मुझसे छिन गया है आख़री औज़ार मेरा
मुझसे छिन गया है आख़री औज़ार मेरा
मेरी मुट्ठी से जा निकला है अब किरदार मेरा
सिवा मेरे, यहां करते हैं सब मेरी वसूली
इस शहर में हर शख्स है हक़दार मेरा
यहां सबकी तरह मेरी भी क़ीमत कुछ नहीं है
मुझे लगता था, है परवान पर बाज़ार मेरा
मेरे सपनों की बोली इस तरह तो मत लगाओ
कोई है क्या यहां जो सुन सके इनकार मेरा
एक दिन जाके अपनी सारी ख़ुशियां बेच आया
हुआ था हाए दिल कुछ इस तरह बेज़ार मेरा
कोई समझाए मुझको मैं कहां जाकर चुकाऊं
दरअसल इन दिनों मुझपे ही है उधार मेरा
जो लौटा है, मेरी शक्ल का एक आदमी था
बड़े अरसे से कर रहा था इंतज़ार मेरा
मुझे ऐसी जगह पर रहने की लत हो गई है
जहां रहता नहीं है इक भी तलबगार मेरा
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