाम रहा । अविनाश […]
हाल ही में रितेश शर्मा की एक डाक्यूमेंट्री फिल्म दिल्ली में प्रदर्शित की गई जिसमें देवदासी प्रथा जैसी ऐसी कुरीति […]
Into the wild …..और एक दिन वो सब कुछ छोड़ कर चला जाता है। कहीं दूर अलास्का के जंगलों की […]
कई बार हम सपने देखते हैं और जब जागते हैं तो सोचते हैं जो हमने देखा उसका अर्थ आंखिर था […]
लव, सेक्स और धोखा। इन तीनों में से कोई भी शब्द हाईपोथैटिकल और नया नहीं है। तीनों इन्सानी फितरत के […]
निलिता वचानी एक जानी मानी डाक्यूमेंट्री फिल्म मेकर हैं ये बात कल उनकी फिल्मों के अंश देखते और उन पर […]
सारे आक्रोश महज एक दुर्घटना बनकर समाप्त हो जाते हैं। ये आक्रोश भी कुछ ऐसा ही था। गोविन्द निहिलानी की […]
राजस्थान की भंवरी देवी को शायद आप अब तक न भूले हों। 1992 में राजस्थान की भतेरी गांव की इस […]
डेज़ ऑफ़ हैवन ( days of heaven film) उन कमाल की फिल्मों से एक है जिन्हें आप चाहें तो बस उनकी […]
लगत जोबनुवा में चोट, फूल गेंदवा न मार। ये शब्द फिर गाये नहीं गये। ठुमरी के ये बोल कहीं खो […]
युद्व का उन्माद कितना विभत्स, कितना भयावह और अमानवीय हो सकता है सोल्जर ब्लू में देखा जा सकता है। ये […]
सोने जा ही रहा था कि एक सूचना मिली। सूचना बड़ी अच्दी लगी तो सोचा आपको बता ही डालूं। खरगोश […]
वे फैज नहीं हैं फैजा हैं इसलिए उनका अंदाजे बयां अलहदा है। फैज शब्दों से अपनी बात कहते थे फैजा […]
ओसियान फिल्म फेस्टिवल के दूसरे दिन आज तीन फिल्में देखी। तेजा, मैन वूमेन एंड अदर स्टोरीज और ब्लाईंड पिग हू […]
पार्टी कल्चर से बहुत ज्यादा ताल्लुक ना होने के बावजूद इस पार्टी ने लुभा लिया। 1984 में आई गोविन्द निहिलानी की […]
इस बीच माजिद माजिदी की दो फिल्में देखने को मिली। चिल्ड्रन आफ हैवन और कलर्स आफ पैराडाईस। माजिद माजिदी की […]