बीती रात, साढ़े नौ बजे के शो की आनलाईन बुकिंग, एचडीएफसी के डेबिट कार्ड से टाजिंक्शन में फिर एक टैक्निकल एरर आने की वजह से केंसिल हो गई। पर फिल्म तो देखनी थी। सोचा जाके देखें शायद औन द स्पौट कोई जुगाड़ हो जाये।जुहु के चन्दन सिनेमा हौल पहुंचे तो जैसे चमत्कार हुआ हो। लम्बी लाईन और भीड़ से नाउम्मीद हुए ही थे कि दोस्त भागता हुआ पांच टिकिट ले आया। कैसे …का जवाब देते हुए उसने बताया कि गार्ड ने जैसे ही कहा कि यहां एक और लाईन लगालो तो वो कूदकर लाईन में सबसे पहले जा लगा। टिकिट लेने वालों की भीड़ में नई लाईन का फायदा उठाते हुए शो शुरु होने से आधे घंटे पहले हम पाचों दोस्त टिकिट पा चुके थे।
चंदन सिनेमा के हौल में घुसते ही एक रफ सा फील आता है। फेम एडलैब्स या फन रिपब्लिक के सोफिस्टिकेटेड कार्पेट्स से अलग एक खुरदुरी सी ज़मीन पे चलते हुए सरकारी सी कुर्सियों पर बैठते हुए लगता है कि हम जेएनयू की किसी फिल्म स्क्रिनिंग का हिस्सा हो गये हों। रौकस्टार जैसी फिल्म को देखने के लिये इससे बेहतर माहौल और क्या हो सकता था।
फिल्म एक न्यूज़रील सा फील देती सी शुरु होती है जिसमें एक आदमी को विदेशी पुलिस पकड़ रही है….फिर एक रौकस्टार दिखता है जो स्टेज पर अपने जलवे बिखेर रहा है और फिर पहुंचती है नौर्थकेंपस जहां कहानी शुरु होती है….जनार्दन जाकड़ जो एक रौकस्टार बनना चाहता है, जिम मौरिशन की तरह…. भरी भीड़ के सामने स्टेज में मिडिल फिंगर दिखाने को बेताब सा। बस स्टाप में अपने गिटार की बेसुरी धुनों और बेतुके गानों से लोगों को इरिटेट करता हुआ… कि तभी कैंटीन का हैड….उसे ब्रहमज्ञान देता है कि टूटे दिल से ही संगीत निकलता है… फिर एक रियलाईजेशायन कि कभी दिल नहीं टूटा… कभी कोई दर्द नहीं मिला… कितनी सीधी…सपाट सी जिन्दगी। फिर दिल तोड़ने की एक कोशिश… और हीर नाम की उस सेंट स्टीफेनियन कश्मीरी, कौलेज आईकेंडी, हाई क्लास लड़की को एक फनी सा प्रपोजल… मेरी गर्लफ्रेंड बनजा … हम दोनों रौक कर देंगे…. लेकिन इस सीन के बाद वो गंवई सा लड़का पूरी फिल्म में अकेले रौक करता रहा पर यकीन मानिये वो कश्मीरी लड़की फिल्म के एक भी सीन में कहीं रौक नहीं कर पाई। जब जब रहमान की धुनें बजती, जौर्डन स्टेज पे होता फिल्म देखने लायक होती। लेकिन जहां जहां नर्गिस अपनी स्टिफ बाडीलेंग्वेज और जबरदस्ती के एक्सप्रेशन दिखते फिल्म का जायका खराब कर देते। जो भी जौर्डन कहना चाहता हीर उसके अल्फाज़ बरबाद कर देती।
नर्गिस से बहुत कम स्क्रीन प्रेजेंस के बावजूद जर्नलिस्ट का रोल निभा रही अदिति राव की एक्टिंग ज्यादा प्रभावशाली लगती हैं। इससे पहले ये साली ज़िन्दगी में अपनी एक्टिंग से छाप छोड़ने वाली अदिति रौकस्टार की लीड के लिये कई गुना ज्यादा क्वालिफाईड लगती हैं।
जैसे जैसे फिल्म आगे बढ़ती रही, खिंचती रही, फिल्म की कहानी रास्ता भूलती रही और अंत में हमें एक ऐसी यात्रा पर ले गयी जिसका कोई अंत नहीं था।
इम्तियाज़ अली से इतनी खराब स्क्रिप्ट की उम्मीद शायद ही किसी को हो। पूरी फिल्म देखने के बाद आप अगर बतादें कि फिल्म की कहानी क्या थी तो ये आपकी क्रियेटिविटी की चरम सीमा होगी। एक कहानी जिसमें न कोई फ्लो होता है… न कोई लौजिक। एक सीता और गीता के कैरेक्टर से प्रभावित सी लड़की जो शादी से पहले किसी चीप से थिएटर में एक लड़के के साथ बी ग्रेड फिल्म तो देख लेती है, पर शादी के बाद अपने पति के घर में उसी लड़के का महज बाई कहने आना उसे नागवार गुजरता है। उसे लगता है कि इस बात से उसकी शादीशुदा ज़िन्दगी खराब हो जाएगी। फिर उस लड़की का बोनमैरो उस लड़के की प्रेजैंस से नौर्मली ब्लड सेल्स पैदा करने लगता है…लड़का चला जाता है तो बोन मैरो की प्रोब्लेम फिर शुरु हो जाती है……एक डाक्टर जो प्रगनेंसी टेस्ट करने के बजाय उस लड़की की मां से पूछता है कि सच बताओ लड़की प्रगनेंट हैं?
