इनक्रोचमेंट, डिमोल्यूशन एंड डिस्प्लेसमेंट

(Last Updated On: April 3, 2023)

सुबह सुबह नौएडा मोड़ से गुजरते हुए सड़क के किनारे देखा तो वहां मां दुर्गा की वो मूर्ति नहीं थी, ना ही नटराज की। वहां कुछ लोग थे जो बुल्डोजर लेकर कच्ची ईंटों से बने उन कच्चे घरों को तोड़ रहे थे जहां अब तक वो कुछ लोग रहते थे, जिनका रहना वहां गैवाजिब था, उन लोगों के लिये जिनके लिये लोकतंत्र सबसे उपर है और कानून उससे भी उपर। इसीलिये इन लोगों का वहां रहना गैरकानूनी समझा गया और आज उनको वहां न रहने देने के पूरे इन्तजाम कर दिये गये।

दस बजे के आसपास पुलिस वहां आई और सबकुछ तोड़ दिया गया। पुलिस के हाथों में डंडे थे और मन में एक ईरादा कि आज सब टूटकर रहेगा। पर उनके इस इरादे में उन लोगों के दिलों के टूट जाने का इल्म भी कहीं नहीं होगा क्योंकि उसकी कीमत शायद उनके लिये है ही नहीं। और हो भी तो जब तक वो वर्दी में हैं वो वो नहीं पुलिस वाले हैं, सरकार के नुमाईंदे। और इस वर्दी में एक चीज जिसे लोकतंत्र कहा जाता है उन्हें शायद याद नहीं रहता। हांलाकि सरकार खुद इस तरह के अतिक्रमण के खिलाफ अपनी हर मुहिम के बाकायदा तस्वीर लेकर सबूत अपने पास रखती है, पर ना जाने पुलिस वालों का ये कैसा गैरलोकतांत्रिक रवैया है एक आम आदमी जब इसकी तस्वीर लेना चाहता है तो उसे सख्त लफजों में मना कर दिया जाता है।

कारण पूछने पर आपको आंखें दिखाई जाती हैं और कहा जाता है कि आप अपना काम करो। खैर कुछ तस्वीरें उनके ना चाहते हुए ले ली हैं। जो यहां छाप रहा हूं। एक सवाल छोड़ते हुए कि अब इन लोगों का क्या होगा। क्या सरकार इस बारे में कुछ सोच पायेगी। कानूनी दायरे में रहकर देखें तो ये लोग गलत हो सकते हैं जो अपनी मरजी से कहीं भी अपने लिये बसेरा बना लेते हैं लेकिन सवाल ये है कि इनकी मरजी ही चलती तो क्या रोज रोज एक जगह से दूसरी जगह खदेड़ दिये जाने की नियति लिये ये इस तरह यहां रहते।

शायद इन लोगों की सबसे बड़ी गलती यही है कि इनके पास हजारों रुपये किराया देकर कमरे में रहने की हैसियत नहीं है। इतना पैसा नहीं है। इसीलिये वो हक भी नहीं कि ये लोग सड़कों के किनारे अपना घर बना कर रह सकें।

ये एक छोटा सा नमूना है कि ये इन्सानी जिन्दगी कितनी पूंजीकेन्द्रित है। पास में अगर एक हाई क्लास मैटोस्टेश हो, विदेशियों के रहने के लिये आलीशान होटल बन रहे हों और करोड़ों खर्च करके बनाया गया भव्य अक्षरधाम मन्दिर हो तो ऐसे में इन लोगों का रहना यहां कतई शोभा नहीं देता ऐसा शायद आपमें से कई लोगों का मानना होगा।

पर इनका मानना क्या है ये सोच पाने की समझ हम आप में ना सही कम से कम सरकार में तो हो।

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उमेश पंत

उमेश पंत यात्राकार के संस्थापक-सम्पादक हैं। यात्रा वृत्तांत 'इनरलाइन पास' और 'दूर दुर्गम दुरुस्त' के लेखक हैं। रेडियो के लिए कई कहानियां लिख चुके हैं। पत्रकार भी रहे हैं। और घुमक्कड़ी उनकी रगों में बसती है।

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