जिन हालातों में हम रह रहे हैं वहां रोज़मर्रा की चीजों के साथ वक्त भी दिन पर दिन महंगा होने लगा है। ऐसे में दूसरों के लिये तो दूर की बात हम अपने लिये भी फुरसत के लमहे नहीं निकाल पाते। और इस कम फुरसत जि़न्दगी में जो एक चीज़ बड़ी बुरी तरह से प्रभावित हो रही है वो है हमारा आपसी संवाद। आपस में बातचीत के सिलसिलों के खत्म होने का सीधा रिश्ता हमारे अकेलेपन से है।
कभी आपके साथ भी ये हुआ होगा कि अपने घर की खिड़की पे अकेले बैठे आप सोच रहे हों कि जिन्दगी में कुछ कमी लग रही है। कुछ अच्छा सा नहीं लग रहा। एक अजीब सी बेचैनी। यार लार्इफ में मज़ा नहीं आ रहा वाला एक फील। समझ नहीं आ रहा होगा कि परिवार, औफिस सब तो है पर कमी कहां है? दिक्कत क्या है? खुशी क्यूं आंखें चुराकर भाग रही है?
अगर ऐसा है तो एक मर्तबा सोचिये तो। रोज वही औफिस, वही घर, वही चेहरे, वही बातें, वही खाना। जि़न्दगी की भी तो अपनी ज़रुरते हैं। उसे भी तो आपसे नयेपन की कुछ उम्मीदें हैं।
याद कीजिये कि कितना वक्त हो गया आपको अपने दूर के चाचा जी के सबसे छोटे लड़के से बात किये? क्या आपको याद है कि आपकी दीदी की ननद की छोटी बेटी अब कौन सी क्लास में पहुंच गर्इ है? नहीं ना। कहीं ऐसा तो नहीं है कि ये दूर के रिश्ते जो कभी नज़दीक हुआ करते थे धीरे धीरे आपकी याददाश्त की सीमा से बाहर जाने लगे हैं। वो पुराने दोस्त जो कभी जिगरी हुआ करते थे आपकी जिन्दगी से सिरे से गायब ही तो नहीं हो गये?
आपके फोन के इनबौक्स में ऐसे कर्इ नम्बर सेव होंगे जिनको अरसे से आपने डायल नहीं किया होगा। कभी बस यूं ही फोन उठाकर बिना किसी मतलब के अपने किसी रिश्तेदार को फोन कीजिये। उनकी तरफ से नर्इ जानकारियों का जो पिटारा खुलेगा वहां से आपको नयापन मिलेगा। अपने किसी पुराने भुला दिये गये दोस्त से कुछ ऐसी पुरानी यादें मिलेंगी जो आपको नयेपन से भर देंगी।
आपकी तनहार्इ का इलाज़ इन्हीं रिश्तों, इन्हीं दोस्तों, इन्हीं लोगों, इन्हीं नम्बरों के बीच ही तो कहीं छुपा है।
ये इन्टरनेट, ये लैपटौप भले ही कितना ही नजदीकियों का भ्रम पैदा करे पर साथ में पकौडि़यां खाते हुए आपके होंठों के नीचे लगे टुकड़े को अपनी छोटी छोटी उंगलियों से हटाने वाली आपकी भान्जी की कमी तो ये पूरा नहीं कर सकते ना।
अकेलेपन की जड़ें इसलिये और गहरी होती चली जाती हैं क्योंकि हम उसे मौका देते हैं। औफिस से दो दिन की छुटटी मिले तो घर में बिस्तर पर लेटकर उसे बिता देने में भरोसा करने लगे हैं हम। ऐसे बहाने तलाशने लगे हैं जिससे पुराने दोस्त की शादी में जाने को टाला जा सके। पेड लीव लेने पर दिन के पांच सौ रुपये कट जांएगे बस इसलिए एक साल बाद महज 4 दिन के लिये घर जाकर पापा मम्मी से मिलने की औपचारिकता पूरी कर लेने लगे हैं। ये सोचे बिना कि जब आपके पास किसी के लिए वक्त नहीं है तो ज़रुरत पड़ने पर या बस मिलने का मन होने पर किसी के पास आपके लिए वक्त क्यों होगा।
दोस्त, रिश्ते, और अपनेपन के सारे सम्बंध वक्त का साझा करने की मांग करते हैं। बिना वक्त दिये आप ये उम्मीद नहीं कर सकते उनकी मजबूती पहले की ही तरह बर्करार रहेगी। बलिक रिश्तों की बुनियाद तो बहुत क्षणभंगुर होती है। एक दिन अचानक पता चलता है कि आपस में बातचीत के अभाव ने सबकुछ खोखला कर दिया है। और उस दिन महसूस होता है कि हम बस इसलिए कितने अकेले पड़ गये हैं, कि हमने वक्त पर इन रिश्तों की नीव को मजबूत करने के लिये वक्त नहीं दिया।
अगर आप चाहते हैं कि अकेलापन आपकी जिन्दगी का हिस्सा ना बने तो धीरे धीरे लोगों से बढ़ रही अपनी दूरियों को कम करने की कोशिश में अभी से जुट जार्इये। रिश्तों के बीच की दूरियां पाटने का सिलसिला जहां शुरु होगा वहां अकेलेपन का अक्स आपकी जि़न्दगी से गायब होने लगेगा।
सच ही तो कहा है किसी ने कि अकेलापन अच्छा है पर आपको ये कहने के लिए भी कोर्इ चाहिये कि अकेलापन अच्छा है।