पूरी फिल्म देखने के बाद ….लगता है कि शायद फिल्म की स्क्रिप्ट शूट करते हुए कहीं खो गई थी। और खुद डाईरैक्टर साहब भूल गये थे कि कहानी क्या थी।
फिल्म कई बातों को एक साथ एडेªस करने की फिराक में अपना पता खो देती है। जबरदस्ती ओवरकौम्प्लिकेटेड हो जाती है …..एब्सट्रेक्ट होने की नाकाम कोशिश करती सी।
हांलाकि रणबीर पूरी फिल्म में हर जगह पर फिल्म की डूबती किश्ती को अपनी शानदार एक्टिंग की पतवार लिये डूबने से बचाने की कोशिश को बखूबी अंजाम देते हैं। चाहे वो नौर्थकैंपस के एक बेशउर, नासमझ और ढ़ीट से लड़के का किरदार हो… निज़ामुददीन दरगाह में कुन फायाकुन की धुन में डूबा घर से निकाल दिया गया एक बेचैन मुसाफिर हो… स्टेज पे पूरे जोश से गाता एक रौकस्टार जौर्डन हो…पत्रकारों को पीटता एक फ्रस्टेट और बेफिक्र कलाकार हो…. या फिर अपनी प्रेमिका से रात को छुपकर मिलने आया एक प्रेमी…. हर रुप में रणबीर कहीं नहीं खले हैं। पूरी फिल्म में कुछ देखने लायक है तो वो रणबीर की शानदार एक्टिंग। और कुछ सुनने लायक तो रहमान की धुनें।
रणबीर की कौस्ट्यूम्स डिज़ाईनिंग भी अपनी ओर नज़र खींचती है, वैसे जिस फिल्म में कहानी नहीं होती उसमें म्यूजिक, कौस्ट्यूम्स, कास्टिंग वगैरह वगैरह पर नज़र खुद बखुद जाने लगती है।
रौकस्टार की कास्टिंग फिल्म की एक बड़ी कमज़ोर कड़ी है। इंडियन लुकिंग फोरेन एक्टर्स का ट्रेंड पिछले कुछ समय से इन्डस्ट्री में क्यों आया है, इसकी वजह शायद विदेशी कलाकारों और लोकेशन्स के ज़रिये फिल्म को एक्ज़ोटिक सा लुक देकर मल्टीप्लेक्स में फिल्में देखने वाली औडियन्स को रिझाने की कोशिश है, लेकिन इसने फिल्मों में एक्ंिटग का स्तर कम ही हुआ है।
सुनने में आया है कि पहले करीना कपूर नर्गिस की जगह फीमेल लीड के रोल के लिये चुनी गई थी लेकिन क्योंकि रणबीर और करीना रिश्तेदार हैं और फिल्म में कुछ संेन्सुअल सीन्स की दरकार थी इसलिये करीना की जगह नर्गिस को लिया गया। जो भी हो इस फैसले ने फिल्म को एक अच्छी फिल्म बन पाने से रोकने में बड़ी भूमिका अदा की है।
रिवाज़ों से बंधे, तरीके से चलने वाले समाज के खिलाफ एक आज़ादखयाल रौकस्टार की बगावत का कंसेप्ट फिल्म में उस गहराई से आ ही नहीं पाया जितना गहरा ये कंसेप्ट है। उसपे फ्री तिब्बत और कश्मीर की आज़ादी का मुददा एक मोंटाज़ के जरिये जबरदस्ती ठूसने की कोशिश बेहद बचकानी लगती है। ठीक वैसे ही जैसे कुछ समय पहले आई पंकज कपूर की फिल्म मौसम में एक साथ बाबरी, नाईन इलैवन, कार्गिल, गोधरा सबकुछ ठूस देने की नाकाम कोशिश की गई थी।
हौल से निकलने के बाद कुछ ठगा ठगा सा महसूस करते हुए कुछ रोचक कमेन्टस सुनने को मिले…
मेरे दोस्त सम्राट ने कहा कि इम्तियाज अली को रणबीर कपूर से माफी मांगनी चाहिये।
एक दोस्त का कहना था कि फिल्म के एक दृश्य में उल्टी को जितने क्रियेटिव तरीके से दिखाया गया था वो काबिले तारीफ था।दो अजनबी औरतों को उनके पास से गुजरते हुए कहते सुना….I loved ranbir’s Passion for ‘something’… वो समथिंग क्या था अगर फिल्म इस बात को बता पाने में कामयाब हो जाती तो शायद रौकस्टार आज के वक्त की बेहतरीन फिल्मों में से होती। पर अफसोस कि ये हो न सका।
फिल्म देखने के बाद जब वी मैट जैसी अच्छी और सरल फिल्म बनाने वाले इम्तियाज अली से इतना ही कहा जा सकता है कि नादान परिंदे घर आजा।
खैर रौकस्टार देखने के बाद घर लौटे तो रणबीर और रहमान दो ही चीजें दिमाग में छाई थी। नेट से रौकस्टार के गानों की जिपफाईल डाउनलोड कर ली गई है। और रौकस्टार के गाने स्पीकर की उंची आवाज़ के ज़रिये इरशाद कामिल की लिखाई को सलाम करते कानों से दिल में कहीं गहरे उतर रहे हैं।
Thank you so much… bahut sundar… Ranbir, Nizamuddin Dargah, Rehman, aur Irshaad….
Jai ho !
Umesh pant's posts are awesome… worth relishing…… you are a long runner dude… great…. -Pranav Joshi…
shayad ab hume paki pakai films dekhne ke adat se ho gae hai..filmo ke mamle me koi dimagi kasrat karna he nhi cahata hai…