फिर गुज़र गई है रात तेरा ख़्वाब पालकर
फिर गुज़र गई है रात तेरा ख़्वाब पालकर
सुबह ने पहन ली है तेरी याद फिर निकालकर
मैं ख़्वाहिशों की छत पे जब खड़ा रहा तो यूं दिखा
तू धूप सी उतर रही थी आसमा के गाल पर
मेरे वजूद को तू आके मायनों से सींच दे
मैं लफ़्ज़ हूं टंका हुआ किसी ग़ज़ल की डाल पर
मैं तुझको तांकता रहूँ जवाब की तलाश में
तू मेरे पास बैठ और नए-नए सवाल कर
मैं रात की नदी में लेके ख़्वाब वाली नाव को
निकल पड़ा हूं जेब में तेरा पता संभालकर
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ग़ज़ल